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हैदराबाद (आईएएनएस)| हैदराबाद विश्वविद्यालय (यूओएच) के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चलता है कि हाल के दशकों में देश में गर्मियों में लू चलना ज्यादा आम बात हो गई है, जबकि सर्दियों में शीतलहर उतनी आम नहीं है। विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ फिजिक्स में सेंटर ऑफ अर्थ, ओशन एंड एटमोस्फेरिक साइंसेज के अनिंदा भट्टाचार्य, डॉ. अबिन थॉमस और डॉ. विजय कानवाडे ने इस अध्ययन का नेतृत्व किया। इसमें आईआईटी मद्रास के प्रो. चंदन सारंगी, वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) के डॉ. पी.एस. रॉय औश्र भारतीय मौसम विभाग् डॉ. विजय के. सोनी ने भी उनका साथ दिया।
शोधकतार्ओं ने 1970 से 2019 तक दैनिक अधिकतम और न्यूनतम तापमान के डेटा का उपयोग किया, ताकि देश के विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में असामान्य रूप से उच्च तापमान यानी लू और असामान्य रूप से कम तापमान यानी शीत लहर वाले दिनों की संख्या में उतार-चढ़ाव का पता लगाया जा सके।
टीम ने पाया कि जहां गर्मियों में लू के मामले हर साल बढ़ रहे हैं वहीं शीत लहर में कमी आ रही है। लगातार तीन दिन तक सामान्य से बहुत ज्यादा तापमान को लू कहा जाता है। रिपोर्ट के लेखकों ने पाया कि लू की घटनाएं प्रत्येक दशक में 0.6 की दर से बढ़ रही हैं।
लगातार तीन दिन या उससे अधिक समय तक असामान्य रूप से कम तापमान को शीत लहर कहा जाता है। द जर्नल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि शीत लहर की घटनाओं में प्रति दशक 0.4 की दर से कमी आ रही है।
देश के जलवायु क्षेत्रों को मोटे तौर पर चार प्रमुख शीर्षों में वर्गीकृत किया गया है - पहाड़ी (जहां पहाड़ी क्षेत्रों में कम तापमान के साथ जलवायु कठोर है); उपोष्णकटिबंधीय आद्र्र जलवायु; शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु; और उष्णकटिबंधीय शुष्क एवं आद्र्र जलवायु। लेखकों ने लू और शीत लहर में विपरीत रुख को रेखांकित किया है। उदाहरण के लिए, शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु क्षेत्र में लू अधिक आम है जबकि उसी क्षेत्र में शीतलहर उतनी आम नहीं है।
लेखकों ने मौसम विभाग के अवलोकन के साथ भविष्य की जलवायु की भविष्यवाणी करने के लिए उपयोग किए जाने वाले वर्तमान-पीढ़ी के कंप्यूटर मॉडल की भी तुलना की। उन्होंने पाया कि मॉडल देश में लू और शीत लहर की घटनाओं में हो रहे इन बदलावों को पकड़ने में विफल रहे। इससे यह बात रेखांकित होती है कि लू और शीत लहर क इन चरम घटनाओं को नियंत्रित करने वाले कारकों की बेहतर प्रक्रिया-स्तरीय समझ की जरूरत है और मौसम पूर्वानुमान मॉडल में उन्हें शामिल करने की जरूरत है।
मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के कारकों की वजह से पृथ्वी की सतह का तापमान औद्योगिक काल से पहले के मुकाबले एक डिग्री सिल्सियस बढ़ गया है। इसके कारण लू और शीतलहर की घटनाओं पर भी प्रभाव पड़ा है।
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