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नई दिल्ली | भारतीय सेना के पराक्रम का लोहा पूरी दुनिया मानती है। मई 1999 में पाकिस्तान की तरफ से हुई युद्ध की पहल के बाद भारतीय सेना ने उसे ऐसी धूल चटाई थी कि पाकिस्तान का सिर शर्म से झुक गया। हाल यह था कि पाकिस्तान ने अपने बहुत सारे सैनिकों का शव लेने से भी इनकार कर दिया था। कारगिल के युद्ध में भारतीय सैनिकों के शौर्य की गाथाएं हमेशा याद की जाती रहेंगी। 26 जुलाई का ही वह दिन था जब भारतीय सेना ने टाइगर हिल फतह करने के साथ ऑपरेशन को खत्म करने का ऐलान कर दिया था। इस बार देश 24वां विजय दिवस मना रहा है।
पाकिस्तानी सैनिक कारिगल में घुसपैठ की तैयारी काफी पहले से कर रहे थे। वहीं भारतीय सेना को इस बात की भनक नहीं थी। 3 मई 1999 को भारतीय सेना को इस बात की जानकारी चरवाहों की मदद से मिली। पाकिस्तानी सैनिक 6 नॉर्दर्न लाइट इंफैंट्री के कैप्टन इफेताकार कारगिल की आजम चौकी पर पहुंच गए थे। वहां से गुजर रहे कुछ चरवाहों की नजर उनपर पड़ी तो इसकी जानकारी भारतीय सेना को दी। इसके बाद चरवाहों के साथ सैनिक पहुंचे और पूरे इलाके का मुआयना किया। हेलिकॉप्टर से जांच के दौरान पता चल गया कि पाकिस्तानी सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए हैं।
1999 तक भारतीय सेना की यहां सिर्फ एक ब्रिगेड ही तैनात रहती थी। वहीं ठंड के मौसम में दोनें ही तरफ की सेनाएं हट जाती थीं। इन चोटियों की ऊंचाई 14 हजार से 18 हजार फीट है। पाकिस्तानी सेना एलओसी से करीब 10 किलोमीटर तक अंदर आ गई थी और सर्दियों में खाली छोड़ी हुई चोटियों पर अपने बंकर बना लिए। 3 मई को जब भारतीय सैनिक पहुंचे तो उन्हें बंदी बना लिया गया।
सबसे पहले भारतीय सेना को तोलोलिंग चोटी फतह करने का टास्क दिया गया। लेफ्टिनेंट जनरल मोहिंद्र पुरी के नेतृत्व में पहली कोशिश असफल हो गई। इसके बाद दो राजपूताना राइफल्स को जिम्मेदारी सौंपीगई। इस चोटी पर कोबरा दिगेंद्र सिंह ने अकेले ही 48 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था। कैप्टन विजयंत का भी इस चोटी को फतह करने में अहम योगदान माना जाता है। 13 जून तक इस चोटी पर फतह मिली थी।
8 जुलाई 1999 को भारतीय सेना ने टाइगर हिल पर तिरंगा लहराया जो कि बहुत अहम था। इस युद्ध में बहादुरी के साथ लड़ते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा शहीद हो गए लेकिन उन्होंने पॉइंट 5140 की चोटी फतह करवा दी। टाइगर हिल के बकाद बटालिक सेक्टर के जुबर हिल पर भारतीय सेना ने कब्जा किया। इस हिल पर मेजर सरवनन शही द हुए थे। दो महीने चले इस युद्ध में भारत के 527 सैनिक शहीद हुए थे वहीं पाकिस्तान के शवों की गिनती भी नहीं की जा सकी।
युद्ध खत्म होने के बाद सेना के बंकरों और खाइयों में पाकिस्तानी सैनिकों के शव पड़े थे। भारतीय सेना ने इनकी पहचान शुरू की। सैनिकों के बैग और जेब में पड़े कागजों से पहचान की जा रही थी। पाकिस्तान नहीं चाहता था कि वह बताए कि उसे कितनी बड़ी छति हुई है। इसे छिपाने के लिए उसने अपने सैनिकों की परवाह नहीं की। उसने केवल पांच शवों को स्वीकार किया। इसमें कैप्टन कर्ल शेर खान का शव भी शामिल था जिन्हें पाकिस्तानी सेना ने सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार निशान-ए-हैदर से नावाजा था। कहा जाता है कि भारतीय सेना ने शेर खान की जेब में लिखकर रख दिया था कि ये बहुत बहादुरी से लड़े।
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Harrison
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