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OMG: हर घंटे 416 मौतें, समय पर इलाज नहीं मिलने सेगंवानी पड़ रही जान

Nilmani Pal
6 May 2022 1:15 AM GMT
OMG: हर घंटे 416 मौतें, समय पर इलाज नहीं मिलने सेगंवानी पड़ रही जान
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सांकेतिक तस्वीर 

ये सच्ची कहानी है. एक रात एक मां को सीने में दर्द उठा. उनसे सांस लेते नहीं बन रहा था. तुरंत कार में बैठाकर उन्हें घर के पास ही स्थित अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल पहुंचे तो गेट पर ही कह दिया गया कि ये कोविड अस्पताल है और यहां दूसरे मरीजों का इलाज नहीं होगा. इसके बाद दूसरे अस्पताल की राह पकड़ी गई. वो भी कोविड अस्पताल था. वहां से भी लौटा दिया गया. आखिरकार उन्हें एम्स ले जाया गया, लेकिन रास्ते में ही उनकी सांसें बंद हो चुकी थीं. एम्स में डॉक्टरों ने देखा जरूर, लेकिन वही कहा जिसे कोई सुनना नहीं चाहता था.

अगर उस रात वो पहला अस्पताल उस मां को देख लेता तो हो सकता था कि वे बच जातीं. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में सामने आया कि उनकी मौत गैस्ट्रिक अटैक की वजह से हुई थी. सरल शब्दों में कहें तो गैस की वजह से सीने में दर्द उठा और गैस वहीं फंस गई और उनसे सांस लेते नहीं बना.

ये इकलौती कहानी नहीं है. लेकिन भारत में ऐसी घटनाएं हर रोज होती हैं. जहां समय पर मेडिकल सुविधा नहीं मिल पाने के कारण हजारों लोगों की मौत हो जाती है. कोरोना के दौर में ये आंकड़ा और बढ़ गया है. दो दिन पहले ही गृह मंत्रालय ने सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (CRS) की रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2020 में देश में 81.11 लाख लोगों की मौत हुई थी. इनमें से 45 फीसदी यानी 36.52 लाख लोग ऐेसे थी जिनकी मौत समय पर मेडिकल सुविधा मिलने की वजह से नहीं हुई. अगर हर दिन का आंकड़ा निकालें तो ये संख्या 10 हजार के ऊपर बैठती है. यानी हर घंटे 416 और हर मिनट 7 लोगों की मौत समय पर मेडिकल सुविधा नहीं मिलने से हो गई.

सीआरएस की रिपोर्ट बताती है कि 2020 में 28% मौतें अस्पतालों में हुई. जबकि 16.4% की मौतें अस्पतालों में तो नहीं हुईं, लेकिन किसी न किसी मेडिकल देखरेख में हुईं. इसके अलावा 0.8% मौतें एलोपैथी डॉक्टरों से इलाज करवाते समय हुई. वहीं 8.8 फीसदी मौतों को अन्य श्रेणी में रखा गया है, जिनमें मौत के समय मेडिकल सुविधाएं मिलने की पुष्टि नहीं हुई है.

कोरोना महामारी की वजह से दुनियाभर की सरकारों ने अपना पूरा ध्यान कोरोना मरीजों के इलाज पर लगा दिया. भारत में भी कोरोना के समय अस्पतालों में बाकी ऑपरेशन और सर्जरी को टाल दिया गया और उसे कोरोना मरीजों के लिए ही रिजर्व कर दिया गया. सितंबर 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने चेतावनी दी थी कि ऐसा करना खतरनाक हो सकता है, क्योंकि दुनियाभर में दूसरी बीमारियों से हर साल 4 करोड़ से ज्यादा मौतें होती हैं. जून 2019 में नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने देश में स्वास्थ्य पर खर्चे को लेकर चिंता जाहिर की थी. उन्होंने कहा था कि सरकार को जीडीपी का 2.5% हेल्थ पर खर्च करना चाहिए. उनका कहना था कि यूरोपीय देशों में हेल्थ पर जीडीपी का 7 से 8% खर्च किया जाता है, लेकिन भारत में ये सिर्फ 1.5% है.

2021-22 में केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर हेल्थ पर जीडीपी का 2.1% खर्च किया है. मई 2018 में आई साइंस जर्नल लैंसेट की 'हेल्थकेयर एक्सेस एंड क्वालिटी इंडेक्स' में 195 देशों में भारत की रैंक 145 थी. 2022-23 के बजट में केंद्र सरकार ने स्वास्थ्य मंत्रालय के लिए 86,606 करोड़ रुपये रखे हैं. इससे पहले 2021-22 में 74,600 करोड़ रुपये रखे थे. नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2020 के मुताबिक, 2017-18 में देश में हर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर सालभर में होने वाला सरकारी खर्च मात्र 1,657 रुपये था.

भारत के हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर में हालांकि सुधार भी हो रहा है. नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2021 के मुताबिक, अप्रैल 2020 तक देश में 41,245 सरकारी अस्पताल थे, जिनमें 8.25 लाख बेड थे. इसी साल 5 अप्रैल को राज्यसभा में सरकार ने बताया था कि देश में 13.01 लाख डॉक्टर्स हैं. इनके अलावा 5.65 लाख आयुष डॉक्टर्स भी हैं. ये आंकड़े नवंबर 2021 तक के हैं. इस लिहाज से हर 834 लोगों पर एक डॉक्टर है. डॉक्टरों के अलावा इंडियन नर्सिंग काउंसिल में 33.41 लाख नर्सिंग स्टाफ रजिस्टर्ड है. वहीं, देश के मेडिकल कॉलेजों और संस्थानों में यूजी कोर्स के लिए 89,875 और पीजी कोर्स के लिए 60,202 सीटें हैं.सोर्स न्यूज़ - आज तक

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