दिल्ली। संविधान दिवस पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के सभागार में कार्यक्रम को संबोधित किया. इस दौरान अंग्रेजी में औपचारिक सरकारी भाषण के बाद राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने हिंदी में अपनी भावनाएं सबके सामने रखीं, तो सुप्रीम कोर्ट का पूरा सभागार तालियों की गड़गड़हाट से गूंज गया.
राष्ट्रपति ने कार्यक्रम के दौरान अंग्रेजी में पहले औपचारिक लिखित भाषण पढ़ा, लेकिन अपने मन की बातें हिंदी में अनौपचारिक रूप से कहीं. राष्ट्रपति के हिंदी में दिए भाषण पर सभागार में मौजूद लोग भी भावुक हो उठे. राष्ट्रपति मुर्मू ने अपना अंग्रेजी भाषण पूरा करने के बाद पन्ने समेटे और कहा कि मैं बहुत छोटे गांव से आई हूं. बचपन से देखा है कि हम गांव के लोग तीन ही लोगों को भगवान मानते हैं गुरु, डॉक्टर और वकील. गुरु ज्ञान देकर, डॉक्टर जीवन देकर और वकील न्याय दिलाकर भगवान की भूमिका में होते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के सभागार में कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्म ने अपने पहले विधायक कार्यकाल के दौरान विधानसभा की कमेटी के अपने अनुभव साझा किए. साथ ही अपनी उम्मीदों के सच न होने का अफसोस जताया. फिर राज्यपाल होने के दौरान हुए अनुभव साझा किए. राष्ट्रपति ने भावुक अंदाज में जजों से कहा कि जेल में बंद लोगों के बारे में सोचें. थप्पड़ मारने के जुर्म में लोग वर्षों से जेल में बंद हैं. उनके लिए सोचिए.राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें न तो अपने अधिकार पता हैं न ही संविधान की प्रस्तावना, न ही मौलिक अधिकार या संवैधानिक कर्तव्य. उनके बारे में कोई नहीं सोच रहा. उनके घर वालों की उनको छुड़ाने की हिम्मत नहीं रहती. क्योंकि मुकदमा लड़ने में ही उनके घर के बर्तन तक बिक जाते हैं. दूसरों की जिंदगी खत्म करने वाले हत्यारे तो बाहर घूमते हैं, लेकिन आम आदमी मामूली जुर्म में वर्षों जेल में पड़े रहते हैं. राष्ट्रपति ने कहा कि और ज्यादा जेल बनाने की बात होती है, ये कैसा विकास है. जेल तो खत्म होनी चाहिए.