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नाबालिग रेप पीड़िता को अबॉर्शन की इजाजत मिली, जीजा ने बनाया हवस का शिकार

jantaserishta.com
21 May 2024 12:48 PM GMT
नाबालिग रेप पीड़िता को अबॉर्शन की इजाजत मिली, जीजा ने बनाया हवस का शिकार
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सांकेतिक तस्वीर

इसी के साथ अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि एक नाबालिग की पीड़ा को अदालत चुपचाप देखती नहीं रह सकती है।
जबलपुर: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की जबलपुर बेंच ने एक नाबालिग रेप पीड़िता को अबॉर्शन की इजाजत दे दी है। इसी के साथ अदालत ने टिप्पणी करते हुए कहा कि एक नाबालिग की पीड़ा को अदालत चुपचाप देखती नहीं रह सकती है। नाबालिग लड़की के जीजा पर उसके साथ रेप का आरोप है।
चीफ जस्टिस रवि मालीमाथ और जस्टिस विशाल मिश्रा की खंडपीठ ने सोमवार को नाबालिग को गर्भपात कराने की इजाजत दी। खास बात यह है कि अदालत का यह आदेश इसी कोर्ड के पांच दिन पूर्व में दिए गए उस फैसले के बाद आया है जिसमें कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि इससे केस में आऱोपी को फायदा मिल सकता है। पीड़िता के जीजा इस केस में आरोपी हैं।
16 साल की इस नाबालिग लड़की का अपहरण कर लिया गया था। आरोप है कि 9 नवंबर, 2023 से फरवरी 2024 के बीच लड़की के जीजा ने उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया। बाद में लड़की को बरामद कर लिया गया था और आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद लड़की की मां ने 20 हफ्ते के भ्रूण को हटाने के लिए अदालत के समक्ष याचिका दायर कर गुहार लगाई थी।
सोमवार को अदालत ने कहा, 'एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना की वजह से नाबालिग लड़की गर्भवती हुई। अदालत के आदेश पर मेडिकल बोर्ड ने लड़की की चिकित्सीय जांच की है। मेडिकल बोर्ड ने यह भी सलाह दी है कि 21 हफ्ते के भ्रूण को दो gynecologists के सुपरविजन में हटाया जा सकता है।
अदालत ने कहा, 'अगर नाबालिग की प्रेग्नेंसी को जारी रखा जाता है तो यह गर्भवती महिला की जिंदगी को खतरे में डाल सकता है या फिर उसके मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को गहरे तौर पर नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए गर्भवती महिला की जिंदगी को खतरे और उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को देखते हुए कोर्ट चुपचाप नहीं बैठ सकती है।' इसी के साथ अदालत ने अबॉर्शन की अनुमति देते हुए कहा कि उसकी शारीरिक और मानसिक स्वाथ्य को ध्यान में रखा जाना जरूरी है।
पिछले हफ्ते, जस्टिस जीएस अहलुवालिया की एकलपीठ ने कहा था, 'याचिकाकर्ता अपने दामाद को सजा सुनिश्चित कराना चाहता है या नहीं, यह इस न्यायालय की चिंता नहीं है बल्कि अदालत को इस बात की चिंता है कि कोर्ट का इस्तेमाल एक अनचाहे बच्चे से छुटकारा पाने के लिए टूल के तौर पर किया जाए और बाद में यह दावा किया जाए कि कोई अपराध हुआ ही नहीं। किसी को भी एक अजन्मे बच्चे की हत्या के लिए लुका-छिपी का खेल खेलने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।'
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