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श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर श्रीमद् भागवत कथा में निकाली गई श्री कृष्ण जन्म की झांकी

Shantanu Roy
6 Sep 2023 1:04 PM GMT
श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर श्रीमद् भागवत कथा में निकाली गई श्री कृष्ण जन्म की झांकी
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लखीसराय। श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर किया गया लड्डूगोपाल का दुध, दही धी, मधु एवं पंचामृत से महाअभिषेक श्री राणीसती मंदिर चितरंजन रोड के प्रांगण में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर डॉ मनोहर मिश्र महाराज ने विस्तार पूर्वक सुनाई। श्री कृष्ण जन्म की कथा पर महाराज श्री ने बताया की भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के राजा कंस के कारागार में होता है एवं भगवान श्री कृष्ण के माता पिता का नाम देवकी और वासुदेव है। देवकी और वासुदेव का तात्विक अर्थ बताते हुए डा. मनोहर मिश्र जी महाराज ने बताया कि देवकी यानी जो देवताओं की होकर अपना जीवन जीती है एवं वसुदेव यानी जिसमें देवता वास कर गए हो। देवकी वसुदेव के हाथ-पैर की हथकङियाँ बेड़ियाँ इस मानव जीवन की जिम्मेवारिया ही मानव के हाथ पैर को जकड़े रखने वाली हथकड़ी, बेड़ी है परन्तु जो भी मनुष्य अपने जीवन को देवताओं के अनुरूप बनाकर अपना जीवन जीने का संकल्प ले लेता है । उसके जीवन के सारे विपरित परिस्थितियों एवं जिमेवारियों से भगवान श्री कृष्ण उसे मुक्त कर देते है एवं भगवान श्री कृष्ण स्वयं अपनी ओर से कृपा कर के उस भक्त को प्राप्त हो जाते है।
देवकी एवं वसुदेव के आठवें संतान के रूप मे भगवान श्री कृष्ण के अवतार लेने के भाव बताते हुए डा. मनोहर, मिश्र महाराज ने बताया कि देवकी एवं वसुदेव के छ: संतान को कंस मार देता है यह कंस के द्वारा छः संतान की हत्या का रहस्य बताते हुए डा.मनोहर मिश्र जी महाराज ने बताया कि हर मानव जीवन का छः शत्रु है काम, क्रोध, मद् , मोह,लोभ एवं अहंकार जब मनुष्य के द्वारा इस छ: प्रकार के शत्रु को मार दिया जाता है यानी समाप्त कर लिया जाता है। तो सातवां संतान देवकी वसुदेव के बलराम जी जो शेष भगवान का अवतार है वो आने वाले थे तो भगवान के योग माया ने बलराम जी को देवकी माता के गर्भ से रोहनी माता के गर्भ में भेज देते हैं फिर आठवे संतान के रूप में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं हीं आ जाते हैं । महाराज श्री ने बताया की सातवां संतान शेष यानी काल का प्रतीक हैं मानो भगवान अपने भक्तों को यह बताना चाहते हैं कि हमारे भक्तों के जीवन में प्रारब्ध बस काल आना भी चाहे तो हम अपनी योग माया से काल का भी रास्ता बदल देते हैं । फिर भक्त को जीवन में काल नहीं स्वयं लडुगोपाल ही आकर अपने भक्तों को निहाल करते हैं। कथा के बीच में श्रीकृष्ण जन्म की मनमोहक झांकी भी प्रस्तुत किया गया एवं मध्यरात्रि के समय लड्डू गोपाल का दुध, दही, घी, मधु एवं पंचामृत से महाअभिषेक भी किया गया एवं श्रृंगार पुजा के बाद महाआरती भी किया गया।
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