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Pawan Singh: संघर्ष से सफलता के शिखर पर पहुंचे पवन सिंह, 'हिचक' रहे हैं सियासत की डगर पर?
jantaserishta.com
3 March 2024 12:29 PM GMT
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संघर्ष से सफलता के शिखर पर पहुंचे पवन सिंह, 'हिचक' रहे हैं सियासत की डगर पर?
नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी की तरफ से जारी पहली सूची में भोजपुरी के चार सुपर स्टार अभिनेताओं के नाम शामिल थे। इनमें से एक पावर स्टार पवन सिंह ने आसनसोल सीट से चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। एक दिन पहले भाजपी की तरफ से उम्मीदवारों की नाम वाली सूची में अपना नाम होने के बाद वह खूब उत्साहित थे। लेकिन, 24 घंटे के भीतर ही पवन सिंह ने आसनसोल से चुनाव लड़ने से मना कर दिया।
वैसे पवन सिंह पर भाजपा ने क्यों दांव लगाया इसके पीछे की वजह भी खास है। पवन सिंह को भोजपुरी का पावर स्टार कहा जाता है। हिंदी सिनेमा में जितनी दखल सलमान खान रखते हैं भोजपुरी सिनेमा के दर्शकों के बीच वही दखल पवन सिंह रखते हैं। उनके चाहने वालों की संख्या करोड़ों में है। पवन सिंह के गाने इतने पॉपुलर रहे हैं कि भोजपुरी के अलावा देश के अन्य भाषा को समझने वालों की तो छोड़ दीजिए उनके गानों को विदेशों के पब और डिस्को में बजते और इस पर लोगों को थिरकते देखा जा सकता है।
पवन सिंह बिहार के भले ही हों लेकिन उनकी फैन फॉलोइंग बंगाल में भी है। पवन सिंह बिहार के आरा के रहने वाले हैं लेकिन, उनका जन्म बंगाल में हुआ था। शायद पार्टी इसी वजह से पवन सिंह को वहां से चुनाव मैदान में उतारना चाह रही थी।
पवन सिंह को भोजपुरी सिनेमा में उनके अभिनय की वजह से जितनी पहचान मिली उससे ज्यादा उन्हें उनकी आवाज की वजह से लोगों का प्यार मिला। पवन सिंह की आवाज के दीवाने आज भी दुनिया में करोड़ों की संख्या में हैं। लेकिन, ज्यों-ज्यों पवन सिंह को सफलता मिलती गई विवादों से भी उनका नाता गहराता गया।
पवन सिंह की जिंदगी में उन्हें सच्चा प्यार कभी नसीब नहीं हुआ। पहली पत्नी ने आत्महत्या कर ली, दूसरी पत्नी के साथ उनका तलाक का केस अदालत में चल रहा है। भोजपुरी की मशहूर अभिनेत्री अक्षरा सिंह के साथ उनके संबंधों को दोनों ने मंच से स्वीकार किया था लेकिन यह साथ भी ज्यादा देर तक नहीं टिक पाया।
पवन सिंह को भोजपुरी गाना 'लॉलीपॉप लागेलू' की वजह से काफी प्रसिद्धि मिली। इस गाने ने पवन सिंह को भोजपुरी का सुपरस्टार बना दिया। वह लोगों के दिलों पर राज करने लगे।
बिहार के आरा जिले के एक गांव जोकहरी में 5 जनवरी 1986 को पवन सिंह का जन्म हुआ था। उन्होंने अपनी स्कूलिंग एचएनके हाई स्कूल से पूरी की, जबकि आगे की पढ़ाई महाराजा कॉलेज बिहार से की। पवन सिंह को गाने का शौक तो बचपन से था। उन्हें पढ़ाई लिखाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी। ऐसे में पवन सिंह ने चाचा अजीत सिंह से गाना सीखना शुरू किया और बेहद कम उम्र में गाने लगे। पढ़ाई से उनका लगाव कितना था इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि 7-8 साल की उम्र तक पवन सिंह को पढ़ना भी नहीं आता था। वह गाना भी सुनकर सीखते थे। चाचा ने उन्हें गाना सीखाना शुरू किया और फिर साइकिल पर साथ लेकर वह उसे शो में भी ले जाने लगे।
