'कुंवारी लड़कियों को माता-पिता भरण-पोषण दें'…हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, जानें पूरा मामला

प्रयागराज: यूपी के इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि घरेलू हिंसा केस में कुंवारी लड़कियों को माता-पिता भरण-पोषण दें। इस मामले में धर्म या उम्र की कोई बंदिश नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा कि अविवाहित बेटियों को उनकी धार्मिक संबद्धता या उम्र की परवाह किए बिना अपने माता-पिता से …
प्रयागराज: यूपी के इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि घरेलू हिंसा केस में कुंवारी लड़कियों को माता-पिता भरण-पोषण दें। इस मामले में धर्म या उम्र की कोई बंदिश नहीं है। हाई कोर्ट ने कहा कि अविवाहित बेटियों को उनकी धार्मिक संबद्धता या उम्र की परवाह किए बिना अपने माता-पिता से घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण लेने का अधिकार है। एक घरेलू हिंसा के केस में दायर अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने ये फैसला सुनाया।
दरअसल, एक घरेलू हिंसा के मामले में तीन बहनों ने अपने पिता और सौतेली मां पर दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण का दावा करते हुए याचिका दायर की थी। इस याचिका के खिलाफ नईमुल्लाह शेख और एक अन्य ने उन्हें गुजारा भत्ता देने के आदेश को चुनौती दी थी। नईमुल्लाह शेख की याचिका खारिज करते हुए जज ज्योत्सना शर्मा ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक अविवाहित बेटी, चाहे उसकी उम्र कुछ भी हो, चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम, को गुजारा भत्ता पाने का अधिकार है।
बता दें कि लड़िकयों की याचिका पर ट्रायल कोर्ट ने अंतरिम भरण-पोषण का आदेश दिया था। इसी आदेश पर उनके पिता ने यह तर्क देते हुए चुनौती दी कि बेटियां वयस्क थीं और आर्थिक रूप से स्वतंत्र थीं। हालांकि हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही मानते हुए पिता की अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस दलील को खारिज कर दिया कि बेटियां बालिग होने के कारण भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकतीं हैं।
इस बात पर जोर दिया कि घरेलू हिंसा अधिनियम का उद्देश्य महिलाओं को अधिक प्रभावी सुरक्षा प्रदान करना है। उन्होंने कहा कि रखरखाव प्राप्त करने का वास्तविक अधिकार अन्य कानूनों से उत्पन्न हो सकता है, लेकिन इसे प्राप्त करने के लिए त्वरित और छोटी प्रक्रियाएं घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 में दी गई हैं।
