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मुस्लिम समुदाय के लिए बनी सच्चर कमिटी की सिफारिशों पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

Deepa Sahu
29 July 2021 5:27 PM GMT
मुस्लिम समुदाय के लिए बनी सच्चर कमिटी की सिफारिशों पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका
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मुस्लिम समुदाय के लिए बनी सच्चर कमिटी की सिफारिशों पर रोक के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने से रोकने की गुहार लगाई गई है। देश में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के हालातों को जानने के लिए सच्चर कमेटी बनाई गई थी। साल 2006 में इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट भी सौंप दी थी। अब 'सनातन वैदिक धर्म' के अनुयायियों ने एक याचिका दायर इस रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू होने से रोकने की गुहार लगाई है।

संप्रग सरकार ने मार्च 2005 में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र सच्चर की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया था। समिति को देश में मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति पर एक रिपोर्ट तैयार करनी थी। उत्तर प्रदेश के पांच लोगों द्वारा दायर याचिका में आरोप लगाया गया है कि नौ मार्च 2005 को प्रधानमंत्री कार्यालय से समिति के गठन के लिए जारी अधिसूचना में ''कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि यह मंत्रिमंडल के किसी निर्णय के बाद जारी की जा रही है।
अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, ''इस तरह, यह स्पष्ट है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री ने मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति जानने के लिए खुद अपनी तरफ से ही निर्देश जारी किया, जबकि अनुच्छेद 14 और 15 में कहा गया है कि किसी धार्मिक समुदाय के साथ अलग से व्यवहार नहीं किया जा सकता।
याचिका में कहा गया है कि इस तरह के आयोग का गठन करने की शक्ति संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत राष्ट्रपति के पास है। याचिका में दावा किया गया है कि समिति की नियुक्ति अनुच्छेद 77 का उल्लंघन थी और यह ''असंवैधानिक तथा अवैध है। याचिका में आग्रह किया गया है कि केंद्र को मुस्लिम समुदाय के लिए कोई योजना शुरू करने के लिए रिपोर्ट का क्रियान्वयन करने से रोका जाए।
ये याचिका ऐसे समय में दायर की गई है जब केंद्र ने विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए अनुसूचित जाति कल्याण योजनाओं में बचाव किया है, जिसमें कहा गया है कि ये योजनाएं हिंदुओं के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करती हैं और समानता के सिद्धांत के खिलाफ नहीं हैं।


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