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नई दिल्ली: जूनागढ़ नवाब के वंशज मोहम्मद जहांगीर खानजी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से कश्मीर की तरह ही जूनागढ़ पर भी पाकिस्तान का दावा ठोंकने की अपील की है। पाकिस्तान रेडियो की खबर के मुताबिक, खानजी ने कहा है कि जूनागढ़ भी कश्मीर की तरह ही भारत-पाकिस्तान के बीच विवाद का एक बिंदु है, इसलिए पाकिस्तान की सरकार को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जूनागढ़ का मुद्दा भी उसी शिद्दत से उठाना चाहिए जिस ताकत से कश्मीर की बात की जाती है।
जहांगीर खानजी ने कहा कि 'जूनागढ़ पाकिस्तान है' सिर्फ एक नारा नहीं बल्कि मुहम्मद अली जिन्ना और जूनागढ़ के तत्कालीन नवाब महाबत खानजी का सपना भी रहा है। पाकिस्तान रेडियो के मुताबिक, आजादी के वक्त जूनागढ़ स्टेट के नवाब महाबत अली खान ने पाकिस्तान के साथ विलय पत्र पर दस्तखत किया था। आइए जानते हैं कि जूनागढ़ का भारत में विलय कैसे और किन परिस्थितियों में हुआ...
दरअसल, जूनागढ़ गुजरात का एक छोटा सा शहर है। 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजी शासन से देश को आजादी मिली तब यह काठियावाड़ के प्रमुख राजवाड़ों में एक था। 3,337 वर्ग मील फैले जूनागढ़ की आबादी 1941 की जनगणना के मुताबिक 6 लाख, 70 हजार, 719 थी जिनमें 80% जनसंख्या हिंदुओं की थी। जूनागढ़ के पोर्ट वेरावल और कराची की बीच की दूरी 300 मील है।
आजादी की शर्तों के मुताबिक, राजवाड़ों को भारत या पाकिस्तान में से किसी में विलय करने या फिर दोनों से अलग रहकर स्वतंत्र शासन चलाने की छूट दी गई थी। जूनागढ़ के नवाब मोहम्मद महाबत खानजी तृतीय ने भारत में विलय से आनाकानी की। वो अपने राजवाड़े का पाकिस्तान में विलय करना चाहते थे। उनकी दलील थी कि भले ही जूनागढ़ तीन तरफ से भारत से घिरा है, लेकिन एक तरफ से अरब सागर के रास्ते वो कराची से जुड़ा है।
पाकिस्तान में इस बात की भी चर्चा है कि भारत के तत्कालीन गृह मंत्री सरदार पटेल ने पाकिस्तान को जूनागढ़ के बदले कश्मीर छोड़ने का भी ऑफर दिया, लेकिन तब जिन्ना को लगा कि वो कश्मीर तो लेंगे ही, जूनागढ़ को भी लेकर रहेंगे। इसी मुगालते में पाकिस्तान सरकार ने सितंबर, 1947 को जूनागढ़ को पाकिस्तान में मिलाने के विलय पत्र पर दस्तखत कर दिया।
तब भारत सरकार ने संयम के साथ कदम बढ़ाया और नवाब का मन बदलने की कोशिश की। भारत सरकार के गृह सचिव वीपी मेनन ने नवाब को चिट्ठी लिखकर कहा कि वो पाकिस्तान के साथ अपने राजवाड़े के विलय का फैसला वापस लें। हालांकि, नवाब ने चालाकी दिखाते हुए कह दिया कि अब वो कुछ नहीं कर सकते, जो भी करना है, वो पाकिस्तान ही करेगा।
हैदरबााद रियासत ने भारत में शामिल होने से इनकार कर दिया था। निजाम चाहते थे कि ब्रिटिश कॉमनवेल्थ के झंडे तले हैदराबाद एक 'संप्रभु राज्य' बना रहे। भारत के लिहाज से उत्तर और दक्षिण के बीच पड़ने वाली हैदराबाद रियासत काफी अहम थी। पूरी तरह से स्वायत्ता देना तो विकल्प ही नहीं था। हैदराबाद ने इंस्ट्रुमेंट ऑफ एक्सेशन पर साइन करने से मना कर दिया। फिर एक समझौता हुआ कि सालभर तक यथास्थिति बरकरार रखी जाएगी।
