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मोदी 2.0: कुछ का प्रमोशन, कुछ का डिमोशन, 3 साल की बची है पारी, 2024 की मेगा तैयारी, मोदी ने मंत्रिमंडल विस्तार से दिए ये बड़े सियासी संदेश

jantaserishta.com
8 July 2021 2:52 AM GMT
मोदी 2.0: कुछ का प्रमोशन, कुछ का डिमोशन, 3 साल की बची है पारी, 2024 की मेगा तैयारी, मोदी ने मंत्रिमंडल विस्तार से दिए ये बड़े सियासी संदेश
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मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में पहली बार मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया. बीजेपी और सहयोगी दलों के कुल 43 नेताओं ने मंत्री पद की शपथ ली, जिनमें 36 नए मंत्री और सात पुराने मंत्री शामिल रहे. पुराने 12 दिग्गज नेताओं की मोदी कैबिनेट से छुट्टी भी हो गई है. असम में सीएम की कुर्सी त्यागने वाले सर्बानंद सोनेवाल हों या कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया को मोदी कैबिनेट में उन्हें खास तवज्जो मिली हैं. पीएम मोदी ने इस कैबिनेट विस्तार के जरिए चुनावी राज्यों पर खास के साथ-साथ कई सियासी गणित साधे हैं.

चुनावी राज्यों पर मोदी मेहरबान
पीएम मोदी ने कैबिनेट विस्तार में अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश जैसे चुनावी राज्यों पर निश्चित तौर पर फोकस किया है. पीएम मोदी को मिलाकर यूपी में अभी तक 10 मंत्री थे, जिनमें से संतोष गंगवार ने इस्तीफा दे दिया है. यूपी से सात नए मंत्रियों की जगह दी गई है, जिसके मिलाकर 16 मंत्री हो गए हैं. बीजेपी के लिए 2022 का चुनाव काफी अहम है और पार्टी सूबे की सियासत में किसी तरह का कोई गुंजाइश नहीं रखना चाहती है.
मोदी ने मंत्रिमंडल में यूपी से बड़ी संख्या में मंत्रियों को शामिल कर साफ संकेत दिया है कि बीजेपी यूपी चुनाव को लेकर कितना गंभीर है. इसके अलावा गुजरात में भी चुनाव हैं, जिसको देखते हुए मनसुख मंडाविया और पुरुषोत्तम रूपाला का प्रमोशन किया गया है. इसके अलावा तीन नए चेहरों दर्शना जरदोश, महेंद्रभाई मुंजापारा और देव सिंह चौहान को भी जगह दी गई. हिमाचल प्रदेश से अनुराग ठाकुर को राज्य मंत्री से कैबिनेट मंत्री बनाया गया है. उत्तराखंड से अजय भट्ट को लाकर ब्राह्मणों को सियासी संदेश दिया है.
दलित ओबीसी पर खास फोकस
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कैबिनेट के जरिए जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधा है. कुर्मी समुदाय से कुल पांच मंत्रियों को जगह दी गई है, जिनमें दो यूपी, दो गुजरात और एक बिहार से हैं. इसके अलावा यूपी से अति पिछड़ा समुदाय से पाल, लोध जैसी जातियों को भी मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है. दलित और अनुसूचित जनजाति समुदाय को प्रतिनिधित्व दिया गया है. इस तरह से बीजेपी अपना सियासी आधार दलित और ओबीसी के बीच बढ़ाना चाहती है. इसीलिए बीजेपी ने सवर्णों के साथ-साथ दलित और ओबीसी चेहरों को मौका दिया है.
शर्तों पर सहयोगियों को साधा
पीएम मोदी ने अपनी कैबिनेट में एनडीए के सहयोगी दलों को भी प्रतिनिधित्व दिया है. शिवसेना और अकाली दल के नाता तोड़ने के बाद बीजेपी में सहयोगी दल के तौर पर रामदास अठावले एकलौते मंत्री थे. वहीं, अब मोदी सरकार ने अपना दल से अनुप्रिया पटेल को राज्यमंत्री के तौर पर शामिल किया है तो कैबिनेट मंत्री के तौर पर जेडीयू से आरसीपी सिंह और एलजेपी से पशुपति कुमार पारस को जगह दी है.
पीएम मोदी अपने मंत्रिमंडल के साथ
मोदी सरकार ने सहयोगी दलों को अपनी शर्तों के आधार पर कैबिनेट में जगह दी है. जेडीयू-एलजेपी तक एक-एक कैबिनेट मंत्री पद दिया गया है. अनुप्रिया पटेल को राज्य मंत्री बनाया गया है. जेडीयू अपने सांसदों की संख्या के आधार पर तीन मंत्री पद मांग रही थी, इसी के चलते 2019 में नीतीश कुमार तैयार नहीं हुए थे और इस बार भी उन्होंने यह डिमांड रखी थी. ऐसे ही अनुप्रिया पटेल राज्यमंत्री के बजाय कैबिनेट मंत्री बनना चाहती थीं. लेकिन इनकी मांग खारिज हो गई.
