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ज्ञानवापी में ASI के सर्वे का तीसरा दिन, पश्चिमी दीवार पर आधे पशु, आधे मानव की प्रतिमा दिखी', हिंदू पक्ष का दावा
Nilmani Pal
6 Aug 2023 2:11 AM GMT
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नई दिल्ली: ज्ञानवापी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) का सर्वे दूसरे दिन भी जारी रहा. इसी बीच ज्ञानवापी केस की वादिनी सीता साहू ने दावा किया कि पश्चिमी दीवार पर आधे पशु आधे मनुष्य की प्रतिमा देखी गई है. यह जांच एएसआई कर रही है. हालांकि एएसआई की तरफ से फिलहाल कोई बात सामने नहीं आई है. इतना ही नहीं, सीता साहू के अलावा किसी और ने इसकी पुष्टि नहीं की है. बता दें कि सर्वे में मुस्लिम पक्ष के 5 सदस्यों ने भी हिस्सा लिया. इंतजामिया मस्जिद कमेटी के वकील अखलाक और मुमताज सर्वे टीम के साथ आये थे.
मुस्लिम पक्ष के वकील मुमताज अहमद ज्ञानवापी परिसर से निकलने के बाद कहा कि हम लोग सर्वे का पूरा सहयोग कर रहे हैं. मुमताज अहमद ने बताया कि एएसआई टीम अभी ऊपर के हिस्से का सर्वे कर रही है.
हिंदू पक्ष के वकील सुधीर त्रिपाठी ने दावा किया कि मलबे में मूर्तियां नहीं, बल्कि मूर्तियों के टुकड़े मिले हैं. हमें पूरी उम्मीद है कि मूर्तियां भी बरामद होंगी. इंतजामिया मस्जिद कमेटी सहयोग कर रही है. उन्होंने तहखाने की चाबियां दे दी हैं. जिन्हें वह पहले नहीं दे रहे थे.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने फैसले को बताया दुर्भाग्यपूर्ण
ज्ञानवापी परिसर के एएसआई सर्वे का आदेश बरकरार रखे जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असंतोष जताते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आश्चर्यजनक और बेहद दुखद है. AIMPLB का कहना है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच द्वारा ज्ञानवापी मसले पर दिए गए फैसले से ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित सारे मुसलमानों को गहरी निराशा हुई है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ. सैयद कासिम रसूल इलियास ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला भी संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्षता के कानून और सिद्धांत के खिलाफ था. उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट इस में दखल देगा. क्योंकि, यह आदेश धार्मिक स्थल के मौजूदा धार्मिक चरित्र के विपरीत है. खासतौर पर तब जब सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही अयोध्या में बाबरी मस्जिद विवाद पर दिए अपने फैसले में प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 की व्याख्या कर स्पष्ट कर दिया था.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि मुस्लिम समुदाय को य़ह उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट प्लेसेस ऑफ़ वर्शिप एक्ट को ध्यान में रखते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाएगा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कुछ नहीं किया. इसकी वजह से अब प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के उल्लंघन के दरवाजे खुल जाएंगे. इसकी जिम्मेदारी अब किस पर जाएगी?
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