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भारत में मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा और आगे की चुनौतियाँ

Nilmani Pal
26 Dec 2022 8:17 AM GMT
भारत में मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा और आगे की चुनौतियाँ
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पप्पू फरिश्ता

दुनिया की लगभग आधी आबादी महिलाओं की है। इतनी बड़ी संख्या में उपस्थित होने के बावजूद, महिलाओं को अक्सर हाशिए पर रखा जाता है, व उनको भेदभाव और उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है। इस असमानता से कई तरीकों से निपटा जा सकता है, जैसे घर के स्वास्थ्य, पोषण और आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए शिक्षा, जो देश की अर्थव्यवस्था की एक सूक्ष्म इकाई है। शिक्षा में लैंगिक असमानताएं, के साथ ही साथ अन्य सभी सामाजिक और जनसांख्यिकीय संकेतक, अत्यधिक लैंगिक भेदभावपूर्ण सामाजिक व्यवस्था में लड़कियों और महिलाओं की असमान स्थिति को दर्शाते हैं। जबकि भारत में हमेशा लैंगिक अंतर रहा है, परन्तु मुस्लिम महिलाओं की स्थिति और बिगड़ती जा रही है।

फोटो - निजाम कॉलेज हैदराबाद


हाल के अध्ययनों के अनुसार, पुरुष शिक्षा की तुलना में महिला शिक्षा सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए अधिक महत्वपूर्ण है। यह समझना जरूरी है कि अगर किसी भी देश की महिलाएं अशिक्षित होंगी तो आधी आबादी अंजान रह जाएगी।"

मुसलमान, जो भारत का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह हैं और उनकी लगभग 15 प्रतिशत आबादी, मानव विकास सूचकांक में काफी पीछे है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 62.41% मुस्लिम पुरुषों की तुलना में केवल 51.9% मुस्लिम महिलाएं साक्षर हैं, जो दोनों लिंगों (क्रमशः 55.98% और 70.78%) में उनके हिंदू समकक्ष की तुलना में बहुत कम है। मुसलमानों में स्कूल छोडने की दर 17.6% है, जो राष्ट्रीय औसत 13.2% से अधिक है। शीर्ष कॉलेजों में, प्रत्येक 25 स्नातक छात्रों में से केवल एक और प्रत्येक 50 स्नातकोत्तर छात्रों में से एक मुस्लिम है। मुसलमान सभी पाठ्यक्रमों का एक छोटा हिस्सा बनाते हैं, विशेष रूप से स्नातकोत्तर स्तर पर और अक्सर विज्ञान धारा की परिधि पर होते हैं। स्थिति तब और गंभीर हो जाती है जब प्रतिशत की गणना केवल मुस्लिम महिलाओं के लिए की जाती है।

फोटो - निजाम कॉलेज हैदराबाद


इस दुखद स्थिति के लिए कई सामाजिक-आर्थिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कारणो को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। मुस्लिम माता-पिता, विशेष रूप से निम्न सामाजिक आर्थिक वर्ग से, अपने बेटों को स्कूल भेजते हैं, लेकिन अपनी बेटियों को नहीं। दूसरा, मुस्लिम माता-पिता, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में, अपने लड़कों को बेहतर स्कूलों में भेजते है। दिलचस्प बात यह है कि इस्लाम में जब शिक्षित होने के अधिकार की बात आती है तो महिलाओं पर पुरुषों को कोई वरीयता नहीं दी जाती है। दोनों को अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। शिक्षा से संबंधित कुरान की आयतें और ज्ञान अर्जन की वकालत की गई है।

फोटो - निजाम कॉलेज हैदराबाद


हमेशा पुरुषों और महिलाओं दोनों को संबोधित किया गया है। पवित्र कुरान की पहली अयात ने सभी के लिए शिक्षा के सिद्धांत का समर्थन किया, जिसमें शामिल था जिसका अर्थ था 'सुनाना' - एक लिंग तटस्थ शब्द जो कि उस समय महत्वपूर्ण हो जाता है जब अक्सर बालिकाओं को जनम के बाद मार दिया जाता था। शिक्षा महिलाओं को अज्ञानता से दूर कर आत्म-सम्मान को बढ़ाती है, उन्हें अपने जीवन पर नियंत्रण करने में सक्षम बनाती है और महिलाओं की प्रगति का मार्ग सुदृढ करती है, महिलाएं समाज की रीढ़ हैं। वे उतने ही महत्वपूर्ण है जितने पुरुष हैं और एक शिक्षित महिला एक बेहतर इंसान, एक सफल मां और एक जिम्मेदार नागरिक हो सकती है। एक अच्छी शिक्षित महिला अपने बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए जोर देगी ताकि वे उससे बेहतर जीवन का आनंद उठा सकें।

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