पटना। महागठबंधन की आरक्षण की मुहिम को तगड़ा झटका लगा है. पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है. याचिका की कॉपी को एडवोकेट जनरल के पास भेज दिया गया है. मिली जानकारी के अनुसार बिहार में 65% आरक्षण को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि ‘ये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन’ है. बता दें कि जातीय गणना की रिपोर्ट आने के बाद बिहार सरकार ने आरक्षण का दायरा बढ़ाने का निर्णय लिया. इसके बाद इसको लेकर विधेयक सर्वसम्मति से विधानसभा में पास भी करा लिया.मिली जानकारी के अनुसार ये जनहित याचिका गौरव कुमार व नमन श्रेष्ठ ने दायर की है।
इस याचिका की एक कॉपी बिहार के महाधिवक्ता पीके शाही के ऑफिस को भी भेजी गई है. याचिकाकर्ता ने इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की है. याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि ये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. याचिकाकर्ता की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई थी न कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का प्रावधान.यह जो 2023 का संशोधित अधिनियम बिहार सरकार ने पारित किया है, वह भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.बता दें कि बिहार सरकार ने सरकारी नौकरी और स्कूल संस्थानों में पिछड़ा, अतिपिछड़ा, दलित और महादलित को मिलने वाले आरक्षण को 50 फीसदी से बढ़ाकर 65 फीसदी कर दिया है.
बिहार में कुल आरक्षण का दायरा 75 फीसद पहुंच चुका है. अगड़ी जातियों में से आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10 फीसद की आरक्षण की सीमा है. बिहार विधानमंडल के शीतकालीन सत्र में विधानसभा और विधानपरिषद से सर्वसम्मति से आरक्षण संसोधन बिल 2023 पारित हुआ था. राज्यपाल के पास इस बिल को मंजूरी के लिए भेजा गया था. राज्यपाल ने इसको मंजूरी दे दी है और यह लागू हो चुका है.बिहार सरकार राज्य में खुद से जातीय गणना कराई थी. साथ ही सरकार ने आर्थिक सर्वे भी कराया था. सरकार ने इसकी रिपोर्ट को विधानसभा में पेश किया था. विधानसभा में चर्चा के दौरान सीएम नीतीश ने आरक्षण के मौजूदा दायरा को बढ़ाने का एलान कर दिया था. इसके लिए सीएम ने आरक्षित वर्ग की जनसंख्या और उसकी आर्थिक स्थिति को आधार बनाया था।