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पतंजलि भ्रामक विज्ञापन मामला: जज की भाषा पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जजों और पूर्व सीजेआई ने उठाए सवाल, जानें पूरी बात

jantaserishta.com
12 April 2024 12:48 PM GMT
पतंजलि भ्रामक विज्ञापन मामला: जज की भाषा पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जजों और पूर्व सीजेआई ने उठाए सवाल, जानें पूरी बात
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कहा था कि हम आपकी बखिया उधेड़ देंगे।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में भ्रामक विज्ञापन के मामलों में सुनवाई करते हुए बाबा रामदेव, आचार्य बालकृष्ण को कड़ी फटकार लगाई। इसके अलावा, उत्तराखंड सरकार के राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण को भी जमकर सुनाया। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा था कि हम आपकी बखिया उधेड़ देंगे। जज की भाषा पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जजों और पूर्व सीजेआई ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा है कि कोर्ट में सुनवाई के दौरान हमेशा ही संयम के मानक स्थापित किए गए हैं और इसका इस्तेमाल निष्पक्ष बहस के एक मंच के रूम में किया जाता रहा है। पूर्व जजों ने कहा कि 'हम बखिया उधेड़ देंगे' कहना सड़क पर मिलने वाली धमकी जैसा ही है और यह कभी भी संवैधानिक कोर्ट के जस्टिस के ओबिटर डिक्टा लेक्सिकॉन का हिस्सा नहीं हो सकता है।
'टाइम्स ऑफ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार, पूर्व जजों और पूर्व सीजेआई ने सुझाव दिया कि जस्टिस अमानुल्लाह को न्यायिक आचरण से परिचित करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों को देखना चाहिए। ये दो फैसले- कृष्णा स्वामी बनाम भारत संघ (1992) और सी रविचंद्रन अय्यर बनाम न्यायमूर्ति ए एम भट्टाचार्जी (1995) हैं। उल्लेखनीय है कि जस्टिस अमानुल्लाह को पिछले साल फरवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त किया गया था। कृष्णा स्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संवैधानिक अदालत के जजों का आचरण समाज में सामान्य लोगों से कहीं बेहतर होना चाहिए।
कोर्ट का कहना था कि न्यायिक व्यवहार के मानक, बेंच के अंदर और बाहर दोनों जगह, सामान्य रूप से ऊंचे होते हैं। ऐसा आचरण जो चरित्र, अखंडता में जनता के विश्वास को कमजोर करता है या न्यायाधीश की निष्पक्षता को, उसे त्याग दिया जाना चाहिए। वहीं, तीन साल बाद, रविचंद्रन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, "न्यायिक कार्यालय अनिवार्य रूप से एक सार्वजनिक ट्रस्ट है। इसलिए, समाज को यह उम्मीद करने का अधिकार है कि एक न्यायाधीश उच्च निष्ठावान, ईमानदार व्यक्ति होना चाहिए और उसमें नैतिक शक्ति, नैतिकता होनी चाहिए।"
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने के लिए पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने को लेकर उत्तराखंड लाइसेंसिंग प्राधिकरण की आलोचना की। न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने दिव्य फार्मेसी के खिलाफ शिकायतों पर कार्रवाई में देरी करने के लिए फाइल को आगे बढ़ाने और 2018 से नींद में चले जाने के लिए राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण के अधिकारियों की खिंचाई की। उन्होंने कहा, ''हमें अधिकारियों के लिए 'बोनाफाइड' शब्द के इस्तेमाल पर कड़ी आपत्ति है। हम इसे हल्के में नहीं लेंगे। शीर्ष अदालत ने योग गुरु रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक बालकृष्ण द्वारा भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने पर बिना शर्त माफी मांगने के लिए दायर हलफनामों को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
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