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अजीत डोभाल की अध्यक्षता में अफगानिस्तान पर दिल्ली में बैठक शुरू, 7 देश शामिल

jantaserishta.com
10 Nov 2021 4:47 AM GMT
अजीत डोभाल की अध्यक्षता में अफगानिस्तान पर दिल्ली में बैठक शुरू, 7 देश शामिल
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नई दिल्ली: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार(NSA) अजीत डोभाल अफ़ग़ानिस्तान पर क्षेत्रीय सुरक्षा वार्ता की अध्यक्षता कर रहे हैं. बैठक शुरू हो गई है.

क्यों खास है बैठक

अफगानिस्तान (Afghanistan) भारत का सबसे करीबी मुल्क है. लेकिन आज हिंदुस्तान की सबसे बड़ी फिक्र बन गया है. भारत अपने दोस्त देश की जो फिक्र पहले से जताता रहा है.वो गंभीर होकर सामने दिखने लगी है. ऐसे में एक दोस्त की हैसियत से भारत आम अफगानियों के लिए ही आगे बढ़कर पहल कर रहा है. भारत ने इसकी शुरुआत दिल्ली डायलॉग से की है.
अफगानिस्तान संकट पर चर्चा के लिए भारत के बुलावे पर रूस, ईरान किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, तजाकिस्तान, तुर्किस्तान, उज्बेकिस्तान समेत 7 देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कल से दिल्ली में दो दिनों तक मंथन करेंगे. 10-11 नवंबर को हो रही इस मीटिंग की अध्यक्षता भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल करेंगे. इस दौरान भारत के एनएसए अजीत डोभाल सभी देशों के साथ द्विपक्षीय वार्ता भी करेंगे. एनएसए स्तर की हो रही मीटिंग में भाग लेने के अलावा इन सभी देशों के NSA, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी मिलेंगे.
हालांकि अफगानिस्तान के मसले पर भारत में हो रही दिल्ली डायलॉग में पाकिस्तान और पाकिस्तान का सदाबहार दोस्त चीन शामिल नहीं होगा. पाकिस्तान और चीन जो लगातार खुद को अफगानिस्तान का रहनुमा बताते रहे हैं. अब उनकी मंशा दुनिया के सामने आ गई है. तस्वीर साफ है कि अफगानिस्तान का भला कौन चाहता है. हालांकि इस दौरान रूस लगातार भारत के साथ खड़ा है.
अफ़गानिस्तान में तालिबानी कब्जे के बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने फोन पर लंबी चर्चा की थी. राष्ट्रपति पुतिन ने अपने NSA को विशेष तौर पर भारत भेजा था. अब रूस के NSA एक बार फिर दिल्ली में अफगानिस्तान के हालात पर होने वाली बैठक में हिस्सा ले रहे हैं.
यहां एक बात समझने की जरूरत है. भारत अफगानिस्तान के पुननिर्माण में अहम भूमिका निभाता रहा है. पिछले दो दशकों में भारत ने अफगानिस्तान पर तीन अरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए हैं.अफगानिस्तान के आम लोगों की सुविधा के लिए शुरू की गई परियोजनाओं से तालिबान भी प्रभावित है.
अफगानिस्तान को लेकर भारत की चिंताओं को इसी बात से समझा जा सकता है कि भारत ने उस हर फोरम पर अपनी मौजूदगी दर्ज करवाई है जहां अफगानिस्तान को लेकर चर्चा होती है- वो चाहे जी20 और ब्रिक्स जैसे सम्मेलन हों या फिर द्विपक्षीय बातचीत. तालिबान राज कायम होने के बाद से ही भारत अफगानिस्तान के भविष्य की चिंता में अलग-अलग मोर्चों पर पहल कर रहा है. अब इसी क्रम में दिल्ली में आठ देशों की बैठक बुलाई गई है. जिसमें अफगानिस्तान के संकट से निपटने के लिए रणनीति बनेगीऔर भारत इसकी अगुवाई करेगा.कैसे देखिए ये रिपोर्ट…
बंदूक के बल पर सत्ता हासिल करने में कामयाबी जरूर मिली, लेकिन अब सवाल है कि अफगानिस्तान की जनता का पेट क्या बुलेट और बम से भरेगा.क्या लाखों अफगानी युवा महिलाएं. बच्चे और बुजुर्ग बेरोजगारी, अशिक्षा, कुपोषण और भुखमरी की भेंट चढ़ जाएंगे. करीब तीन महीने में ही AK-47 लेकर घूमने वाले तालिबानियों के खिलाफ अफगान लैंड से आवाज़ उठने लगी है. बेबसी और भूख से गोलियों का डर जेहन से खत्न होने लगा है..
सत्ता की कुर्सी पर बैठे तालिबानी खुद को बेबस महसूस कर रहे हैं और सड़कों पर खून भी बहा रहे हैं. हर दिन अफगानिस्तान का वर्तमान और भविष्य अंधी सुरंग में समाता जा रहा है. ऐसे में अफगानियों का दर्द और पठानलैंड से पैदा हुआ खतरा. हिंदुस्तान के लिए बड़ी फिक्र है.इस संकट से निपटना चुनौतीपूर्ण है.लिहाजा भारत अफगानिस्तान संकट पर दिल्ली डॉयलॉग के जरिए रास्ता निकालने की पहल कर रहा है. अफगानिस्तान के बदले हालात के बीच भारत की भूमिका भी बड़ी हो गई है.इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बुधवार से NSA स्तर की होने वाली दो दिन की मीटिंग में भाग लेने के लिए सात देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अपने अपने स्पेशल विमान से दिल्ली पहुंचे हैं.
