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आधुनिक शिक्षा उपयोगितावादी पहलू पर केंद्रित, छात्रों के चरित्र निर्माण में विफल - CJI रमना

Renuka Sahu
23 Nov 2021 5:24 AM GMT
आधुनिक शिक्षा उपयोगितावादी पहलू पर केंद्रित, छात्रों  के चरित्र निर्माण में विफल - CJI  रमना
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फाइल फोटो 

भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने सोमवार को कहा कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली केवल शिक्षा के 'उपयोगितावादी' कार्य पर ध्यान केंद्रित करती है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने सोमवार को कहा कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली केवल शिक्षा के 'उपयोगितावादी' कार्य पर ध्यान केंद्रित करती है। उन्होंने कहा कि आधुनिक शिक्षा छात्रों के चरित्र निर्माण के लिए सुसज्जित नहीं है। अनंतपुरमू जिले के पुट्टपर्थी नगर में श्री सत्य साई उच्च शिक्षा संस्थान के 40वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए सीजेआई रमण ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली पर दुख जताया और कहा कि दुर्भाग्य से, आधुनिक शिक्षा प्रणाली केवल उपयोगितावादी कार्य पर ध्यान केंद्रित करती है और ऐसी प्रणाली शिक्षा के उस नैतिक या आध्यात्मिक पहलू के लिहाज से सज्जित नहीं है जो छात्रों का चरित्र का निर्माण करे और उनमें सामाजिक चेतना तथा जिम्मेदारी की भावना विकसित करे।

उन्होंने कहा कि सच्ची शिक्षा वह है जो नैतिक मूल्यों और विनम्रता, अनुशासन, निस्वार्थता, करुणा, सहिष्णुता, क्षमा और आपसी सम्मान के गुणों को आत्मसात करे। सीजेआई ने कहा कि आपको जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों से निपटना होगा, जो कभी-कभी आपको चुनौती दे सकते हैं। मगर आपको सहिष्णु बनना होगा। जीवन की इस यात्रा से गुजरते हुए कुछ मूल मूल्यों को पकड़ें और उन सभी समृद्धि का अनुभव करें जो यह आपको प्रदान कर सकती है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि शिक्षित व्यक्तियों के रूप में आप पर समाज को समृद्ध करने की जिम्मेदारी है और उन्हें अपने आसपास के सभी लोगों को शिक्षित करना चाहिए और लोगों, समुदायों और समाजों को सशक्त बनाना चाहिए। न्यायमूर्ति रमण ने कहा कि यह उनकी इच्छा है कि देश की सभी व्यवस्थाएं स्वतंत्र और ईमानदार हों, जिनका लक्ष्य लोगों की सेवा करना हो तथा सत्य साई बाबा भी यही बात कहते थे।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमण ने सोमवार को कहा कि शासकों को प्रतिदिन इस बारे में आत्मावलोकन करना चाहिए कि क्या उनके द्वारा लिए गए निर्णय अच्छे हैं और साथ में यह भी परखना चाहिए कि क्या उनमें कोई बुरी विशेषता है। न्यायमूर्ति रमण ने महाभारत और रामायण का हवाला देते हुए कहा कि शासकों के 14 बुरे गुण हैं जिनसे उन्हें बचना चाहिए।
उन्होंने कहा, "लोकतांत्रिक व्यवस्था के सभी शासकों को अपना नियमित कार्य शुरू करने से पहले आत्मावलोकन करना चाहिए कि क्या उनमें कोई बुरी विशेषताएँ हैं। न्यायसंगत प्रशासन देने की आवश्यकता है और यह लोगों की आवश्यकताओं के अनुसार होना चाहिए। यहां कई विद्वान हैं और आप दुनियाभर में तथा देशभर में हो रहे घटनाक्रम को देख रहे हैं।'' उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि होती है और सरकार द्वारा जो भी फैसला लिया जाए, उसका फायदा जनता को मिलना चाहिए।


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