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पिता की मौत के बाद मां के लिए नहीं मिला रेमडेसिविर इंजेक्शन, हताश पत्रकार ने की आत्महत्या

Apurva Srivastav
16 April 2021 1:25 PM GMT
पिता की मौत के बाद मां के लिए नहीं मिला रेमडेसिविर इंजेक्शन, हताश पत्रकार ने की आत्महत्या
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प्रकाश ने अपने हाथ की नस काटकर आत्महत्या कर ली

वह पत्रकार दूसरों के हक के लिए लड़ता रहा, कभी हार नहीं मानी. जब अपने परिवार पर कोरोना का कहर टूटा, तो वो टूट गया. जीवन से हार गया. महाराष्ट्र के सोलापुर के इस पत्रकार की जिंदगी की बेबसी आपकी आंखें डबडबा देगी. दो दिनों पहले पिता की कोरोना से मौत हो गई, मां कोरोना संक्रमित हैं. उन्हें रेमडिसिविर इंजेक्शन नहीं मिल रहा था. यह पत्रकार खुद कोरोना के संक्रमण से जूझ रहा था. एक साथ पूरे परिवार पर कोरोना का कहर टूटा था. कहां से ऑक्सीजन लाएं? कैसे रेमडेसिविर इंजेक्शन जुटाएं? जब इस खिड़की से उस खिड़की, इस दरवाजे से उस दरवाजे तक वह दौड़-दौड़ कर थक गया तो हताश होकर इसने वो किया जो कभी नहीं करना था, कम से कम अपनी बूढ़ी मां के लिए और लड़ना था, जिंदा रहना था.

सोलापुर में रहने वाले पत्रकार प्रकाश जाधव पिता को दो दिनों पहले ही खो चुके थे, मां के साथ किसी अनहोनी को होते देखने की हिम्मत नहीं थी. खुद भी होम क्वारंटाइन थे, इसलिए अपने आप को भी संभाल पाने की ताकत नहीं थी. जाधव जिंदगी से हताश हो गए और उन्होंने मौत को गले लगा लिया. प्रकाश ने अपने हाथ की नस काटकर आत्महत्या कर ली.
पिता को खोया, मां के लिए रोया, हमेशा के लिए सोया!
प्रकाश के पिता की दो दिनों पहले ही कोरोना से मृत्यु हो गई थी. पता चला कि मां भी कोरोना संक्रमित है. उन्होंने मां को अस्पताल में भर्ती करवाया. पूरी जान लगा दी कि किसी तरह से मां के इलाज के लिए ऑक्सीजन और रेमडेसिविर इंजेक्शन उपलब्ध हो सके. तभी उन्हें पता चला कि वे खुद भी कोरोना संक्रमित हैं. उन्होंने खुद को होम क्वारंटीन किया. कहीं कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था. आखिर निराशा और हताशा में उन्होंने अपने हाथ की नस काट कर आत्महत्या कर ली.
कोरोना के कहर का दर्दनाक मंज़र
महाराष्ट्र में हर रोज 50 हजार से ज्यादा नए कोरोना संक्रमित केस सामने आ रहे हैं. अनेक शहरों में कोरोना संक्रमितों के लिए बेड उपलब्ध नहीं हैं. पूरे राज्य में ऑक्सीजन की कमी है. दो दिनों पहले मुंबई से सटे नालासोपारा इलाके में 10 मरीजों की ऑक्सीजन के अभाव में मृत्यु की खबर सामने आई थी. अनेक अस्पतालों में तो बेड्स भी नहीं हैं. मरीजों को बेसुध हालत में कहीं कुर्सियों पर बैठा कर तो कहीं जमीन पर लेटा कर ऑक्सीजन दिया जा रहा है. कई अस्पतालों में मरीज के रिश्तेदारों को ऑक्सीजन की कमी बता कर वापस लौटाया जा रहा है.
ऐसी भयानक परिस्थिति में आम आदमी को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि आखिर वो करे तो क्या करे? सरकार से कोई उम्मीद रही नहीं, ऊपरवाले की दया पर जो बच पा रहा है, बच जा रहा है. जो नहीं बच पा रहा, शाम होते-होते तक मृतकों के आंकड़ों में गिना जा रहा है.


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