भुवनेश्वर। ओडिशा ने कभी भी तथाकथित सामाजिक न्याय आंदोलनों या उससे पैदा हुई जाति-आधारित राजनीति को तवज्जो नहीं दी। ओडिशा की राजनीति के कद्दावर नेता और मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक तत्कालीन जनता दल की उन चंद आवाजों में से थे, जिन्होंने 1990 के दशक के दौरान शुरू में राज्य में मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने से भी इनकार कर दिया था।
करिश्माई नेतृत्व, भ्रष्टाचार, सामाजिक कल्याण उपाय और सुशासन जैसे मुद्दे हमेशा से ओडिशा में चुनाव परिणामों को प्रभावित करते रहे हैं। यही कारण है कि भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा की छवि बनाने में कामयाब रहे सीएम नवीन पटनायक के करिश्माई नेतृत्व में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (बीजद) पिछले दो दशक से अधिक समय से प्रचंड बहुमत के साथ राज्य पर शासन कर रहा है।
देश में जाति-आधारित जनगणना के एक मजबूत समर्थक के रूप में उभरने के बावजूद बीजद ने पहले भी कई बार सामान्य जनगणना के साथ-साथ जाति-आधारित सर्वेक्षण के लिए दबाव डाला है, लेकिन केंद्र ने इस मांग को खारिज कर दिया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को 2021 में सौंपे गए एक ज्ञापन में बीजद प्रतिनिधिमंडल ने आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा में बदलाव के लिए जाति-आधारित जनगणना और केंद्रीय कानून की मांग की। प्रतिनिधिमंडल ने कथित तौर पर एक कुशल आरक्षण नीति तैयार करने के लिए अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) श्रेणी के विस्तृत वैज्ञानिक डेटाबेस की आवश्यकता के बारे में शाह को समझाने के लिए कई अदालती फैसलों का भी हवाला दिया।
बीजद ने ओबीसी की सटीक आबादी की पहचान करने और उसका पता लगाने के लिए जाति आधारित जनगणना की मांग की। सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं ने तर्क दिया कि सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) या ओबीसी आबादी की सटीक संख्या के बारे में प्रामाणिक डेटा के अभाव में ओबीसी समूहों के लिए केंद्रित कल्याण कार्यक्रम तैयार नहीं किए जा सकते। विश्लेषकों की राय है कि बीजद संख्यात्मक रूप से मजबूत अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) वोटों को लुभाकर जाति जनगणना को भुनाने की कोशिश कर रहा है।
देश में हर राजनीतिक दल अपना वोट बैंक बढ़ाना चाहता है। बीजद भी यही चाहता है। अगर अन्य दल ओबीसी वोट बैंक को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं तो बीजद को भी यही कोशिश क्यों नहीं करनी चाहिए। अपनी संख्यात्मक ताकत के कारण हर राजनीतिक दल ओबीसी वोट शेयर की ओर आकर्षित होता है। पार्टियों के बीच ओबीसी वोट हासिल करने की होड़ मची हुई है। जो लोग इस पर आपत्ति करते थे वे अब ओबीसी को लुभाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। राजनीतिक पर्यवेक्षक प्रसन्ना मोहंती ने कहा कि इसलिए, हर कोई अब जाति-आधारित जनगणना की मांग कर रहा है। केंद्र द्वारा जाति-आधारित जनगणना की मांग को खारिज करने के बाद, ओडिशा सरकार ने राज्य में पिछड़े वर्ग के लोगों की सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति जानने के लिए एक सर्वेक्षण किया। रिपोर्ट के अनुसार, सर्वेक्षण से पता चला है कि 208 पिछड़ा वर्ग समुदाय ओडिशा की कुल आबादी का 39 प्रतिशत है। सूत्रों का दावा है कि राज्य में कुल 53,96,132 घर हैं, जिनकी आबादी 1,94,88,671 है, जो पिछड़े वर्ग के हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार ओडिशा की जनसंख्या 4,19,74,218 है।