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ओपी चौटाला ने की प्रकाश सिंह बादल से मुलाकात, सियासी सुगबुगाहट तेज
jantaserishta.com
13 Aug 2021 6:55 AM GMT
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हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री व इंडियन नेशनल लोकदल के सुप्रीमो ओम प्रकाश चौटाला हाल ही में जेल से रिहा होकर बाहर आए हैं, जिसके बाद से उनका विपक्ष के बड़े नेताओं से मिलने का सिलसिला जारी है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह के बाद गुरुवार को शिरोमणि अकाली दल के संरक्षक व पंजाब के पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल ने चौटाला से मुलाकात की है. बादल-चौटाला की बीच हुई मुलाकात से पंजाब और हरियाणा में सियासी सुगबुगाहट तेज हो गई है.
ओमप्रकाश चौटाला जेल से बाहर आते ही प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर से सक्रिय हो गए हैं. चौटाला के अब खुलकर सियासी मैदान में उतरने से हरियाणा की सियासत में नई हलचल पैदा हो गई है. वो एक के बाद एक नेताओं और अपने पुराने सहयोगी नेताओं के साथ मुलाकातें कर रहे हैं. ऐसे में बादल और चौटाला की मुलाकात कई मायने में राजनीतिक रूप से अहम है.
दरअसल, ओमप्रकाश चौटाला के जेल में रहने को दौरान ही उनके परिवार में कलह हो गई थी. इसके चलते उनका परिवार और पार्टी दो हिस्सों में बंट गई है. इनेलो से अलग होकर उनके बड़े बेटे अजय चौटाला और पोते दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी का गठन कर लिया है जबकि छोटे बटे अभय चौटाला उनके साथ हैं.
साल 2019 के विधानसभा चुनावों में जेजेपी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 11 सीटें हासिल की थीं और अब बीजेपी के साथ गठबंधन सरकार का हिस्सा है. दुष्यंत चौटाला राज्य सरकार में डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं जबकि इनेलो महज एक सीट पर जीत दर्ज कर सकी थी. इनेलो से अभय चौटाला ही जीत सके थे. ऐसे में ओमप्रकाश चौटाला के सामने अपनी पार्टी को दोबारा से खड़े करने की चुनौती है.
वहीं, कृषि कानून के चलते शिरोमणि अकाली दल अब बीजेपी से 25 साल पुराना गठबंधन तोड़कर अलग हो चुकी है. पंजाब की सियासत में अकाली अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने के लिए बसपा के साथ हाथ मिलाकर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी में है. इसके बावजूद पंजाब में किसान आंदोलन के चलते अकाली के सामने 2022 का चुनाव काफी चुनौती पूर्ण माना जा रहा है.
ओमप्रकाश चौटाला और प्रकाश सिंह बादल के बीच गुरुवार को हुई मुलाकात के राजनीतिक कयास लगाए जा रहे हैं. यह इसलिए भी क्योंकि हरियाणा व पंजाब की राजनीति में चौटाला और बादल परिवार के रिश्ते हमेशा चर्चा का विषय रहे हैं. दोनों नेता पार्टी लाइन से हटकर चुनाव के दौरान एक-दूसरे की न केवल मदद करते रहे हैं बल्कि संकट की स्थिति में दोनों परिवार एक-दूसरे के साथ खड़े दिखाई दिए हैं. यह परिवारिक संबंध ताऊ देवीलाल के समय में स्थापित हुए थे
एक बार बादल ने अपनी बेटी की शादी तय की थी, लेकिन उन्हें जेल जाना पड़ गया था. ऐसे में उनकी अनुपस्थिति में बेटी का कन्यादान चौधरी देवीलाल ने किया. इसके बाद दोनों पगड़ी बदल भाई बन गए थे. प्रकाश सिंह बादल सत्ता में रहते हुए विदेश दौरे पर गए थे तो उन्होंने संत हरचंद सिंह लोंगोवाल की बरसी के कार्यक्रमों के आयोजन की जिम्मेदारी ओमप्रकाश चौटाला को सौंप दी थी. इसीलिए ओमप्रकाश चौटाला और बादल की मुलाकात काफी अहम है, क्योंकि चौटाला परिवार दो हिस्सों में बंटा हुआ है.
ओमप्रकाश चौटाला जेल से रिहा होते ही राजनीतिक में सक्रिय हो गए हैं और अपनी पार्टी के खोए हुए सियासी जनाधार को वापस पाने के साथ-साथ पुराने राजनीतिक संबंध को भी दोबारा से पटरी पर लाने में जुट गए हैं. ऐसे में बादल और चौटाला दोनों एक दूसरे की जरूरत बन सकते हैं. चौटाला पंजाब में बादल की सियासी मददगार साबित हो सकते हैं तो हरियाणा में बादल राजनीतिक रूप से इनोलो के साथ मिलकर पुराने समीकरण को बहाल कर सकते हैं.
ओमप्रकाश चौटाला अपने पिता पूर्व उप प्रधानमंत्री स्व. देवीलाल की जयंती के मौके पर 25 सितंबर को हरियाणा में बड़ा कार्यक्रम करने वाले हैं. चौटाला इस कार्यक्रम में अपनी सियासी ताकत दिखाना चाहते हैं, जिसके लिए अपने पुराने साथियों और देवीलाल के साथियों को इस मंच पर इकट्ठा करने की कवायद में जुटे हैं.
सोमवार को उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से गु्फ्तगू की थी. इसके अलावा पिछले दिनों जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार के साथ भी चौटाला की मुलाकात हो चुकी है. बादल, देवगौड़ा, मुलायम, नीतीश और ओमप्रकाश चौटाला आपातकाल के दौर के साथी हैं.
बता दें कि ओमप्रकाश चौटाला हरियाणा के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं. उम्र के ऐसे पड़ाव पर हैं, जहां चौटाला के नेतृत्व वाले इनेलो में बिखराव के बाद उनके सामने अपने पुराने कार्यकर्ताओं को एकजुट करने और राजनीतिक रूप से पार्टी को साबित करने की बड़ी चुनौती है. चौटाला के जेल में रहते हुए उनके छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला ने पार्टी में जान फूंकने की पूरी कोशिश की थी, लेकिन कामयाब नहीं हो सके. ऐसे में ओमप्रकाश चौटाला खुद पार्टी को दोबारा से खड़ा करने के साथ-साथ सियासी समीकरण भी बनाने में जुट गए हैं.
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