भारत
पाकिस्तान के आतंकी समूह तालिबान के इलाकों में चला रहे अपना कैंप, UN रिपोर्ट में दावा
jantaserishta.com
30 May 2022 6:03 AM GMT
x
नई दिल्ली: जैश ए मोहम्मद और लश्कर तैयबा जैसे पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन अफगानिस्तान के कई प्रांतों में टेरर कैंप चला रहे हैं. इतना ही नहीं कुछ आतंकी कैंप तो सीधे तालिबान के कंट्रोल में हैं. यह दावा यूएन ने अपनी रिपोर्ट में किया है.
संयुक्त राष्ट्र की एनालिटिकल सपोर्ट एंड सेंक्शन मॉनिटरिंग टीम की 13वीं रिपोर्ट में एक सदस्य देश के हवाले से यह दावा किया गया है कि जैश ए मोहम्मद अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत में 8 ट्रेनिंग कैंप चला रहा है. इनमें से 3 सीधे तालिबान के कंट्रोल में हैं.
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मसूद अजहर के नेतृत्व वाले जैश ए मोहम्मद संगठन की विचारधारा तालिबान से मिलती जुलती है. अफगानिस्तान में जैश का नया हेड कारी रमजान को बनाया गया है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि निगरानी टीम की पिछली रिपोर्ट में लश्कर-ए-तैयबा और तालिबान की सांठगांठ का जिक्र भी किया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान में लश्कर का नेतृत्व मावलवी यूसुफ कर रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, अक्टूबर 2021 में लश्कर के नेता मावलवी असदुल्ला की तालिबान के डिप्टी आंतरिक मंत्री नूर जलील से मुलाकात भी हुई थी.
इतना ही नहीं जनवरी 2022 में तालिबान की टीम ने नंगरहार में लश्कर के कैंप का दौरा भी किया था. लश्कर कुनार और नंगरहार में तीन कैंप चला रहा है. रिपोर्ट के मुताबिक, इससे पहले असलम फारूखी और एजाज अहमद लश्कर में शामिल थे. लेकिन इसके बाद दोनों ISIL-K गुट में शामिल हो गए. रिपोर्ट के मुताबिक, एक अन्य सदस्य देश ने कहा कि इस क्षेत्र में जैश और लश्कर की मौजूदगी का कोई सबूत नहीं है. क्योंकि वहां प्रभावी सुरक्षा अभियान चलाया जा रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान में विदेशी आतंकवादियों की वजह तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) है. इन लड़ाकों की संख्या कई हजार तक होने का अनुमान है. इसके अलावा अफगानिस्तान में ETIM, IMU, जैश, जमात अंसरउल्लाह और लश्कर भी सक्रिय है. इनके सैकड़ों आतंकी अफगानिस्तान में हैं.
इतना ही नहीं रिपोर्ट में कहा गया है कि तालिबान का राज आने के बाद से मुफ्ती नूर वली महसूद के नेतृत्व वाले टीटीपी को सबसे ज्यादा लाभ मिला है. तालिबान की सत्ता के बाद से इसने कई हमलों को अंजाम दिया और पाकिस्तान में भी ऑपरेशन चला रहा है.
टीटीपी ने तमाम दबाव के बावजूद अपने लड़ाकों को तालिबान इकाइयों में शामिल नहीं किया. वह एक स्टैंड-अलोन बल के रूप में काम कर रहा है. बताया जाता है कि इस ग्रुप के पाकिस्तान-अफगानिस्तान बॉर्डर इलाके में करीब 3000-4000 एक्टिव आतंकी हैं.
हक्कानी नेटवर्क को अभी भी अल-कायदा के सबसे करीबी के तौर पर देखा जाता है. यह नेटवर्क अल-कायदा की कथित विरासत को बनाए रखे है, साथ ही अल कायदा को स्थानीय सुविधा और समर्थन प्रदान करता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल अगस्त में तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया था. इसे बाद से हक्कानी नेटवर्क विभागों और मंत्रालयों की सुरक्षा का जिम्मा संभालने लगा है.
इतना ही नहीं हक्कानी नेटवर्क सबसे अच्छा सैन्य गुट बनकर उभरा. हक्कानी नेटवर्क अब बड़े पैमाने पर अफगानिस्तान में सुरक्षा को नियंत्रित करता है, जिसमें राजधानी काबुल की सुरक्षा भी शामिल है.
jantaserishta.com
Next Story