नई दिल्ली: गोवा और जम्मू कश्मीर समेत 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अभी कोई नेत्र बैंक नहीं है. आधिकारिक आंकड़ों से यह जानकारी मिली है. बहरहाल, डॉक्टरों का कहना है कि अकेले ऐसे बैंकों से उद्देश्य पूरा नहीं होता है क्योंकि खासतौर से कोविड-19 महामारी को देखते हुए नेत्रदान करने वालों की मांग बढ़ गयी है.
नगालैंड और सिक्किम में कोई नेत्र बैंक नहीं है:
मध्य प्रदेश के एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दाखिल सूचना का अधिकार (आरटीआई) आवेदन पर मिले जवाब के अनुसार देश में अभी कुल 320 नेत्र बैंक हैं. इसमें कहा गया है कि 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश - अंडमान और निकोबार द्वीप, अरुणाचल प्रदेश, दादरा और नागर हवेली, दमन और दीव, गोवा, जम्मू कश्मीर, लक्षद्वीप, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड और सिक्किम में कोई नेत्र बैंक नहीं है.
डॉ. श्रॉफ्स चैरिटी आई हॉस्पिटल में नेत्र बैंक की चिकित्सा निदेशक डॉ. मनीषा आचार्य ने कहा कि भारत में कुल 750 नेत्र बैंक हैं लेकिन उनमें से कुछ ही पूरी तरह काम कर रहे हैं, सभी साजोसामान से लैस हैं और देशभर में 80 प्रतिशत कॉर्निया संग्रह के लिए जिम्मेदार हैं.
कर्नाटक में 32 और गुजरात में 25 नेत्र बैंक हैं:
आचार्य ने 'पीटीआई-भाषा' से कहा कि देशव्यापी नेत्र बैंकिंग नेटवर्क वक्त की जरूरत है और साजोसामान से लैस एक नेत्र बैंक में नेत्र संग्रह के लिए प्रशिक्षित पेशेवर होने चाहिए. यह एक समाधान हो सकता है क्योंकि एक नेत्र बैंक स्थापित करने में बड़े निवेश और कई सरकारी नियामक संस्थाओं की मंजूरी की आवश्यकता होती है. आंकड़ों के अनुसार, त्रिपुरा, उत्तराखंड तथा मिजोरम जैसे राज्यों में महज एक नेत्र बैंक है. महाराष्ट्र में सबसे अधिक 77 नेत्र बैंक हैं. इसके बाद उत्तर प्रदेश में 41, कर्नाटक में 32 और गुजरात में 25 नेत्र बैंक हैं.
केवल एक जगह है जहां दान किए गए नेत्र रखे जाते हैं:
गुरुग्राम के फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में नेत्र रोग विज्ञान की निदेशक डॉ. अनिता सेठी ने कहा कि असल समस्या नेत्रदान को लेकर जागरूकता की कमी की है. उन्होंने कहा कि लोगों को पता ही नहीं है कि नेत्रदान क्या होता है. जब अधिक से अधिक नेत्रदान होंगे, और लोग अपनी आंखों को दान देने के लिए आगे आएंगे, तभी हमारे पास सैकड़ों और नेत्र बैंक हो सकते हैं इसलिए हमें नेत्र बैंक के बजाय नेत्रदान के बारे में अधिक जागरूकता फैलानी चाहिए क्योंकि नेत्र बैंक केवल एक जगह है जहां दान किए गए नेत्र रखे जाते हैं.
कॉर्निया में क्षति के कारण दृष्टि चले जाने को कहते हैं:
आचार्य ने कहा कि राष्ट्रीय दृष्टिहीनता और दृष्टिबाधित सर्वेक्षण (2019) के अनुसार, करीब 48 लाख लोग नेत्रहीनता से जूझ रहे हैं और कॉर्नियल नेत्रहीनता दृष्टिहीनता का दूसरा सबसे बड़ा प्रकार है. करीब 25,000 लोग हर साल मोतियाबिंद से प्रभावित होते हैं. दान किए गए नेत्रों से केवल कॉनियल नेत्रहीनता वाले लोगों को फायदा मिलता है. कॉर्नियल नेत्रहीनता आंख के आगे के हिस्से को कवर करने वाले ऊत्तक यानी कॉर्निया में क्षति के कारण दृष्टि चले जाने को कहते हैं. आरटीआई पर मिले जवाब के अनुसार, 2016-17 तक 3,35,940 कॉर्निया संग्रहण किए गए जबकि इस अवधि के दौरान 1,56,419 कॉर्निया प्रतिरोपण हुए.
न्यूज़ क्रेडिट: firstindianews