पुराने चेहरों की छुट्टी
मोदी कैबिनेट से 12 नेताओं को छुट्टी कर दी गई है, जिनमें कैबिनेट मंत्री रविशंकर प्रसाद, कैबिनेट सूचना एंव प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, कैबिनेट स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन, कैबिनेट शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, स्वतंत्र प्रभार श्रम मंत्री संतोष गंगवार, कैबिनेट रसायन एवं उर्वरक मंत्री सदानंद गौड़ा, जल शक्ति राज्यमंत्री रतन लाल कटारिया, पशुपालन राज्यमंत्री प्रताप सारंगी, शिक्षा राज्यमंत्री संजय धोत्रे, महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री देबोश्री चौधरी, सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत, पर्यावरण और वन राज्यमंत्री बाबुल सुप्रियो के नाम शामिल हैं. मोदी ने दिग्गज नेताओं को मंत्रिमंडल से हटाकर साफ संकेत दे दिया है कि उनकी टीम में बने रहने की गारंटी महज परफोरमेंस है. पीएम मोदी ने अपनी कैबिनेट का विस्तार मंत्रियों को रिपोर्ट कार्ड के आधार पर किया है.
क्षेत्रीय संतुलन साधने की कवायद
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट विस्तार के जरिए क्षेत्रीय संतुलन भी साधा है. पीएम मोदी ने यूपी से 7 मंत्रियों को जगह दी है तो गुजरात से तीन मंत्रियों को शामिल किया गया है. इसके अलावा पश्चिम बंगाल से चार मंत्रियों को शामिल किया गया जबकि कर्नाटक से चार मंत्रियों को जगह दी गई है. महाराष्ट्र से चार मंत्रियों को शामिल किया गया है जबकि पूर्वोत्तर से चार मंत्री शामिल किए गए हैं, जिनमें अरुणांचल से किरण रिजुजु, असम से सर्बानंद सोनेवाल, त्रिपुरा से प्रतिमा भौमिक और राजकुमार रंजन को तवज्जो दी गई है. ओडिशा से दो मंत्री बनाए गए हैं, जिनमें एक कैबिनेट और एक राज्यमंत्री के तौर पर है. इसके अलावा तेलंगना से आने वाले जे रेड्डी को प्रमोशन को जगह दी गई जबकि तमिलनाडु से एल मुर्गन को जगह दी हई है. उत्तराखंड से पुराने चेहरे को निशंक पोखरियाल को हटाकर नए चेहरे अजय भट्ट को जगह दी गई है.
भविष्य के चेहरे
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कैबिनेट विस्तार में जिस तरह से पुराने चेहरे को हटाकर नए और युवा चेहरों को मंत्रिमंडल में शामिल किया है. इससे साफ जाहिर है कि बीजेपी भविष्य के लिए लीडरशिप तैयार कर रही है. मोदी सरकार में पहली बार जीतकर आए एक दर्जन युवा नेताओं को कैबिनेट में जगह दी है. इसके संकेत साफ है कि आने वाले समय में बीजेपी के यही नेता चेहरा बनेंगे और पार्टी को आगे ले जाने का काम करेंगे.
पश्चिम बंगाल में चार चेहरो को शामिल किया है, जिनमें दो मंत्री ऐसे है जिनकी उम्र 40 साल से कम है जबकि एक मंत्री की उम्र 45 साल है. बंगाल के नीसिथ प्रमाणिक सबसे कम उम्र के मंत्री हैं और वो महज 35 साल के हैं. वहीं, तमिलनाडु से एल मुर्गन को जगह दी गई है, जिनकी उम्र 44 साल है जबकि महाराष्ट्र की डॉ. भारती प्रवीण पवार को राज्य मंत्री के रूप में शामिल किया गया है, जिनकी उम्र 42 साल है. विस्तार के बाद मोदी कैबिनेट में 14 ऐसे चेहरे हैं जिनकी उम्र 50 साल से भी कम है और मंत्रियों की औसत आयु 58 साल हो गई है जबकि पहले 59 साल थी.
संघ से तालमेल
मोदी सरकार ने कैबिनेट विस्तार में जिस तरह से आरएसएस के बैकग्राउंड वाले नेताओं को कैबिनेट में जगह दी है और युवा को तरजीह दिया है. इससे साफ जाहिर है कि मोदी सरकार ने संघ से बेहतर तालमेल बैठाकर चलना चाहती है. यूपी से संघ की पसंद और अत्यंत पिछडे समुदाय से आने वाले बीएल वर्मा और दलित समुदाय भानु प्रताप सिंह वर्मा सहित सात मंत्री शामिल किए गए हैं. इसमें तीन एससी वर्ग और तीन ओबीसी वर्ग के मंत्रियों को शामिल किया गया है जबकि एक ब्राह्मण को जगह दी गई है.
ऐसे ही तेलंगान से जी किशन रेड्डी और गुजरात से पुरुषोत्तम रुपाला व मनसुख मंडाविया का प्रमोशन भी संघ के नजरिए से देखा जा रहा है. इतना ही नहीं पश्चिम बंगाल से जिस तरह से एससी और एसटी समुदाय को तव्वजो दी गई है, उसके पीछे भी आरएसएस का भविष्य की रणनीति के तौर पर देखा जाना चाहिए. इतना ही नहीं मोदी सरकार में जिन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया है, उसमें भी बड़ी संख्या में संघ के पसंद वाले नेता शामिल हैं. सिंधिया भले अपना सियासी सफर संघ से न शुरू किया हो, लेकिन बीजेपी में शामिल होने के बाद से आरएसएस के लोगों के साथ तालमेल बैठाकर चल रहे हैं. हालांकि, सिंधिया परिवार का संघ से पुराना नाता है.
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