मगर हैदराबाद उस समय सांप्रदायिक हिंसा की आगे में भी जल रहा था। कट्टरवादी मुस्लिम ताकतें हावी हो रही थीं। ऐसे में सितंबर 1948 के दरम्यान, 'ऑपरेशन पोलो' के तहत भारतीय सेना ने हैदराबाद पर हमला किया और उसे भारत में शामिल कर लिया।
आजादी के बाद हिंदू बहुलता वाले जूनागढ़ के नवाब ने पाकिस्तान के साथ जाने का फैसला किया, जबकि रियासत की सीमा पाकिस्तान से लगती भी नहीं थी। भारत सरकार इस फैसले से नाखुश थी, उसे डर था कि अगर जूनागढ़ पाकिस्तान में गया तो और सांप्रदायिक हिंसा और भड़क उठेगी। सरकार ने जूनागढ़ के अधीन आने वाले दो राज्यों को अपने में मिला लिया और रियासत की सप्लाई लाइन काटकर चारों तरफ सेना लगा दी।
बॉम्बे में जूनागढ़ की एक अंतरिम सरकार गठित की गई और पाकिस्तान में शामिल होने का खुलकर विरोध हुआ। इसके बाद नवाब साहब कराची भाग गए और जूनागढ़ के भारत में मिलने का रास्ता साफ हुआ। फरवरी 1948 में जनमत संग्रह कराया गया। 90% से ज्यादा लोगों ने भारत को चुना।
इंदौर उन चुनिंदा रियासतों में से थे जो 15 अगस्त से पहले तक भारत का हिस्सा नहीं बनी थीं। लेकिन आजादी के कुछ घंटों बाद ही महाराजा होलकर का संदेशा आ गया। एक तरफ जहां जूनागढ़ और हैदराबाद का विरोध सरकार को परेशान किए हुए था, इंदौर के फैसले से थोड़ी राहत मिली।
1946 में त्रावणकोर के दीवान इस बात पर अड़ गए कि अंग्रेजों की रवानगी के बाद उनका राज्य स्वतंत्र रहेगा मगर भारत और पाकिस्तान के साथ संधियां करने को तैयार है। कुछ ब्रिटिश राजनेताओं और मोहम्मद अली जिन्ना ने स्वतंत्र त्रावणकोर को समर्थन दिया जिससे दीवान के हौसले बढ़ गए। लेकिन जुलाई 1947 में केरल सोशलिस्ट पार्टी के हमले में दीवान साहब बाल-बाल बच गए। इस घटना का नतीजा यह हुआ कि कुछ ही दिन के भीतर त्रावणकोर भारत का हिस्सा बन गया।
अधिकतर हिंदू आबादी वाले भोपाल के नवाब और जिन्ना के बीच गहरी दोस्ती थी। वह कांग्रेस को दुश्मन समझते थे। उन्हें लगता था कि आजादी से मुस्लिम 'बेचारे, बेसहारे' हो जाएंगे और भारत एक कम्युनिस्ट स्टेट बन जाएगा। नवाब का सुझाव था कि भोपाल को स्वतंत्र रहना चाहिए लेकिन लॉर्ड माउंटबेटन की एक चिट्ठी और बाकी रियासतों का रवैया देख नवाब का मन बदल गया। हां, उन्होंने एक शर्त जरूर रखी कि भोपाल के भारत में शामिल होने की घोषणा आजादी के 10 दिन बाद की जाए।
जोधपुर उन राज्यों में अपवाद था जिन्होंने भारत में शामिल होने में आनाकानी दिखाई। हिंदु बहुत आबादी थी और हिंदू शासक भी। राजा भारत में शामिल तो होना चाहते थे मगर पाकिस्तान के साथ भी तोल-मोल कर रहे थे। सीमावर्ती जोधपुर को खोना भारत को स्वीकार नहीं था।
ऐसे में सरदार पटेल ने दखल दी। उन्होंने राजा को कुछ और रियायतें दीं और पूछा कि सांप्रदायिक हिंसा के समय वह किसका पक्ष लेंगे, जिसके बाद राजा मान गए।