इन देशों में NSA की जिम्मेदारी संभाल रहे सभी व्यक्ति अपने-अपने देशों के सरकारों में बेहद प्रभावशाली भूमिकाओं में है. आठों देशों के NSA की मीटिंग में ये मंथन होगा कि किन कदमों के उठाने से अफ़गानिस्तान से आने वाले खतरों और चुनौतियों का सामना किया जा सकेगा.
क्यो अलग भारत की ओर से की गई ये पहल
वैसे अफ़गानिस्तान के मुददे पर अलग-अलग स्तर की बैठकें होती रही है. हार्ट ऑफ एशिया या मास्को, कतर फार्मेट पर होने वाली बैठकों में ज्यादातर कूटनीतिक तरीके से ही बातचीत हुई है. लेकिन इस बार भारत की ये पहल खास और बाकी सबसे अलग है..क्योंकि अफगानिस्तान के मुद्दे पर NSA स्तर की बातचीत में ना सिर्फ अफगानिस्तान बल्कि तालिबान शासन के बाद अफ़गानिस्तान के सभी पड़ोसी देशों की सुरक्षा चिंताएं भी शामिल होंगी. उसका हल निकालने के लिए 8 देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में सुरक्षा से जुड़े पहलुओं पर चर्चा होगी और आम सहमति से समाधान खोजने की कोशिश की जाएगी.
अब जब पाकिस्तान की सह पर तालिबान राज में 21वीं सदी की लोकतांत्रिक नीतियों और मानवीय पहलों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. भारत की चिंताएं बढ़ गई हैं और वो हाथ पर हाथ धरे बैठे नहीं रह सकता.
भारत ये भी चाहता है कि अफगानिस्तान के बीते हुए कल, वर्तमान और भविष्य पर चर्चा वाले हर मंच पर उसकी भागीदारी सुनिश्चित हो ताकि वो अपनी चिंताओं से न केवल दुनिया को वाकिफ करवा सके. इनके समाधान के लिए दबाव भी डाल सके.
अफगानिस्तान पर भारत की फिक्र की एक बड़ी वजह पाकिस्तान भी है. अफ़गानिस्तान से आने वाले खतरे को लेकर मध्य एशियाई देशों का भी मानना है कि पाकिस्तान अफगानिस्तान की सभी समस्याओं की जड़ है.8 देशों के NSA इस बात पर भी मंथन करने वाले हैं कि अफगानिस्तान में पाकिस्तानी साजिशों पर कैसे नियंत्रण किया जाए.
तभी तो दिल्ली रिजनल सिक्योरिटी डायलॉग के मुख्य एजेंडा में भी आतंकवाद, रेडिकलाइजेशन, क्रॉस बार्डर मूवमेंट, ड्रग तस्करी और अफगानिस्तान में मौजूद खतरनाक अमेरिकी हथियारों के गलत हाथों में जाने से रोकना शामिल है
यकीनन अफगानिस्तान सबसे बड़े संकट काल से गुजर रहा है. जिसकी परवाह ना पाकिस्तान को है और ना ही तालिबानी सरकार को.
अफगानिस्तान से अमेरिका की वापसी के साथ ही अफगानियों को मिलने वाली हर तरह की मदद बंद है. संयुक्त राष्ट्र तक चेतावनी जारी कर चुका है कि नवंबर के अंत तक अफगानिस्तान की आधी आबादी को ठीक से खाना तक नहीं मिलेगा. मतलब अफगानिस्तान में रहने वाला हर दूसरा आदमी अब भर पेट खाना तक नहीं खा सकेगा. ऐसे में काबुल से महज हजार किलोमीटर दूर दिल्ली अफगानिस्तान पर रास्ता निकालने में जुट गया है.
दिल्ली डायलॉग से भारत को बड़ी उम्मीद
अफगानिस्तान संकट पर दिल्ली डायलॉग से भारत को बड़ी उम्मीद है. क्योंकि इसमें रूस, ईरान और पांच मध्य एशियाई देश शामिल हो रहे हैं…लेकिन भारत की इस पहल से क्या आम अफगानियों में कोई उम्मीद जगी है. ये जानने के लिए हमने दिल्ला में रह रहे अफगानियों से बात की. उन्होंने क्या कहा आप खुद सुनिए.
आम अफगानियों को भारत पर भरोसा है. ये यूं ही नहीं है. भारत पहले से साफ कहता रहा है कि तालिबान शासन में अफगानिस्तान को आतंकियों का पनाहगाह बनने नहीं दिया जा सकता है. तालिबान राज में अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा भी होनी चाहिए. लेकिन, तालिबानी राज में अब तक जो देखने को मिला है, उससे नहीं लगता है कि वो इनके अधिकारों की जरा भी फिक्र करता है. तालिबान पर पाकिस्तान की सरकार, सेना और उसकी बदनाम खुफिया एजेंसी ISI का जबर्दस्त प्रभाव है. दुनिया जानती है कि पाकिस्तान, अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करने को आतुर है और चीन उसे सपोर्ट करता है. ऐसे में दिल्ली डायलॉग से आम अफगानी और भारत के दुश्मनों पर नकेल कसने की तैयारी होगी.

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