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कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए आज पूजा अर्चना के बाद लगभग 8 मिनट तक बग्वाल खेली गई. इस त्योहार में श्रद्धालु पारंपरिक रूप से एक-दूसरे पर पथराव करते है. इस दौरान 77 लोग घायल हो गए हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क :- उत्तराखंड (Uttarakhand) के चंपावत (Champawat) जिले में रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) के पर्व पर मां बाराही धाम में प्राचीन परंपरा के अनुसार प्रसिद्ध बग्वाल खेली गई. कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए आज पूजा अर्चना के बाद लगभग 8 मिनट तक बग्वाल खेली गई. इस त्योहार में श्रद्धालु पारंपरिक रूप से एक-दूसरे पर पथराव करते है. इस दौरान 77 लोग घायल हो गए हैं. घायलों में ज्यादातर रण बाँकुरे, कुछ दर्शक और कवरेज कर रहे पत्रकार शामिल रहे. इस दौरान बाहर के लोगों के लिए बग्वाल में प्रवेश पर रोक लगाई गई थी.
दरअसल, देवीधुरा के प्रसिद्ध मां बज्र बाराही धाम में प्राचीन काल से चले आ रहे बग्वाल मेले की तैयारियां हो रही थी. वहीं, तड़के सुबह 6 बजे पीठाचार्य कीर्ति बल्लभ जोशी के नेतृत्व में वाराही धाम में विशेष अनुष्ठान संपन्न हुआ. सुबह 11:02 बजे से शंखनाद के साथ चारो खामों ने फलों की बग्वाल शुरू कर दी थी. उसके कुछ ही सेकेंड बाद वहां पत्थरो, ईटो और डंडों की बग्वाल शुरू हुई. वहीं, धर्मानंद पुजारी ने 8 मिनट बाद शंखनाद और चंवर झुलाकर बग्वाल समापन की घोषणा की. तब तक पत्थर और ईट लगने से रणबाँकुरे समेत 77 लोग घायल हो गए. सभी घायलों का नजदीकी अस्पताल में इलाज कराया गया. घायलों की हालत खतरे से बाहर बताई जा रही है. ऐसे में जिला प्रशासन की ओर से मौके पर एम्बुलेंस समेत पूरा मेडिकल स्टाफ तैनात किया गया था.
8 मिनट में बग्वाल पर्व पर 77 लोग घायल
बता दें कि इस पर्व में भक्तों को चार कुलों में विभाजित किया जाता है, जो देवी को प्रसन्न करने के लिए एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं. देवीधुरा मंदिर समिति के अध्यक्ष खिम सिंह लम्हरिया ने कहा कि पर्व सिर्फ आठ मिनट के लिए आयोजित किया गया था. लेकिन इतने कम समय में भी कुल 300 में से 77 श्रद्धालु घायल हो गए. यह पर्व हर साल देवी को प्रसन्न करने के लिए एक अनुष्ठान के रूप में आयोजित किया जाता है. लम्हरिया ने बताया कि कोविड -19 के कारण ऐहतियात के तौर पर प्रशासन में से किसी ने भी पर्व में हिस्सा नहीं लिया और बाहर से किसी भी मेहमान को आमंत्रित नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि बग्वाल फूलों और स्थानीय फलों से खेला गया.
हाई कोर्ट ने पत्थर युद्ध पर लगाई थी रोक
गौरतलब हैं कि बीते 6 साल से पहले तक यहां चार खामों के योद्धाओं के बीच पत्थर युद्ध होता था. पत्थरों की मार से घायल लोगों का रक्त एक व्यक्ति के बराबर बह जो के बाद मंदिर के पुजारी शंखनाद कर युद्ध रोक देते थे. लेकिन उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब यहां पत्थर युद्ध के बजाय फल और फूलों से बग्वाल खेली जाती है. हालांकि परंपरा को कायम रखने के लिए योद्धा अभी भी फल और फूलों के साथ सांकेतिक रूप से एक दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं.
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