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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक
नई दिल्ली: झारखंड की राजधानी रांची में पिछले 27 जुलाई से 800 से अधिक सूअरों की अफ्रीकी स्वाइन फीवर से मौत हो चुकी है. इससे संबंधित सबसे पहला केस फरवरी 2020 में असम में पाया गया था. शुरुआती जांच में ये पाया गया है कि यह बीमारी जंगली और घरेलू दोनों ही सूअर को प्रभावित करता है.
राज्य पशुपालन निदेशक शशि प्रकाश झा के अनुसार, इस महीने की शुरुआत में नमूने राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान (एनआईएचएसएडी) भोपाल में जांच के लिए भेजे गए थे. राज्य में अफ्रीकी स्वाइन फीवर से करीब 1,000 सूअरों की मौत हो चुकी है. फिलहाल, अभी तक के जांच में पाया गया है कि यह रोग सूअरों से इंसान में नहीं फैलता है.
अब तक सबसे ज्यादा सूअरों की मौत रांची जिले में हुई है. एहतियाती कदम उठाने के लिए सभी 24 जिलों को एक एडवाइजरी जारी की गई है. सूअर पालकों के लिए टोल फ्री नंबर (18003097711) जारी किया दिया गया है. इसके साथ ही सूअर के मांस की बिक्री को रोकने के लिए कह दिया गया है.
राज्य पशुपालन निदेशक शशि प्रकाश झा आगे बताते हैं कि पशुपालक को राज्य में कहीं भी सुअरों की मौत होने पर इसकी सूचना विभाग के टोल फ्री नंबर पर संपर्क करने के लिए कहा गया है. विभाग द्वारा सूअरों के शव का उचित तरीके से निस्तारण करने के भी निर्देश दिए गए हैं.
शुकर विकास अधिकारी अजय कुमार के मुताबिक कांके स्थित सरकारी सूअर प्रजनन फार्म में 27 जुलाई से अब तक 666 सूअरों की मौत हो चुकी है. इस फार्म में लगभग 1,100 सूअर थे. वहीं, रांची के पशुपालन अधिकारी अनिल कुमार चान्हो बताते हैं कि कुचू, मैक्लुस्कीगंज और खलारी सहित जिले के विभिन्न क्षेत्रों से लगभग 100 सूअरों की मौत हुई है.
एक अन्य अधिकारी के एक अधिकारी के मुताबिक रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) स्थित फार्म में लगभग 30 सूअरों की मौत हो गई. हालांकि, एहतियाती उपायों को अपनाने के बाद मृत्यु दर में कमी आई है.
पशु स्वास्थ्य और उत्पादन संस्थान के निदेशक, विपिन बिहारी महता कहते हैं कि अफ्रीकी स्वाइन फीवर में पशुओं की मौत अचानक हो जाती है. जानवरों में बुखार के लक्षण मिलते हैं, वे खाना बंद कर देते हैं और जल्द ही मर जाते हैं. फिलहाल अभी तक इस बीमारी के खिलाफ कोई टीका विकसित नहीं किया जा सका है.
jantaserishta.com
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