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अब अपराधी की संपत्ति से पीड़ित को मिलेगा न्याय, नए कानूनों में नए प्रावधान

Harrison
13 Aug 2023 7:44 AM GMT
अब अपराधी की संपत्ति से पीड़ित को मिलेगा न्याय, नए कानूनों में नए प्रावधान
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नई दिल्ली | आईपीसी और सीआरपीसी कानूनों में बदलाव के बाद पीड़ित को न्याय दिलाने के सिद्धांत पर ज्यादा ध्यान होगा। नए प्रस्तावित कानून के तहत कई धाराओं में बदलाव करके यह प्रावधान किया गया है, जिससे अपराधी की जब्त संपत्ति से पीड़ित को न्याय के रूप में मुआवजा मिल सके। एक अधिकारी ने कहा कि प्रस्तावित बदलावों में करीब 200 धाराओं में अलग-अलग तरीके से न्याय के बुनियादी सिद्धांत का ख्याल रखा गया कि दंड के बजाय न्याय पर फोकस हो। गृहमंत्री अमित शाह ने बदलाव को प्रस्तावित करते हुए कहा था कि न्याय की भारतीय अवधारणा पाश्चात्य दृष्टिकोण से पूरी तरह अलग है। भारतीय न्याय व्यवस्था में केंद्रबिंदु पीड़ित को न्याय दिलाना है। वहीं, दंड की व्यवस्था इसलिए है, जिससे इसे देखकर दूसरा कोई अपराध करने का दुस्साहस न करे।
कुर्की-जब्ती के संबंध में नई धारा
अधिकारी ने बताया कि अपराध की आय से जुड़ी संपत्ति की कुर्की-जब्ती के संबंध में एक नई धारा जोड़ी गई है। जांच करने वाला पुलिस अधिकारी यह संज्ञान लेने के लिए अदालत में आवेदन कर सकता है कि संपत्ति आपराधिक गतिविधियों के जरिये हासिल की गई है। इस प्रकार की संपत्ति को अदालत द्वारा जब्त किया जा सकता है और पीड़ितों को इसके माध्यम से मुआवजा दिया जा सकता है।
न्याय की राह में बाधा
अधिकारी ने कहा, आईपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जटिल प्रक्रियाओं के कारण अदालतों में भारी संख्या में मामले लंबित हैं। इससे न्याय मिलने में अत्यधिक देरी, गरीबों और सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का न्याय से वंचित होना, सजा की कम दर, जेलों में भीड़-भाड़ और बड़ी संख्या में विचाराधीन कैदी जैसी समस्या न्याय की राह में बाधा बनी हुई है।
33 फीसदी बोझ कम होगा
नए प्रस्तावित कानून में छोटे-मोटे केस मसलन 20 हजार तक संपत्ति अपराध से जुड़े मामले को संक्षिप्त ट्रायल से निपटा दिया जाएगा। इसे मजिस्ट्रेट के अलावा पुलिस अधिकारी भी कुछ मामलों में कर सकते हैं। ऐसे मामलों में अपराध स्वीकार किया जुर्माना दिया और मामला खत्म। अधिकारी ने कहा कम गंभीर मामले जैसे चोरी, चोरी की गई संपत्ति प्राप्त करना या रखना, घर में अनधिकृत प्रवेश, शांति भंग करने, आपराधिक धमकी जैसे मामलों में संक्षिप्त ट्रायल को अनिवार्य बनाया गया है। इसके अलावा, तीन वर्ष से कम की सजा के मामलों में मजिस्ट्रेट संक्षिप्त ट्रायल कर सकता है। इससे करीब 33 फीसदी मामले कोर्ट के बाहर निपट जाएंगे। अधिकारी ने कहा, यह व्यवस्था भी दंड के बजाय न्याय की अवधारणा से प्रेरित है।
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