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ममता को सत्ता से बेदखल नहीं, पर सबक सिखाना चाहते हैं बंगाल के वोटर्स

jantaserishta.com
15 Feb 2021 5:04 AM GMT
ममता को सत्ता से बेदखल नहीं, पर सबक सिखाना चाहते हैं बंगाल के वोटर्स
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विस चुनाव: तारीखों के ऐलान से पहले भाजपा टीएमसी में खिंची तलवारें, सियासत चरम पर

>चुनाव में पश्चिम बंगाल की 42 में से 22 सीटें टीएमसी,18 सीटें बीजेपी ने जीतीं
>बीजेपी को 128 विधानसभा क्षेत्रों में मिली बढ़त, 60 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही
>टीएमसी को 158 सीटों में मिली बढ़त, 2016 के विस चुनाव में 211 सीटों था कब्जा
कोलकाता से पप्पू फरिस्ता और अतुल्य चौबे की ग्राउण्ड रिपोर्ट
कोलकाता/रायपुर। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले सियासी पारा हाई पर है। भारतीय जनता पार्टी परिवर्तन यात्रा और रैलियों से अपने पक्ष में माहौल बनाने कोई कसर नहीं छोड़ रही तो ममता बनर्जी भी पदयात्रा और रैलियों से अपनी ताकत दिखाने में जुटी हुई हैं। इस बीच टीएमसी नेताओं का पार्टी से इस्तीफे और हिंसा की घटनाओं को लेकर राजनीतिक छिंटाकशी और बयानबाजी भी पूरे शबाब पर है। इन सबके बावजूद बंगाल में जमीनी हालात कुछ और ही बयान कर रहे हैं। एक ओर भाजपा राज्य में तृणमूल कांग्रेस के सफाए की बात कह रही है तो टीएमसी पूर्ण बहुमत से सरकार में वापसी का दावा कर रही है। कांग्रेस और वामदल भी जोर-आजमाइश में लगे हुए हैं। वहीं भाजपा-टीएमसी की रैलियों-सभाओं में जनता के उमड़ रही भीड़ के बावजूद लोगों के मन में कुछ और ही बातें पल रही हैं। जनता से रिश्ता ने लोगों के मन को टटोलने की कोशिश की जिसमें यह बात सामने आई है कि बंगाल की जनता ममता बनर्जी से नाराज तो हैं और उसे सबक भी सिखाना चाहते हैं लेकिन वे इसके लिए उसे सत्ता से बेदखल करने के मूड में नहीं हैं। बहरहाल विधानसभा चुनाव में भाजपा-टीएमसी के बीच जबर्दस्त द्वंद के आसार हैं। भाजपा जहां टीएमसी को सत्ता से बेदखल कर राज्य में परिवर्तन लाने की बात कह रही है वहीं टीएमसी भाजपा को राज्य से बाहर का रास्ता दिखाने हर पैंतरा आजमा रही है।
पश्चिम बंगाल का पूरा वोट गणित
पश्चिम बंगाल में बीजेपी ने ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 42 में से 18 लोकसभा सीटों पर कब्जा किया, लेकिन कभी लेफ्ट और अब ममता के किले में उसकी यह जीत इससे भी कहीं बढ़कर है। चुनाव नतीजों के बाद विधानसभावार वोटों का विश्लेषण राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए परेशान करने वाले संकेत दे रहा है। बता दें कि राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस को 42 में से मात्र 22 सीटों से ही संतोष करना पड़ा है। विधानसभावार चुनावी आंकड़ों पर गौर करें तो पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मात्र 28 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी, जबकि इस बार के चुनाव में 128 क्षेत्रों में 'कमलÓ खिला है। उधर, साल 2014 में 214 क्षेत्रों में बढ़त हासिल करने वाली टीएमसी अब केवल 158 क्षेत्रों में सिमटकर रह गई है।
वर्ष 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में टीएमसी को 211, लेफ्ट को 33, कांग्रेस को 44 और बीजेपी को मात्र 3 सीटें मिली थीं। वोट शेयर में भी बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया है। टीएमसी ने जहां 43.3 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया वहीं बीजेपी को 40.3 प्रतिशत वोट मिले। बीजेपी को कुल 2 करोड़ 30 लाख 28 हजार 343 वोट मिले जबकि टीएमसी को 2 करोड़ 47 लाख 56 हजार 985 मत मिले हैं। भगवा पार्टी राज्य की अन्य 60 सीटों पर मात्र 4 हजार वोटों से हारी है जो टीएमसी के लिए और ज्यादा चिंता की बात है।
भाजपा की तैयारियों से गठबंधन की दरकार
भाजपा की तैयारियों से परेशान टीएमसी अब विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को गठबंधन के लिए मनाने में जुट गई है। हालाकि कांग्रेस ने बंगाल में वामदलों के साथ गठबंधन कर लिया है और ममता को कांग्रेस में विलय का आफर भी दे चुकी है। लेकिन ऐसा होना मुमकिन नहीं ममता कांग्रेस के साथ गठबंधन तो करना चाहती लेकिन विलय की बात वह कभी नहीं मानेगी। वहीं कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस चुनाव से पहले टीएमसी के साथ गठबंधन को तैयार नहीं है, अगर चुनाव के बाद ऐसी स्थिति बनती है तो इस बारे में पार्टी विचार करेगी। वहीं भाजपा भी इस कोशिश में है कि टीएमसी का कांग्रेस और वामदलों से गठबंधन किसी भी सूरत में न होने पाए ताकि वोटों के बंटने का रास्ता बना रहे और मुस्लिम वोट का ध्रुवीकरण न होने पाए।
90 विधानसभा सीटों पर मुसलमानों का बाहुल्य
पश्चिम बंगाल में 90 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लीम मतदाताओं की बाहुल्यता है। इस सीटों पर टीएमसी के साथ कांग्रेस और वामदलों की पकड़ काफी मजबूत है। भाजपा चाहेगी ये पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़े ताकि मुस्लिम वोटर बंटे रहें। असुद्दीन ओवेसी की पार्टी के विधानसभा चुनाव लडऩे तथा टीएमसी के एक मुस्लीम नेता का पार्टी से अलग होकर चुनाव लडऩे से भी मुस्लीम वोट बंटेंगे। मालदा में अब्दुलगनी खान चौधरी और मुर्शिदाबाद में अधीररंजन चौधरी व उसके परिवार वालों के चलते कांग्रेस की पकड़ मजबूत रही है। इन्ही इलाकों में कांग्रेस को लोकसभा की दो सीटों पर जीत मिली थी। पिछले लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने मुस्लीम बाहुल्य 81 सीटों पर बढ़त दर्ज की थी जिसे वह विधानसभा चुनाव में बरकरार रखना चाहेगी। यही कारण है कि टीएमसी मुस्लिम वोट को बंटने से रोकने ही कांग्रेस से गठबंधन की कोशिश में जुटी है। विश्लेष्कों का मानना है कि अगर चुनाव में कांग्रेस और वामदल 20-20 सीटें जीतने में कामयाब हो जाती है तो भाजपा को बहुमत मिलने की संभावना कम हो जाएगी और टीएमसी को कांग्रेस-वामदलों के साथ मिल कर सरकार बनाने का मौका मिल सकता है। ऐसे में आज के हालात और लोगों की जो मंशा है इसे देखते हुए किसी दल को स्पष्ट बहुमत मिलने की संभावना कम नजर आ रही है। हालाकि जैसे-जैसे चुनाव का माहौल गर्म होगा और चुनाव नजदीक आते जाएंगे लोगों की राय भी बदलेगी और चुनावी आंकलन भी बदलेगा।
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