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सास-बहू का विवाद पहुंचा हाईकोर्ट, जज ने एफआईआर को किया रद्द
Nilmani Pal
4 April 2024 12:25 PM GMT
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एमपी। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हालिया एक फैसले में कहा है कि सास द्वारा अपनी बहू को घर के रोजमर्रे के काम में टोकना या सब्जी में नमक कम और मिर्ची ज्यादा जैसे सवाल पूछना ना तो गलत है और ना ही ये कृत्य भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता सास के खिलाफ दायर एफआईआर को रद्द करने का आदेश दिया है। जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की सिंगल बेंच ने अपने फैसले में कहा, "अगर घरेलू कार्यों में सास द्वारा की गई टीका टिप्पणी या कुछ आपत्तियों के कारण बहू को मानसिक रूप से उत्पीड़न मिलता है, तो यह कहा जा सकता है कि बहू अतिसंवेदनशील हो सकती है लेकिन, कुछ विवादों के साथ घरेलू कार्यों का ध्यान रखना निश्चित तौर पर क्रूरता की श्रेणी में नहीं आता है।"
जस्टिस अहलूवालिया ने यह भी कहा कि अगर कोई सास अपने बेटे-बहू यानी पति-पत्नी के जीवन में होने वाले व्यक्तिगत झगड़ों से दूर रहने की कोशिश करती है, तब भी नहीं कहा जा सकता कि सास का ऐसा कृत्य आईपीसी की धारा 498ए अनुसार क्रूरता की श्रेणी में आएगा। हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता अलका शर्मा (सास) द्वारा दायर एक याचिका को स्वीकार करते हुए ये टिप्पणियां की हैं। याचिकाकर्ता सास ने अपनी याचिका में बहू द्वारा आईपीसी की धारा 498ए,आईपीसी की धारा 34 और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3 और 4 के तहत दर्ज मामले और उसकी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी। दरअसल, जिस वक्त प्रतिवादी (बहू) का शादी याचिकाकर्ता अलका शर्मा (सास) के बेटे से हुई थी, उस वक्त शर्मा उत्तराखंड के चकराता में सरकारी नौकरी कर रही थीं। बेटे की शादी के चार महीने बाद बाद उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति ले ली और बेटे-बहू के साथ रहने पुणे चली गईं।
बहू के आरोपों के मुताबिक, उनकी सास रोजमर्रे के काम में बाधा पहुंचाने लगीं और टोका-टाकी करने लगी। आरोप है कि पीड़िता के पति ने भी इसमें अपनी मां का ही साथ दिया। आरोप में कहा गया कि उनकी सास अक्सर बेटे की कुंडली में दो शादी का जिक्र करती थीं। इससे उसे मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ी। बहू ने यह भी आरोप लगाया है कि जब उसके पति ने उसे सार्वजनिक तौर पर बेइज्जत किया, तभ भी सास ने उसमें हस्तक्षेप नहीं किया। मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले की निचली अदालत ने इस मामले में सास को आरोपी माना था और उसे मानसिक क्रूरता पहुंचाने का दोषी करार दिया था।इसके खिलाफ सास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें जस्टिस अहलूवालिया की पीठ ने स्पष्ट आदेश दिया है कि बहू को रोजमर्रे के काम में टोकना या बेटे-बहू के झगड़े में ना कूदना मानसिक क्रूरता नहीं है और सास के खिलाफ दायर एफआईआर को रद्द करने का आदेश दिया।
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