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300 से ज्यादा वकीलों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को लिखा पत्र, कही यह बात

jantaserishta.com
30 Jun 2022 9:47 AM GMT
300 से ज्यादा वकीलों ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को लिखा पत्र, कही यह बात
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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

नई दिल्ली: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को 300 से ज्यादा वकीलों और एक्टिविस्टों ने पत्र लिखकर स्वतः संज्ञान से यह स्पष्ट करने को कहा है कि जकिया जाफरी के फैसले का कोई प्रतिकूल परिणाम नहीं होगा. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में जाकिया जाफरी की गुजरात दंगों से जुड़ी याचिका खारिज कर दी थी. इस याचिका में गुजरात दंगों पर एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट को चुनौती दी गई थी. एसआईटी की इस रिपोर्ट में गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी समेत 63 अन्य अधिकारियों को क्लीन चिट दी गई थी.

वकीलों और एक्टिविस्टों द्वारा लिखे इस पत्र में तीस्ता सीतलवाड़, पूर्व एडीजीपी आरबी श्रीकुमार और अन्य की गिरफ्तारी पर चिंता व्यक्त की गई है. पत्र में कहा गया है कि हमें अपनी पीड़ा व्यक्त करनी चाहिए कि गुजरात पुलिस जकिया जाफरी केस में 24 जून 2022 को दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर गिरफ्तारी को सही ठहराती है.
पत्र में कहा गया है कि कानून के मुताबिक, किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई भी कार्रवाई उचित नोटिस देने के बाद ही शुरू की जा सकती है. कोर्ट ने इस मामले में किसी को भी न तो झूठी गवाही और न ही अवमानना ​​का नोटिस जारी किया. कोर्ट ने न ही किसी को कोई चेतावनी दी. पत्र में कहा गया है कि इस कार्रवाई से ऐसा लगता है कि अगर कोई भी याचिकाकर्ता या गवाह जो कोर्ट में जाता है, अगर उसकी याचिका खारिज होती है, तो उस पर जेल जाना का खतरा मंडराने लगेगा.
इस पत्र पर सीनियर एडवोकेट चंद्र उदय सिंह, आनंद ग्रोवर और इंदिरा जय सिंह, एडवोकेट संजय हेगड़े, अनस तनवीर, फुजैल अहमद अय्यूबी, अवनी बंसल और भारतीय इतिहासकार रामचंद्र गुहा समेत अन्य के हस्ताक्षर हैं.
इस पत्र में फैसले के एक पैरा का भी जिक्र है. इसमें लिखा है, ''अंत में यह हमें गुजरात राज्य के असंतुष्ट अधिकारियों के साथ-साथ अन्य लोगों का एक संयुक्त प्रयास प्रतीत होता है कि ऐसे खुलासों से सनसनी पैदा की जाए, जो उनकी खुद की जानकारी में गलत थे. एसआईटी की गहन जांच के बाद उनके झूठे दावों को उजागर कर दिया गया. वास्तव में, प्रक्रिया के ऐसे दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कटघरे में खड़ा होना चाहिए और कानून के अनुसार उन पर कार्रवाई होनी चाहिए.'' पत्र में कहा गया है कि इमरजेंसी के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे लोगों को जेल में नहीं डाला था, जिन्होंने कानूनी प्रक्रियाओं का इस्तेमाल करने की मांग की थी.
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