आर.के. सिन्हा
कभी-कभी तो लगता है कि कुछ अंतरराष्ट्रीय संगठन सिर्फ भारत को कोसने या भारत के खिलाफ प्रस्ताव परित करने के लिए ही बने हुए हैं। उनका कोई दूसरा काम ही नहीं है। इस तरह के एक संगठन का नाम है इस्लामिक सहयोग संगठन यानी ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कांफ्रेंस (ओआईसी) है। ये बात-बात पर सिर्फ भारत को कोसता रहता है। ताजा मामले में भारत को इसलिए कोस रहा है क्योंकि बकौल इसके भारत में अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित किय जा रहा है। ओआईसी तब तो सोता रहता है जब इस्लामिक देशों में गैर-मुसलमानों के साथ या चीन में मुसलमानों पर जुल्मों-सितम होता हैं। ओआईसी दुनियाभर के 57 इस्लामिक देशों का संगठन होने का दावा करता है। पर ये सऊदी अरब तथा ईरान के बीच गहरे मतभेदों के कारण चार कदम भी आगे नहीं बढ़ पाता है। सऊदी अरब अपने को सुन्नी मुस्लिम देशों का नेता मानता है। उधर, ईरान अपने को शिया मुसलमानों का संरक्षक समझता है।
ओआईसी अपने सदस्य देशों के बीच चल रहे आपसी विवादों को सुलझा पाने में भी आमतौर पर नाकाम ही रहता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में लगातार तनातनी चलती रहती है, पर ओआईसी इनके मतभेदों को दूर करने में विफल रहा है। ओआईसी को इस बात से भी कोई मतलब नहीं है कि सिर्फ बांग्लादेश की राजधानी ढाका में एक लाख से अधिक बिहारी मुसलमान शरणार्थी कैम्पों में नारकीय जिंदगी गुजार रहे हैं। बिहारी मुसलमान भारत के बंटवारे के वक्त पूर्वी पाकिस्तान में चले गए थे जो कि अब बांग्लादेश है । जब तक बांग्लादेश नहीं बना था तब तक तो इन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई। पर बांग्लादेश बनते ही बंगाली मुसलमान इन बिहारी मुसलमानों को अपना शत्रु मानने लगे। इसी मोटा-मोटी वजह यह थी कि ये बिहारी मुसलमान तब पाकिस्तान सेना का खुलकर साथ दे रहे थे जब पाकिस्तानी सेना पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में कत्लेआम कर रही थी। बिहारी मुसलमान नहीं चाहते थे कि पाकिस्तान बंटे। तब से ही इन्हें बांग्लादेश में नफरत की निगाहों से देखा जाता है। ये पाकिस्तान जाना भी चाहते हैं। पर नमकहराम पाकिस्तान सरकार इन्हें अपने देश में लेने को तैयार नहीं है। तो यह हाल है अपने को ओआईसी का नेता बनने वाले पाकिस्तान का।
इस्लामिक देशों के लिए फिलिस्तीन का सवाल बेहद अहम रहा है। पर ओआईसी ने इजराईल के खिलाफ बयानबाजी करने के अलावा कुछ ठोस पहल नहीं किया। हां, ये बीच-बीच में बयान जारी करके इजराईल को चेतावनी दे देता है फिलिस्तीनी लोगों और इस्लामिक दुनिया की भावनाओं को भड़काने की इसराईल की कोशिशों के भयानक परिणाम होंगे। हालांकि कभी इसने यह नहीं बताया कि कितने भयनक परिणाम होंगे और कैसे और क्या होंगे ये परिणाम । यह दोगलापन नहीं है तो क्या है ?
