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मंगलसूत्र को लेकर मद्रास हाई कोर्ट ने कही बड़ी बात

jantaserishta.com
15 July 2022 9:45 AM GMT
मंगलसूत्र को लेकर मद्रास हाई कोर्ट ने कही बड़ी बात
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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

नई दिल्ली: तमिलनाडु के मद्रास हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले में सुनवाई करते हुए पत्नी के अपने गले से मंगलसूत्र उतार देने को लेकर तल्ख टिप्पणी की है. मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि पत्नी का अपने गले से मंगलसूत्र उतार देना मानसिक क्रेरता के समान है. मद्रास हाईकोर्ट ने अलग रह रही पत्नी के मंगलसूत्र न पहनने को लेकर ये टिप्पणी की और तलाक को मंजूरी दे दी.

समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक मद्रास हाईकोर्ट ने इरोड के एक मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत सी शिवकुमार की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की. न्यायमूर्ति वीएम वेलुमणि और न्यायमूर्ति एस सौंथर की खंडपीठ सी शिवकुमार की ओर से स्थानीय फैमिली कोर्ट के 15 जून 2016 के आदेश को रद्द करने की मांग को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
फैमिली कोर्ट ने प्रोफेसर सी शिवकुमार को तलाक देने से इनकार कर दिया था जिसके बाद उन्होंने कोर्ट के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. अलग रही शिवकुमार की पत्नी ने ये स्वीकार किया कि उसने अलगाव के समय मंगलसूत्र उतार दिया था. हालांकि, उसने ये भी बताया कि मंगलसूत्र पास रखा है. महिला के वकील ने हिंदू मैरिज एक्ट की धारा सात का भी हवाला दिया.
महिला के वकील ने हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 7 का हवाला देते हुए दावा किया कि मंगलसूत्र पहनना जरूरी नहीं है. पत्नी की ओर से इसे उतारे जाने से वैवाहिक संबंधों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. मद्रास हाईकोर्ट की पीठ ने इसपर कहा कि मंगलसूत्र पहनना जरूरी है. यह सामान्य ज्ञान की बात है. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने हाईकोर्ट की एक खंडपीठ के आदेश का भी हवाला दिया.
मद्रास हाईकोर्ट ने जिस आदेश का हवाला दिया, उसमें कहा गया था कि जिसमें कहा गया था कि ये एक ज्ञात तथ्य है कि कोई भी हिंदू विवाहित महिला अपने पति के जीवनकाल में किसी भी समय मंगलसूत्र नहीं हटाएगी. मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि किसी भी हिंदू महिला के गले में मंगलसूत्र एक पवित्र चीज है. ये विवाहित जीवन की निरंतरता का प्रतीक है और इसे पति की मृत्यु के बाद ही हटाया जाता है.
कोर्ट ने ये भी कहा कि पत्नी का अपने गले से मंगलसूत्र हटाना पति को लेकर मानसिक क्रूरता की पराकाष्ठा है. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी साल 2011 के बाद से अलग रह रहे हैं और इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि पत्नी ने इस अवधि में फिर से साथ आने के लिए कोई प्रयास किया. कोर्ट ने याचिकाकर्ता प्रोफेसर सी शिवकुमार की याचिका पर फैसला सुनाते हुए तलाक को मंजूरी दे दी.

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