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सवारी बसें या मालवाहक... ढो रहे लगेज!

Nilmani Pal
13 Aug 2024 6:07 AM GMT
सवारी बसें या मालवाहक... ढो रहे लगेज!
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सरकार की आंख में धूल झोंक कर GST चोरी का नया तरीका

बस आपरेटर यात्री परमिट वाले बस में लगेज ढो रहे, अनाप-शनाप कमाई के चक्कर में अवैध धंधे में संलिप्तता

RTO से लेकर परिवहन विभाग के नाक के नीचे चल रहा गोरख धंधा

बस आपरेटर यात्रियों को भी गुड्स की तरह कर रहे व्यवहार

यात्री बस में यात्रियों को सुविधा देने की बजाय पार्सल पर ज्यादा जोर

बस के ऊपर से नीचे तक पार्सल ही पार्सल, यात्री जान जोखिम में डाल कर यात्रा करने मजबूर

भाठागांव बस स्टैंड जाने के बाद भी शहर की जाम व्यवस्था जस की तस

लक्जरी स्लिपर बस बना नक्सलियों के अवैध सामानों का सप्लायर

औव्हर लोड बसों में यात्रियों से ज्यादा पार्सल, ऊपर से नीचे तक स्लिपर कोच में पार्सल ही पार्सल

chhattisgarh news रायपुर । पंडरी बस स्टैंड को भाठागांव ले जाने के पीछे सरकार की मंशा थी कि आम नागरिकों को बस की बेहतर सुविधा मिले औऱ उनका सफर आरामदायक हो। लेकिन जब से भाठागांव में बस स्टैंड शिफ्ट हुआ है तब से यात्रियों को तो कोई सुविधा नहीं मिली, बल्कि बस आपरेटरों ने अपनी कमाई की भरपाई करने के लिए यात्री बस को पार्सल बस के रूप में संचालित कर रहे हैं। इस तमाशे को राजधानी में आरटीओ, कमिश्नर से लेकर परिवहन मंत्री और शासन -प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों की टीम रोज देख रही है। लेकिन कार्रवाई करने के बजाय मात्र तमाशा देख रहे हैं। ओव्हर लोड के टचक्कर में हर रोज बस के पलटने और अनियंत्रित होकर दुर्घटनाग्रस्त होने के खबर पर भी संज्ञान नहीं ले रहे हंै। खासकर लंबी दूरी की बसों में पार्सल का आलम ये रहता है कि बस में सवार यात्री राम-राम करते जान जोखिम में डाल कर यात्रा करते हैं। पूरी बस पार्सल से लदी रहती है।

बस स्टैंड से जुड़े जानकारों की मानें तो बस आपरेटर पहले तो भाठागांव बस स्टैंड जाने से मना करते रहे, ले देकर प्रशासन की सख्ती के बाद भाठागांव गए तो एक नए कारोबार को भी जोड़ लिया । बस को पूरी तरह पार्सल वाहन के रूप में तब्दील कर दिया है। बस आपरेटरों को य़ात्रियों की जान की परवाह नहीं है, उन्हे तो मात्र अपनी अंधाधुंध कमाई की परवाह है। सवारी बैठे या न बैठे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता बस पार्सल बस भर कर मिल जानी चाहिए । यात्रियों के लिए मिली परिमट का पार्सल बस के रूप में उपयोग करते सभी देख रहे है लोकिन कोई माई का लाल रोकने का दम नहीं दिखा पा रहा है। यानी सबकी मिली भगत से एक सोची समझी साजिश के तहत सवारियों को मौत के मुहाने पर ले जाने का खेल रोज तलता है। बस आपरेटरों की दबंगई के आगे लगता है प्रशासन नत मस्तक है।

बस में क्या जा रहा है कोई चेकिंग नहीं

chhattisgarh सील बंद पार्सल में क्या सामान जा रहा है कोई चेक करने वाला नहीं है। न परिवहन विभाग इस दिशा में गंभीर दिखाई दे रहा है औऱ न ही स्थानीय पुलिस प्रशासन पूरी तरह बस आपरेटिंग का कारोबार पूरी तरह अनियंत्रित होकर बेखौफ संचािलत हो रहा है। इस पर किसी का भी नियंत्रण नहीं है। या यो कहे कि यह कारोबार पूरी तरह दबंगई से चल रहा है। हम क्या ले जा रहे है कोई पूछने वाला नहीं है।

