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'सुबह की चाय और अखबार' का हुआ विमोचन

jantaserishta.com
5 March 2023 3:12 AM GMT
सुबह की चाय और अखबार का हुआ विमोचन
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नई दिल्ली (आईएएनएस)| कैसे इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया ने 'प्रिंट मीडिया' को पीछे ढकेल दिया! परिस्थितियों से कैसे बुद्धिजीवी वर्ग सीधे तौर पर इसका शिकार हुआ, इसका जिक्र करती है सबीहा फातमा की पुस्तक 'सुबह की चाय और अखबार'।
सबीहा फातमा द्वारा लिखित सुबह की चाय और अखबार पुस्तक का विमोचन शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला प्रगति मैदान में दूरदर्शन के पूर्व निदेशक लीला धर मंडलोई, आलोक रंजन, दीबा नसीम, सुम्बुल और प्रकाशक अंतिका प्रकाशन गौरी सिंह ने किया।
सबीहा फातमा का कविता संग्रह 'सुबह की चाय और अखबार' न केवल अपने अनोखे और अलग तरह के विषय की वजह से अद्वितीय और पुरकशिश है, बल्कि इसमें मौजूद छोटी-छोटी कविताओं की शैली और शिल्प भी लीक से हटकर हैं।
सबीहा फातमा की मानें तो आमतौर पर हमारी दिनचर्या का आगाज चाय की गर्म और मीठी चुस्कियों के साथ अखबारों में परोसी गई खबरों से होता है। पिछले लगभग एक दशक से न केवल इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया बल्कि प्रिंट मीडिया भी ऐसी खबरें परोसने लगा है, जिनका हैंगओवर दिनभर रहता है। इन परिस्थितियों ने जहां देश के अन्य संवेदनशील लोगों को प्रभावित किया है, वहीं बुद्धिजीवी सीधे तौर पर इसके शिकार हुए। सबीहा के कवि-मन को इन जटिल, भयावह और मार्मिक परिस्थितियों और इनसे संबंधित खबरों ने कचोटा है। यह संग्रह उसी दर्द और टीस की काव्यात्मक अभिव्यक्ति है।
इस संग्रह की पहली कविता 'पेशावर' में उन्होंने अपने आपको इस्लाम का मुहाफिज कहने वालों पर तंज कसा है। 'पुलवामा' शीर्षक कविता में उन्होंने देश के मुहाफिजों की शहादत से उत्पन्न उस दर्द की गहराई को प्रतिबिंबित करने की भरपूर कोशिश की है, जो उनके परिवार भोग रहे हैं।
सबीहा ने हमारी धर्मनिरपेक्षता पर प्रहार का जुनेद, इखलाक और पहलू के संदर्भ में उल्लेख करके देश में हुई उन सभी निर्मम हत्याओं पर अपनी कविताओं में प्रश्न उठाये। 'आम आदमी' में उन्होंने महंगाई, बेरोजगारी और बुनियादी जरूरतों को सलीके से प्रस्तुत किया है।
वहीं एक अन्य शीर्षक के साथ 'शिना़ख्त' कविता बिम्बों का एक सुंदर उदाहरण है और इसमें खूबसूरत प्रतीक भी तराशे गए हैं। सबीहा ने शाहीन प्रतीक का भी बड़ी सहजता और सुंदरता से इस्तेमाल किया है, जो उर्दू के सुप्रसिद्ध शायर इकबाल का भी लाडला प्रतीक रहा है। सबीहा की कविताएं जहां कविताई से भरपूर हैं, वहीं अपनी प्रौढ़ता का परिचय भी देती हैं।
डॉ सबीहा फातमा का जन्म 14 नवंबर, 1978 को मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। पिता के सरकारी नौकरी में होने के कारण, वह उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में रहीं। उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा गोरखपुर और इलाहाबाद में प्राप्त की। इसके बाद उच्च शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ से प्राप्त की। वह बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में पीएचडी हैं। मूल रूप से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की प्रोफेसर हैं और पिछले 17 वर्षों से एक निजी यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं। हिंदी और उर्दू साहित्य से उनका विशेष लगाव है। हालांकि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति की पत्रिकाओं में उनके कई पत्र प्रकाशित हुए हैं, यह पुस्तक साहित्य के क्षेत्र में उनका पहला प्रयास है।
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