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नूपुर शर्मा मामला: सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के खिलाफ गणमान्य नागरिकों का खुला पत्र आया सामने, कही यह बात
jantaserishta.com
5 July 2022 9:52 AM GMT
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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक
नई दिल्ली: नूपुर शर्मा की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जजों जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की टिप्पणियों को लेकर विवाद जारी है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की टिप्पणियों के खिलाफ चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को हजारों चिट्ठियां भेजी जा रही हैं. अब देश के 117 गणमान्य नागरिकों ने सीजेआई को पत्र लिखकर जजों की टिप्पणी पर नाराजगी जताई है.
देश के कई हाईकोर्ट्स के पूर्व जज, नौकरशाह, सैन्य अधिकारी और बुद्धिजीवियों ने चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना को खुला पत्र लिखा है. पत्र लिखने वालों में हाई कोर्ट के पूर्व जज, पूर्व DGP, CBI निदेशक, राजदूत जैसे 77 पूर्व नौकरशाह और सेना के 25 पूर्व अधिकारी शामिल हैं.
इस पत्र में कहा गया है कि लोग कोर्ट की टिप्पणी पर स्तब्ध हैं. अलग अलग राज्यों और शहरों में दर्ज FIR को एक साथ जुड़वाना और एक साथ सुनवाई करने की याचिका लगाना किसी भी नागरिक का कानूनी अधिकार है. एक अपराध की कई जगह कई बार सजा नहीं हो सकती. सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट ने बिना कारण याचिका सुनने से मना किया और जो टिप्पणियां की वो याचिका के संदर्भ में बेतुकी थीं.
पत्र में इन लोगों ने ग्यारह (11) बिंदुओं पर कोर्ट की टिप्पणियों की आलोचना की है. पत्र पर दस्तखत करने वालों ने कोर्ट की टिप्पणियों को दुर्भाग्यपूर्ण और न्यायिक नैतिकता और सिद्धांतों के खिलाफ बताया है. इन्होंने कहा है कि नूपुर शर्मा न्यायिक प्रक्रिया और अपने अधिकारों के तहत संरक्षण और राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट के सामने आईं थी. लेकिन याचिका के आधार और प्रार्थनाओं से बेंच की टिप्पणियां कहीं मेल खाती नहीं दिखीं.
खुले पत्र में कहा गया है कि अगर वो टिप्पणियां न्यायिक प्रक्रिया और सिद्धांतों के मुताबिक थीं तो आदेश में उनका जिक्र क्यों नहीं था? आदेश के मुताबिक तो लगता है कि नूपुर शर्मा को न्यायिक राहत पाने के अधिकार से इंकार ही किया गया है. ये संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है. कोर्ट की टिप्पणियों से ये छवि बनी कि देश में जो कुछ हुआ इसके लिए नूपुर हो जिम्मेदार हैं. कोर्ट के सामने दायर याचिका में ये मुद्दा ही नहीं था कि वो दोषी है या नहीं. लेकिन कोर्ट ने टिप्पणियों के जरिए बिना ट्रायल पूरा हुए फैसला ही सुना दिया कि नूपुर शर्मा दोषी हैं.
न्यायिक प्रक्रिया से जुड़े लोग कोर्ट की टिप्पणियों से सदमे में हैं क्योंकि बेंच की टिप्पणियों के मुताबिक तो एफआईआर दर्ज होने के बाद गिरफ्तारी जरूरी है. इतना ही नहीं इस पत्र में बेंच की टिप्पणियों को दुर्भाग्यपूर्ण और न्यायिक सिस्टम पर धब्बा बताया है. कहा गया है कि ये लोकतांत्रिक मूल्यों को भी नुकसान पहुंचाने वाला है. इसे अनदेखा नहीं किया जा सकता. ऐसी टिप्पणियां वापस ली जानी चाहिए.
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