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आलेख: डॉ. राकेश वशिष्ठ
भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए 'वन नेशन वन इलेक्शन' यानी 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की संभावना पर विचार करने के लिए बनी उच्चस्तरीय समिति ने गुरुवार को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली इस समिति का कहना है कि सभी पक्षों, जानकारों और शोधकर्ताओं से बातचीत के बाद ये रिपोर्ट तैयार की गई है. रिपोर्ट में आने वाले वक्त में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ-साथ नगरपालिकाओं और पंचायत चुनाव करवाने के मुद्दे से जुड़ी सिफारिशें दी गई हैं. 191 दिनों में तैयार इस 18,626 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि 47 राजनीतिक दलों ने अपने विचार समिति के साथ साझा किए थे जिनमें से 32 राजनीतिक दल 'वन नेशन वन इलेक्शन' के समर्थन में थे रिपोर्ट में कहा गया है, "केवल 15 राजनीतिक दलों को छोड़कर शेष 32 दलों ने न केवल साथ-साथ चुनाव प्रणाली का समर्थन किया बल्कि सीमित संसाधनों की बचत, सामाजिक तालमेल बनाए रखने और आर्थिक विकास को गति देने के लिए ये विकल्प अपनाने की ज़ोरदार वकालत की।रिपोर्ट में कहा गया है कि 'वन नेशन वन इलेक्शन' काएक देश एक चुनाव प्रणाली स्वागत योग्य विरोध करने वालों की दलील है कि "इसे अपनाना संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन होगा. ये अलोकतांत्रिक, संघीय ढांचे के विपरीत, क्षेत्रीय दलों को अलग-अलग करने वाला और राष्ट्रीय दलों का वर्चस्व बढ़ाने वाला होगा." रिपोर्ट के अनुसार इसका विरोध करने वालों का कहना है कि "ये व्यवस्था राष्ट्रपति शासन की ओर ले जाएगी." आजादी के बाद पहले दो दशकों तक साथ में चुनाव न कराने का नकारात्मक असर अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज पर पड़ा है. पहले हर दस साल में दो चुनाव होते थे, अब हर साल कई चुनाव होने लगे हैं. इसलिए सरकार को साथ-साथ चुनाव के चक्र को बहाल करने के लिए क़ानूनी रूप से तंत्र बनाना करना चाहिए.