
कई एजेंसियों ने ये कयास लगाए थे कि जिस तरह से देश में मुफ्त बिजली की राजनीति जोर पकड़ रही है, उससे बिजली सेक्टर की पूरी व्यवस्था चरमरा सकती है। यह चिंता अभी भी कायम है, लेकिन इसके बावजूद पिछले पांच वर्षों के आंकड़े बता रहे हैं कि देश में न तो बिजली की आपूर्ति बुरी तरह से प्रभावित हुई है और न ही राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्काम) की माली हालात ज्यादा डांवाडोल हुई है।
क्या है इसकी वजह?
इसका कारण हाल के समय में बिजली क्षेत्र में कुछ सुधारों की पहल भी है, जिसमें स्मार्ट मीटरिंग व वितरण तथा पारेषण हानि (टीएंडडी लॉस) में उल्लेखनीय कमी लाना भी शमिल हैं। इसके साथ ही एक अन्य कारण राज्यों का बिजली सब्सिडी के लिए बजट में प्रविधान करना भी है। यह उस स्थिति से काफी अलग तस्वीर है जब राजनीतिक कारणों से बिजली मुफ्त तो दी जाती थी, लेकिन उसका भुगतान डिस्काम को नहीं होता था।
क्या कहते हैं आंकड़े?
वर्ष 2018-19 में अगर ग्रामीण भारत में चौबीस घंटों में औसतन 20.7 घंटे की बिजली दी जा रही थी तो वर्ष 2022-23 में यह अवधि 20.6 घंटे की रही है। पूरे देश के आंकड़े बता रहे हैं कि पिछले पांच वर्षों से लगातार शहरी क्षेत्र में 23.8 घंटे की बिजली आपूर्ति दी जाती रही है। ये आंकड़े बिजली मंत्री आरके सिंह ने ही लोकसभा में 27 जुलाई को पेश किए हैं।
ऐसा नहीं है कि सिर्फ बिजली आपूर्ति को लेकर ये आंकड़े देश की बिजली स्थिति में हो रहे सकारात्मक बदलाव की कहानी बता रहे हैं, बल्कि राज्यों की बिजली वितरण कंपनियों (डिस्काम) की स्थिति में भी सुधार के लक्षण साफ दिखाई दे रहे हैं।
क्या कुछ बोले बिजली मंत्री?
बिजली मंत्री ने बताया,
अधिकांश डिस्काम समय पर अपने बकाये का भुगतान करने लगी हैं। डिस्काम नई बिजली खरीद का भी समय पर भुगतान करने लगी हैं और इन पर जो पुराने बकाये थे, उसका भी किस्तों में भुगतान कर अपना बोझ घटा रही हैं।
20 जून, 2023 तक देश की सभी डिस्काम पर संयुक्त तौर पर सिर्फ 44,486 करोड़ रुपये का बकाया है। इन पर पूर्व की देनदारियां 30 मार्च, 2022 को 1,03,725 करोड़ रुपये थी। इसे किस्तों में घटाने की छूट केंद्र सरकार की तरफ से दी गई है। अब यह राशि घटकर 61,025 करोड़ रुपये रह गई है।
कितने राज्यों की डिस्काम पर है सबसे ज्यादा बकाया?
24 जुलाई, 2023 तक के आंकड़ों के मुताबिक,
जिन पांच राज्यों की डिस्काम पर सबसे ज्यादा बकाया है, उनमें मुफ्त बिजली की राजनीति आम तौर पर नहीं हुई है। ये राज्य हैं तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान और जम्मू व कश्मीर। इनमें कर्नाटक में मई, 2023 विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस सरकार ने मुफ्त बिजली का एजेंडा अब लागू किया है।
कर्नाटक सरकार ने 200 यूनिट तक की बिजली उपभोग करने वाले ग्राहकों से कोई भी शुल्क नहीं लेने का फैसला किया है। राजस्थान की कांग्रेस सरकार ने 01 जून, 2023 से सौ यूनिट तक के उपभोग को मुफ्त किया है। जाहिर है कि इन दोनों राज्यों की बिजली स्थिति पर क्या असर होता है, इसका पता कुछ महीनों बाद चलेगा।
महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक की डिस्काम पर हमेशा से सबसे ज्यादा राशि बकाया होती है। इसकी वजह इन राज्यों का औद्योगिकीकरण और ज्यादा बिजली खपत होने को बताया जाता है।
अपने बजट में राज्य करते हैं सब्सिडी का इंतजाम
राज्य में मुफ्त बिजली के बावजूद उस राज्य की बिजली स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ने की एक वजह यह भी है कि अब राज्यों को बिजली सब्सिडी की राशि का इंतजाम अपने बजट में ही करना पड़ता है। इस बारे में आरबीआई का स्पष्ट दिशा-निर्देश है।
इस वित्त वर्ष में उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने बजट में 1500 करोड़ रुपये का इंतजाम किया है ताकि राज्य के 14 लाख किसानों के बिजली बिल का भुगतान हो सके। पिछले वित्त वर्ष के दौरान इस मद में 2,000 करोड़ का इंतजाम किया गया था। इस तरह से डिस्काम को समय पर भुगतान मिल रहा है जिससे वह बिजली उत्पादक संयंत्रों को भी समय पर पैसे का भुगतान कर पा रही हैं।
बिजली बिलिंग की स्थिति में हुआ सुधार
एक वजह यह भी है कि अधिकांश राज्यों में बिजली बिलिंग की स्थिति में सुधार हुआ है, बिजली की चोरी पहले के मुकाबले कम हुई है।
बिजली मंत्रालय का ही आंकड़ा बताता है कि वर्ष 2021-22 में ट्रांसमिशन व डिस्ट्रीब्यूशन से होने वाली हानि घटकर 17 प्रतिशत रह गई है जोकि एक वर्ष पहले 22 प्रतिशत थी। नतीजा यह है कि वर्ष 2022-23 में देश में बिजली खपत में 9.5 प्रतिशत की रिकार्ड वृद्धि के बावजूद बिजली आपूर्ति को लेकर कोई बड़ी समस्या पैदा नहीं हुई है।