और चीन के नाम से तो मानो ओआईसी की जान ही निकलती है। सारी दुनिया को पता है कि चीन में मुसलमानों पर भीषण अत्याचार हो रहे हैं। चीन ने मुस्लिम बहुल शिनजियांग प्रांत में रहने वाले मुसलमानों को कसा हुआ है। उन्हें खान-पान के स्तर पर वह सब कुछ करना पड़ा रहा है,जो उनके धर्म में पूर्ण रूप से निषेध है। ये सब कुछ कम्युनिस्ट पार्टी के इशारों पर हो रहा है। इस सबके बावजूद इस्लामी दुनिया इन अत्याचारों पर चुप है। याद नहीं आता कि ओआईसी ने चीन में मुसलमानों पर हो रही ज्यादतियों पर एक शब्द भी विरोध का दर्ज नहीं किया है। आर्ब्जवर रिसर्च फाउंडेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन के शिनजियांग प्रांत में बने शिविरों में दस लाख से अधिक चीनी मुसलमानों को भयंकर ढंग से डराया-धमकाया जाता है। ये सब इसलिए हो रहा है ताकि चीनी मुसलमान कम्युनिस्ट विचारधारा को अपना लें। वे इस्लाम से दूर हो जाएं। इस सबके बावजूद ओआईसी ने चीन को पिछले मार्च में हुए ओआईसी के विदेश मंत्रियों के सम्मेलन में शिरकत करने की दावत दी। ये सम्मेलन इस्लामाबाद में 22-23 मार्च को हुआ था। चीन ने ओआईसी सम्मेलन में भाग भी लिया। अब भारत को हिजाब से लेकर कश्मीर और नुपुर शर्मा के बयान पर कोसने वाले इस्लामिक देश और उनके संगठन का दोहरा चेहरा देख लें। ओआईसी सम्मेलन में चीन की भागेदारी का किसी भी इस्लामिक देश ने विरोध नहीं किया। क्या कोई बता सकता है कि दस लाख से अधिक मुसलमानों पर चीनी दमन पर इस्लामिक संसार ने आंखों में पट्टी क्यों बाँधी हुई हैं? क्या ये चीनी मुसलमानों को अपना नहीं मानते?
अब रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने के मसले को ही ले लें। म्यांमार के पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश ने भी रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने से मना कर दिया था। बांग्लादेश कतई रोहिंग्या मुसलमानों को अपने यहां नहीं रखना चाहता। बांग्लादेश सरकार ने तो खुलकर कहा था कि, "ये रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा हैं, हमारे यहां पूर्व में भी कई घटनाएं घट चुकी हैं। यही कारण हैं कि हम उनको लेकर सावधान हैं।" मतलब एक इस्लामिक देश की तरफ से दूसरे इस्लामिक देश के शऱणार्थियों को शरण नहीं मिली। पर ओआईसी तब भी चुप रहा। उसने तब कोई प्रस्ताव बांग्लादेश के खिलाफ जारी नहीं किया। सऊदी अरब और पाकिस्तान ने भी रोहिंग्या मुसलमानों को अपने यहाँ घुसने नहीं दिया। रोहिंग्या मुसलमानों को लेकर इस्लामिक देशों को आखिरकार क्यों सांप सूंघ गया? रोहिंग्या मुसलमानों पर निर्वासित बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने मुस्लिम समुदाय की सही क्लास ले ली है। तस्लीमा नसरीन ने मुस्लिमों पर हल्ला बोलते हुए उनपर अपने ही लोगों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा, "मुस्लिम उन मुसलमानों के लिए रोते हैं जो गैर मुस्लिमों के जुल्म का शिकार होते हैं। मुस्लिम तब नहीं रोते जब मुस्लिमों पर मुस्लिमों द्वारा ही जुल्म किया जाता है।"तस्लीमा नसरीन सही तो कह रही हैं। सीरिया या इराक में मुस्लिमों द्वारा मुस्लिमों को मारने का कभी भी विरोध नहीं किया जाता। तब ओआईसी भी बयान नहीं देता। बहरहाल, ओआईसी भारत को कोसने का कोई अवसर नहीं छोड़ता। यह उसका चरित्र है। अब आप क्या कर सकते हैं। भारत की अवाम को या मौजूदा सरकार को ओ आई सी के इस दोगले चरित्र का कोई असर नहीं पड़ताI
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)