डॉ. वेदप्रताप वैदिक
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीशकुमार पर भाजपा के नेताओं ने फिर से हमला शुरु कर दिया है। यह हमला राजनीतिक नहीं है। सांप्रदायिक है लेकिन है धर्म के नाम पर! गया के विष्णुपद मंदिर में नीतीश अपने साथ अपने सूचना मंत्री मोहम्मद इस्राइल मंसूरी को अंदर क्यों ले गए? यह सवाल आज बिहार में जमकर उछल रहा है। बिहार के भाजपाई नेता नीतीश पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने मंदिर की मर्यादा का उल्लंघन किया है। वे वहां पर हिंदू मंदिर में एक मुसलमान को अंदर ले गए थे। ऐसा करके उन्होंने भगवान के गर्भगृह को अपवित्र करवा दिया है।
अपने इस अपकर्म के लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए। उन्होंने नीतीश से पूछा है कि क्या वे मक्का की मस्जिद में किसी हिंदू को ले जा सकते हैं? जो लोग ये सवाल उठा रहे हैं, जाहिर है कि वे राजनीति से प्रेरित होकर ही उठा रहे हैं? वरना मंदिर तो भगवान का घर है और अगर ऐसा है तो हर इंसान, जो कि भगवान की संतान है, उसमें उसे जाने का हक क्यों नहीं होना चाहिए? यह बात हर पूजा-गृह पर लागू होती है- वह मंदिर हो, मस्जिद हो, गिरजा हो, गुरुद्वारा हो या साइनेगाॅग हो। मक्का-मदीना में गैर-मुसलमानों के प्रवेश को लेकर अरबों के बहुत पुराने कारण रहे हैं। वे उस समय के लिए शायद ठीक थे लेकिन मुसलमान लोग अभी भी लकीर के फकीर बने हुए हैं। उनको बदलना चाहिए लेकिन भारत के हिंदू भी उनको अपना "गुरु" धारण करने पर उतारु क्यों हैं? वे उनकी नकल करना क्यों जरुरी समझते हैं? मेरा अनुभव तो कुछ दूसरा ही है। मैं जब 1981 में पहली बार पाकिस्तान गया तो जहाज में मेरे पास बैठी मुस्लिम युवती मुझे इस्लामाबाद के एक मंदिर में आग्रहपूर्वक ले गई।
मैं मूर्तिपूजा कतई नहीं करता लेकिन वह खुश रहे, इसलिए मैं चला गया। एराक के बगदाद में पीर गैलानी की प्रसिद्ध दरगाह और ईरान में मशद की विश्वप्रसिद्ध मस्जिद में भी मुझे जाने का अवसर मिला। मुझे किसी ने भी रोका नहीं, मेरी धोती और चोटी के बावजूद! पेशावर में बुरहानुद्दीन रब्बानी (जो बाद में अफगान राष्ट्रपति बने) के साथ मैं नवाज़े-तरावी में बैठा। लंदन के यहूदी साइनेगाॅग में मेरे मित्र राॅबर्ट ब्लम मुझे ले गए और वेद-पाठ के साथ मैंने वहां भाषण दिया। वाशिंगटन और न्यूयार्क के गिरजाघरों में कई रविवारों को मेरे भाषण भी होते रहे। मुझे कभी यह लगा ही नहीं कि मैं हिंदू पिता की संतान हूं, इसलिए अन्य धर्मों के पूजा-स्थलों में जाने से मेरा धर्म भ्रष्ट हो जाएगा या उनका हो जाएगा या फिर दूसरों का वह पूजा-स्थल भ्रष्ट हो जाएगा। विष्णुपद मंदिर में अंसारी ने जाकर पूजा-पाठ किया या मूर्तियों का अपमान किया? उस मंदिर का सम्मान बढ़ गया। उसे एक नया भक्त मिल गया। बिहारी भाजपाइयों को तो नीतीश का अभिनंदन करना चाहिए कि उन्होंने उस मंदिर की प्रतिष्ठा बढ़वा दी। भगवान विष्णु भी गदगद होंगे लेकिन भोले भक्त फिजूल दुखी हो रहे हैं।