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1992 में शादी, 2015 में तलाक, हाईकोर्ट बोला- पूर्व पति को 3 हजार रुपये महीना गुजारा भत्ता दे महिला

jantaserishta.com
31 March 2022 12:12 PM GMT
1992 में शादी, 2015 में तलाक, हाईकोर्ट बोला- पूर्व पति को 3 हजार रुपये महीना गुजारा भत्ता दे महिला
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निचली अदालत ने यह फैसला सुनाया था जिसे उच्च अदालत ने भी बरकरार रखा है.

औरंगाबाद: बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने एक महिला टीचर को आदेश दिया है कि वह अपने पूर्व पति को हर माह गुजारा भत्ता दे, क्योंकि पति की सेहत ठीक नहीं रहती और माली हालत भी खराब है. दरअसल, नांदेड़ की निचली अदालत ने यह फैसला सुनाया था जिसे उच्च अदालत ने भी बरकरार रखा है.

दोनों का विवाह 17 अप्रैल 1992 को हुआ था. पत्नी ने बाद में क्रूरता को आधार बनाते हुए शादी को भंग करने की मांग की और आखिरकार 2015 में नांदेड़ की अदालत ने तलाक को मंजूरी दे दी थी.
इसके बाद पति ने नांदेड़ की निचली अदालत में याचिका दायर कर पत्नी से 15,000 रुपये प्रति माह की दर से स्थायी गुजारा भत्ता देने की मांग की. पति ने तर्क दिया था कि उसके पास आय का कोई साधन नहीं है जबकि पत्नी ने एमए और बीएड तक पढ़ी-लिखी है और और एक स्कूल में काम कर रही है.
पति ने दावा किया कि पत्नी को डिग्री दिलावाने के लिए उसने अपनी महत्वाकांक्षाओं को दरकिनार किया और घर से जुड़ी चीजों को मैनेज किया था. यह भी दलील दी गई कि नौकरी करने से पहले भी पत्नी ट्यूशन क्लास ले रही थी और परिवार के लिए आय अर्जित कर रही थी.
महिला के पति ने अदालत से यह भी कहा था कि वैवाहिक संबंधों में उसे अपमान और अत्याचार का सामना करना पड़ा, क्योंकि पत्नी ने गलत और बेईमानी के इरादे से तलाक के लिए याचिका दायर की थी. पति ने यह भी कहा कि वह न तो कोई नौकरी कर रहा है, न ही उसके पास कोई चल-अचल संपत्ति है, और न ही उसकी कोई स्वतंत्र आय है.
यह भी दलील दी गई कि उसकी सेहत भी ठीक नहीं रहती है और जीवन यापन के लिए कोई नौकरी हासिल करने में असमर्थ है. वहीं, पत्नी हर महीने 30 हजार रुपये का वेतन अर्जित करती है और उसके पास मूल्यवान घरेलू सामान और अचल संपत्ति भी है.
दूसरी ओर, पत्नी ने इस याचिका का विरोध किया और अदालत को बताया कि पति एक किराने की दुकान चला रहा है और वह एक ऑटो रिक्शा का भी मालिक है और उसे किराए पर देकर आमदनी अर्जित करता है. महिला ने इस बात से इनकार किया कि पति कमाई के लिए उस पर निर्भर है. खास तौर से यह दरख्वास्त भी की गई कि शादी से उनकी एक बेटी भी है, जो कि अपनी मां पर ही निर्भर है और इसलिए पति द्वारा भरण-पोषण का दावा खारिज किए जाने की अदालत से प्रार्थना की गई.
दरअसल, निचली अदालत ने 2017 में महिला को आदेश दिया कि पति को आवेदन की तारीख से याचिका के निपटारे तक 3,000 रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता के रूप में भुगतान करे. इसी तरह का एक आदेश साल 2019 में स्कूल के हेडमास्टर को पति के अनुरोध पर दिया गया था, क्योंकि पत्नी ने भुगतान करने से इनकार कर दिया था. जिस स्कूल में महिला पढ़ाती है, अदालत ने उसके हेडमास्टर को भी एक आदेश दिया, जिसमें कहा गया कि महिला के मासिक वेतन से 5,000 रुपये काटकर और प्रति माह अदालत में वह राशि जमा की जाए.
- दोनों आदेश को पत्नी ने हाईकोर्ट की जस्टिस भारती डांगरे की बेंच के समक्ष एक रिट याचिका में चुनौती दी थी. जस्टिस डांगरे ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 का हवाला दिया, जिसमें बेसहारा पत्नी या पति के लिए गुजारा भत्ता देने का प्रावधान है.
- औरंगाबाद हाईकोर्ट ने आगे कहा कि 1955 के हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 के तहत पति द्वारा दायर अंतरिम भरण-पोषण के लिए आवेदन पर निचली अदालत के जज द्वारा सही विचार किया गया है और पति को अंतरिम भरण पोषण का हकदार माना गया है, जबकि धारा 25 के तहत कार्यवाही लंबित है.
- एक्ट की धारा 25 के तहत अदालत आवेदक के पक्ष में यह आदेश दे सकती है कि उसे जीवन भर के लिए एकमुश्त या मासिक राशि के रूप में गुजारा भत्ता दिया जाएगा. जबकि धारा 24 कानूनी प्रक्रिया के बीच ही भरण-पोषण और मुकदमा लड़ने की राशि से संबंधित है.
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