भारत सरकार ने इस मुद्दे पर पाकिस्तान को समझाने की कोशिश की कि आखिर वो भारत की चौहद्दी में घिरे इलाके पर शासन कैसे कर पाएगा? प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ-साथ गवर्नर जनरल माउंट बेटन ने पाकिस्तान के गवर्नर जनलर मोहम्मद अली जिन्ना और प्रधानमंत्री लियाकत अली खान से इस संबंध में कई बार बात की, हालांकि बात नहीं बनी। जब पाकिस्तान नहीं माना तो भारत को अपनी उंगली टेढ़ी करनी पड़ी। भारत सरकार ने जूनागढ़ की सभी सीमाएं बंद कर दीं। भारत की भृकुटि तनते ही नवाब पूरे परिवार के साथ अक्टूबर 1947 के आखिरी दिनों में कराची पहुंच गए।
इससे पहले, सितंबर महीने में ही काठियावाड़ के कुछ राज्यों कांग्रेस नेताओं ने मिलकर मुंबई में 'अर्जी हुकूमत' के नाम से जूनागढ़ की समानांतर सरकार का गठन कर लिया था। 'अर्जी हुकूमत' के स्वंसेवक जब जूनागढ़ की तरफ बढ़ने लगे तो वहां के दीवान शाह नवाज भुट्टो ने डर के मारे भारत सरकार को पत्र लिखकर जूनागढ़ का प्रशासन संभालने की गुहार लगाई। शाह नवाज कराची के थे जिनके पुत्र जुल्फीकार अली भुट्टो और पोती बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं।
बहरहाल, दीवान के आग्रह पर भारत सरकार ने जूनागढ़ का प्रशासन संभाल लिया। 9 नवंबर, 1947 को राजकोट के कमिश्नर एमएन बुच जूनागढ़ पहुंच गए। इस पर पाकिस्तान शोर-शराबा करने लगा। उसने जूनागढ़ से भारतीय सैनिकों की वापसी की मांग की। तब भारत ने कहा कि उसने जूनागढ़ पर कब्जा नहीं किया है बल्कि वहां अफरा-तफरी के माहौल पर नियंत्रण पाने के लिए सेना भेजी है।
भारत ने जनमत संग्रह करवाने का ऑफर भी दिया, लेकिन पाकिस्तान ने इसे ठुकरा दिया। हालांकि, भारत ने जूनागढ़ के शासन-प्रशासन में स्थिरता आते ही 20 फरवरी, 1948 को जनमत संग्रह करवाया गया। इसमें कुल 1,90,870 मतदाताओं ने भाग लिया जिनमें सिर्फ 91 ने पाकिस्तान के समर्थन में मतदान किया। बाकी सभी ने जूनागढ़ के भारत में विलय का समर्थन किया।
दरअसल, मोहम्मद जहांगीर खानजी ने जूनागढ़ का राग कोई पहली बार नहीं अलापा है। उन्होंने जुलाई 2001 में भी इसी मुद्दे पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। तब उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान को जूनागढ़ पर भारत से बातचीत करने का सुझाव देते हुए कहा कि उन्हें तीसरा पक्ष के तौर पर बातचीत में शामिल किया जाए। जहां तक बात पाकिस्तान सरकार की है तो मौजूदा प्रधानमंत्री इमरान खान ने पिछले वर्ष 4 अगस्त को पाकिस्तान का नया नक्शा पेश किया जिसमें जूनागढ़ का इलाका भी शामिल है। भारत ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से संविधान का अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी कर दिया था। इमरान ने इसी घटना के एक साल पूरा होने पर खुन्नस में जूनागढ़ को पाकिस्तान में दिखाने वाला नक्शा पेश किया था।
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