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नई दिल्ली: काशी की ज्ञानवापी मस्जिद से लेकर मथुरा की ईदगाह, दिल्ली के कुतुबमीनार-जामा मस्जिद और यूनिफॉर्म सिविल कोड पर सियासत तेज हो गई है. काशी-मथुरा का तो मामला अदालत के दहलीज तक पहुंच गया है. इन तमाम मुद्दों पर भले ही राजनीतिक दल और मुसलमान खामोशी अख्तियार किए हुए हों,लेकिन मुस्लिम संगठन सक्रिय हो गए हैं. दिल्ली से लेकर देवबंद और लखनऊ तक मुस्लिम संगठनों के बैठकों का दौर जारी है. इनमें मुसलमानों से जुड़े मुद्दों पर विचार करने के साथ-साथ आगे की रणनीति के लिए रूपरेखा भी तय की जा रही है.
मुसलमानों के सामने मौजूदा खड़ी समस्याओं पर विचार करने के लिए देवबंद में जमीयत उलेमा-ए-हिन्द ने 28 मई को दो दिवसीय एक कॉन्फ्रेंस बुलाई है. इस सम्मेलन में जमियत उलेमा-ए-हिन्द से जुड़े हुए 5000 मौलाना और मुस्लिम बुद्धिजीवी शामिल होंगे. मौलाना महमूद मदनी की अध्यक्षता में बुलाई गई इस बैठक में एजेंडा मौजूदा समय में मुसलमानों के सामने पेश सामाजिक-राजनीतिक-धार्मिक चुनौतियों पर विचार कर आगे की रणनीति बनाने पर मंथन किया जाएगा.
जमियत उलेमा-ए-हिन्द के महासचिव नियाज फारूकी ने कहा कि इस समय देश में जिस तरह से मुस्लिमों के सामने तमाम धार्मिक और राजनीतिक संकट खड़े हुए हैं. देश में बढ़ती सांप्रदायिक घटनाएं और कॉमन सिविल कोड का मुद्दा उठाया जा रहा है. इन्हीं सारे मुद्दों को लेकर हमने देवबंद में बैठक बुलाई है. उन्होंने कहा कि काशी-मथुरा के मुद्दे पर हम अपना स्टैंड पहले साफ कर चुके हैं कि उसे सड़क का मुद्दा न बनाए जाए, लेकिन जिस तरह से एक के बाद एक मुस्लिम धार्मिक स्थलों को टारगेट किया जा रहा है. ऐसे में जमियत इस मसले पर भी एक प्रस्ताव लेकर आएगी.
वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस-ए-मुशावरत भी इन्हीं सारे मुद्दों को लेकर पिछले सप्ताह दिल्ली में एक बैठक कर मंथन किया था. इस बैठक में 18 राज्यों के मुस्लिम बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों, धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने भाग लिया. मुस्लिम मुद्दों पर राजनीतिक दलों की चुप्पी पर चिंता जाहिर किया था. इस दौरान जमात-ए-इस्लामी हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी से लेकर मौलाना तौकीर रजा और अहले हदीस के मौलाना अगर इमाम मेहंदी तक ने अपने-अपने सुझाव रखे थे.
सआदतुल्लाह हुसैनी ने कहा कि मुसलमानों के बीच से डर को दूर किया जाए और हिंसा फैलाने वालों से शांतिपूर्ण तरीके से लड़ने के लिए आत्मविश्वास और साहस की भावना पैदा की जाए. किसी समुदाय के विनाश का सबसे बड़ा कारण डर पैदा हो जाना और उम्मीदों का खत्म हो जाना होता है. वहीं, मौलाना तौकीर रजा ने मौजूदा समय में मुसलमानों ने अगर सड़क पर उतरकर आंदोलन नहीं किया तो बाबरी मस्जिद की ज्ञानवापी और अपने दूसरे धार्मिक स्थलों को भी खोना पड़ेगा. इसके अलावा अन्य मुस्लिम उलेमाओं ने कानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़ने के सुझाव रखे थे.
वहीं, मुसलमानों से जुड़े सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हाल ही में वर्चुअल बैठक की थी, जिसमें तय हुआ कि बाबरी मस्जिद की तरह देश की दूसरी मस्जिदों को हाथ से नहीं जाने देंगे, वो चाहे काशी की ज्ञानवापी मस्जिद हो या फिर मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद. इन तमाम मस्जिदों को बचाने के लिए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड कानूनी लड़ाई लड़ने से लेकर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर मोर्चा खोलने की रणनीति बनाई है. मस्जिद की कानूनी लड़ाई के लिए बकायदा एक लीगल टीम गठित की है तो सामाजिक स्तर पर भी अभियान शुरू कर दिया है.
मुस्लिम समुदाय से जुड़े दूसरे अन्य संगठनों ने भी अलग-अलग जगहों पर बैठक की है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तर्ज पर बने शिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी लखनऊ में बैठक कर मौजूदा मसलों पर विचार-विमर्श करने के साथ-साथ मुस्लिम तंजीमों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहने का प्रस्ताव पास किया है. इसके अलावा 27 महीने के बाद जेल से बाहर आते ही सपा विधायक आजम खान ने भी बरेली, देवबंदी, नदवा और मुबारकपुर के अशरफिया से जुड़े हुए लोगों के साथ जल्द बैठक कर मुसलमानों के मुद्दे पर चर्चा करने का ऐलान किया था.
दरअसल, मुसलमानों से जुड़े तमाम मुद्दों पर सियासी दलों के साथ-साथ मुस्लिम संगठन भी चुप थे. जमीयत उलेमा-ए-हिन्द, जमात-ए-इस्लामी और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सिर्फ बयानों तक सीमित रहे हैं. सीएए-एनआरसी के खिलाफ शाहीनबाग आंदोलन के बाद मुसलमानों के किसी बड़े संगठन ने मुसलमानों को एक मंच पर जमा करने की पहल भी नहीं की. देश का आम मुसलमान तमाम मुद्दों पर खामोश है और कोई प्रतिक्रिया नहीं दे रहा है.
मुसलमानों के अंदर से यह मांग बार-बार उठ रही थी कि हमारी बातों को सही ढंग से रखने और लोगों को एकजुट करने की पहल नहीं की जा रही है. इस तरह अभी तक कोई भी मुस्लिम संगठन प्रमुख भूमिका में आने से बच रहे थे, लेकिन काशी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद का मुद्दा सामने आने के बाद मुस्लिम संगठन एक बार फिर से सक्रिय हो गए हैं, क्योंकि उन्हें लगने लगा है कि अब अगर चुप रहे तो मुस्लिमों के बीच आप्रंसगिक हो जाएंगे. ऐसे में अब मुस्लिम संगठन दिल्ली से लेकर लखनऊ और देवबंद तक बैठक कर रहे हैं.
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