नक्सली सामान की सप्लाई

अधिकतर बसों में में जो पार्सल सीलबंद जाते है वो पूरी तरह संदिग्ध होते है। इसकी जानकारी भेजने और पाने वाले को ही रहती है। बस आपरेटर तो मनमानी लगेज लेकर अवैध सामान की सप्लाई करने कोई कोताही नहीं बरतता। सामान वैध हो अवैध हो उनकी बला से, पैसा भरपेट मिलना चाहिए तो कुछ भी ले जा सकते हैं।

पार्सल में तस्करी के सामान को पहुंचाते है पूरी तरह सुरक्षित

यात्री बस आपरेटरों का एक ही मुख्य काम है जो पार्सल पहुंचाने की जिम्मेदारी मिली है उसे बखूबी निभाते हंै। बस में ज्यादा तर अवैध और संदिग्ध सामान ही पार्सल जाते हैं। ताकि रात में भेजो और सुबह मिल जाए। प्रदेश में सात राज्यों के कनेक्टिविटी वाले बस स्टैंड अवैध काम के लिए इस्तेमाल हो रहा है। जहां हर रोज गांजा, शराब, अफीम, प्रतिबंधित दवाएँ पार्सल होकर पाइंटर के पास पहुंच जाता है।

रेलवे के जोखिम से बचने बस से तस्करी

रेलवे में पार्सल भेजने के लिए लिखा पढ़ी से मुक्त बस आपरेटर को थोड़ा ज्यादा पैसा देकर पार्सल को गंतव्य तक पहुंचाया जा रहा है। बस में पार्सल के नाम पर तस्करी का ही सामान आधीरात को भर कर भेजा जा रहा है। भाटागांव बस स्टैंड के आसपास रात को खड़े बसों में पार्सल की भर्ती देख सकते हैं। पूरी भाठागांव बसस्टैंड के आसपास में खड़े रोड में रात को बसों में पार्सल ही पार्सल भरते रहते है। सवारी चिल्लाते रहते हंै कि भैया सुबह टाइम से पहुंचना है पर उनकी कोई नहीं सुनता ।

वो तो सिर्फ पार्सल भराई में ध्यान देते हैं। ज्यादा से ज्यादा पार्सल बस में भरा जाए।

परिवहन विभाग की मौन स्वीकृति?

अवैध एजेंट रसीदों से काटी जा रही टिकटों के जरिए टैक्स चोरी भी कर रहे हैं। यात्रा टिकट पर 18 फीसदी जीएसटी लगता है जो ये नहीं पटा रहे हैं। बावजूद जीएसटी और एक्साइज डिपार्टमेंट खामोश है। बस मालिकों की मजबूरी दूसरे राज्यों से आने वाली बस मालिकों को सर्वाधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। रायपुर में अधिकृत दफ्तर नहीं होने के कारण स्थानीय ट्रैवल्स एजेंसियों के भरोसे रहना पड़ता है। इसके चलते बुकिंग एजेंट अपनी मनमानी करते हैं। उन्हें यात्रियों के आने तक इंतजार करना पड़ता है। जिला प्रशासन, पुलिस और परिवहन विभाग द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। इसके चलते उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है। एक समूह का वर्चस्व लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि ये अवैध एजेंट बस स्टेंड में किसकी शह पर हुकूमत चला रहे हैं। जब बस आपरेटर अपने बुकिंग एजेंट नियुक्त नहीं किए हैं तो इन बुकिंग एजेंटों पर किसका नियंत्रण है क्या इनकी नियुक्ति जिला प्रशासन और निगम के माध्यम से हुआ है या फिर इन्हें कांटे्रक्ट दिया गया है। इन बुकिंग एजेन्टस द्वारा बस सेवा भी संचालित नहीं की जा रही है। बावजूद बस स्टैंड पर इनकी मोनोपल्ली और सिंडीकेट का संचालन कैसे हो रहा है। आखिर इसकी पीछे किसका हाथ है और जिला और पुलिस प्रशासन की खामोश क्यों है यह भी सोचने वाली बात है।

बसों में अवैध माल ढुलाई की शिकायतें मिली है जिस पर उडन दस्तों को कार्रवाई के लिए निर्देशित किया गया है। ऐसे बस आपेरेटर पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।

आशीष देवांगन

आरटीओ, रायपुर

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