पवन बड़े होने के बाद भी लंबे समय तक संघर्ष के दिनों में अपने स्टेज शो के लिए साइकिल से ही जाते थे। भोजपुरी इंडस्ट्री में आने के बाद भी पवन सिंह सालों तक सिर्फ गायकी ही करते रहे। लेकिन गायकी में सफलता के बाद पवन सिंह ने एक्टिंग में भी अपना हाथ आजमाया।
भोजपुरी फिल्म 'रंगली चुनरिया तोहरे नाम' से उन्होंने 2007 में अभिनय के क्षेत्र में एंट्री की। वह अभी तक 100 से ज्यादा भोजपुरी फिल्मों में अभिनय करने के साथ हजारों की संख्या में भोजपुरी गानों को अपनी आवाज से सजा चुके हैं। उनके सिंगल गानों की लिस्ट बहुत लंबी है।
पवन सिंह का पहला भोजपुरी एल्बम 'ओढ़निया वाली' था जो साल 1997 में आया था। तब पवन सिंह महज 11 साल के थे। उस समय पवन को उतनी सफलता नहीं मिली लेकिन, साल 2008 में रिलीज हुए उनके गाने 'लॉलीपॉप लागेलू' ने पवन सिंह को भोजपुरी का पावर स्टार बना दिया। इस गाने की वजह से पवन सिंह की किस्मत बदल गई। पवन सिंह आज भोजपुरी इंडस्ट्री के सबसे अमीर कलाकार हैं। वह इस इंडस्ट्री के सबसे महंगा एक्टर और सिंगर हैं। उनके पास बिहार और मुंबई दोनों जगह करोड़ों का घर है। उनकी संपत्ति भी 50-65 करोड़ रुपए के बीच है।
वैसे पवन सिंह ने आसनसोल से भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतरने से क्यों मना किया, इसके पीछे की वजह क्या थी। यह सूत्रों के हवाले से सामने निकलकर सामने आ रही है। इसकी पहली वजह जो बताई जा रही है वह यह है कि पवन सिंह आरा के रहने वाले हैं और वह यहीं से चुनाव लड़ना चाहते थे। हालांकि उन्हें बिहार से सटे पश्चिम बंगाल के आसनसोल से भाजपा ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया।
दूसरी वजह यह कि पवन सिंह के सामने जो उम्मीदवार टीएमसी की तरफ से मैदान में होने की संभावना है वह उनके आदर्श शत्रुघ्न सिन्हा हैं। शत्रुघ्न सिन्हा इस सीट से टीएमसी की तरफ से सांसद हैं। वहीं पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की मजबूत स्थिति भी पवन सिंह के इनकार करने की वजह मानी जा रही है।
हालांकि भाजपा की तरफ से जब पवन सिंह के नाम की घोषणा हुई, तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। वह तब जिम में थे और नाम का ऐलान होते ही जिम 'जय श्री राम' के नारे से गूंज उठा। हालांकि पवन सिंह के नाम का भाजपा की तरफ से आसनसोल सीट के उम्मीदवार के तौर पर ऐलान होते ही टीएमसी हमलावर हो गई।
ममता बनर्जी की पार्टी की तरफ से पवन सिंह के खिलाफ 'महिला सम्मान' कार्ड खेल दिया गया। दरअसल पवन सिंह की कुछ फिल्में और एलबम के नाम बंगाली महिलाओं पर केंद्रित हैं। जिसको लेकर यह बवाल शुरू हुआ। वैसे 2019 में भी पवन सिंह को बीजेपी बंगाल के हावड़ा से चुनाव लड़वाना चाहती थी लेकिन, अंतिम वक्त में पार्टी ने अपना फैसला बदल लिया।
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