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अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के साथ ही पिछले साल काबुल में गुरुद्वारे पर हुए आतंकी हमले की जांच अधर में अटक गई है।
नई दिल्ली, अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के साथ ही पिछले साल काबुल में गुरुद्वारे पर हुए आतंकी हमले की जांच अधर में अटक गई है। राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने इस मामले में एफआइआर दर्ज कर जांच शुरू की थी और इस सिलसिले में नवंबर में उसकी टीम काबुल भी गई थी, लेकिन बदली परिस्थिति में जांच आगे बढ़ने की संभावना धूमिल हो गई है। पिछले साल 25 मार्च को काबुल स्थित गुरुद्वारे पर आतंकी हमले में 27 लोग मारे गए थे, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। इनमें कई भारतीय नागरिक थे। इसके बाद एक अप्रैल को एनआइए ने एफआइआर दर्ज कर इसकी जांच शुरू की थी। यह विदेशी धरती पर आतंकी हमले की जांच का पहला केस है।
नवंबर में काबुल दौरे के दौरान एनआइए की टीम ने जुटाए थे अहम जानकारी और सुबुत
इसके पहले एनआइए सिर्फ भारत में हुए आतंकी हमले की जांच करती रही थी। लेकिन एनआइए कानून में संशोधन कर उसे विदेशी धरती पर किसी भारतीय की हत्या या भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाने की आतंकी साजिश की जांच का अधिकार भी दे दिया गया था।
एनआइए के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि काबुल के गुरुद्वारे की जांच सही दिशा में चल रही थी, पिछले साल नवंबर में काबुल दौरे के दौरान एनआइए की टीम ने इस संबंध में अहम जानकारी और सुबुत भी जुटाए थे। एनआइए की टीम कुछ नए तथ्यों की तलाश के लिए दोबारा काबुल जाना भी चाहती थी, लेकिन कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के कारण यह संभव नहीं हो सका। उसके बाद से अफगानिस्तान की स्थिति बिगड़ती चली गई।
इस्लामिक स्टेट की आड़ में तालिबान ने ही कराया था यह हमला
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि आतंकी हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने ली थी और तालिबान ने इसमें हाथ होने से इन्कार किया था। लेकिन अफगानिस्तान की तत्कालीन एजेंसियों का कहना था कि इस्लामिक स्टेट की आड़ में यह हमला तालिबान ने ही कराया था और इस सिलसिले में उन्होंने कुछ सुबूत भी सौंपे थे।
हमले में शामिल मारे गए आतंकी का डीएनए टेस्ट भी किया गया था, जिसमें उसके अफगानिस्तान का नागरिक होने की पुष्टि हुई थी। लेकिन अब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया है, इसलिए जांच को वहां आगे बढ़ाना शायद संभव नहीं होगा।
Deepa Sahu
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