Jharkhand: झारखंड में नोटा का रहा है अहम किरदार, 2019 में 69% प्रत्याशी पिछड़े
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रांची: झारखंड में पिछले दो लोकसभा चुनावों के वोटिंग ट्रेंड में 'नोटा' एक बड़े किरदार के तौर पर उभरा है। वर्ष 2019 में राज्य में मताधिकार का इस्तेमाल करने वालों में 1.26 फीसदी ने 'नन ऑफ द एबव' (नोटा) के विकल्प को चुना था। इस कारण 69 फीसदी प्रत्याशी पिछड़ गए थे।
इससे पहले 2014 के चुनाव में 57 फीसदी प्रत्याशी नोटा से पिछड़ गए थे। 2013 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद मतदाताओं के सामने यह विकल्प भी है कि अगर वह चुनाव में खड़े प्रत्याशियों में से किसी को वोट न देना चाहें तो वह ईवीएम पर नोटा बटन दबा सकते हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में झारखंड की 14 सीटों में चार सीटों गोड्डा, गिरिडीह, खूंटी और सिंहभूम में विजेता और उपविजेता के बाद नोटा को सबसे अधिक वोट मिले थे।
इस चुनाव में कुल 229 प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें से कुल 159 को नोटा की तुलना में कम वोट मिले थे। इसी तरह 2014 के लोकसभा चुनाव में चुनाव लड़ने वाले 240 में से 137 प्रत्याशी ऐसे थे जो नोटा से पिछड़ गए थे।
झारखंड में सबसे ज्यादा सिंहभूम सीट पर 2.7 फीसदी मतदाताओं ने नोटा बटन का इस्तेमाल किया था। इससे पहले 2014 के चुनाव में इस सीट पर 3.4 फीसदी मतदाताओं ने यह विकल्प चुना था। यह सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित है।
चतरा, गिरिडीह, गोड्डा और कोडरमा सीट में 2014 की तुलना में 2019 में नोटा के वोट शेयर में इजाफा देखा गया, जबकि बाकी दस सीटों पर इसमें गिरावट दर्ज की गई।
संख्या के लिहाज से देखें तो पिछले चुनाव में राज्य में सबसे ज्यादा कोडरमा सीट पर सबसे ज्यादा 31,164 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया था। इसके बाद सिंहभूम में 24,270 और खूंटी में 21245 मतदाताओं ने यही विकल्प चुना था। रांची और धनबाद में सबसे कम 0.35 फीसदी वोटरों ने नोटा बटन दबाया था।
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