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मद्रास HC ने बदला फैसला, स्‍पेलिंग मिस्‍टेक के कारण कोर्ट से बरी हुआ था बच्‍ची के यौन शोषण का आरोपी

Kunti Dhruw
17 July 2021 11:54 AM GMT
मद्रास HC ने बदला फैसला, स्‍पेलिंग मिस्‍टेक के कारण कोर्ट से बरी हुआ था बच्‍ची के यौन शोषण का आरोपी
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तमिलनाडु की मद्रास हाईकोर्ट ने पॉक्‍सो एक्‍ट के एक मामले में निचली अदालत के फैसले को बदल दिया है.

तमिलनाडु की मद्रास हाईकोर्ट ने पॉक्‍सो एक्‍ट के एक मामले में निचली अदालत के फैसले को बदल दिया है. एक महिला ने अपनी दो साल की बेटी के यौन उत्पीड़न के आरोपी एक आरोपी को बरी करने के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. जिसपर कोर्ट ने आरोपी को उम्रकैद की सजा सुनाई है. निचली कोर्ट में स्‍पेलिंग मिस्‍टेक के कारण आरोपी बरी हो गया था.

पड़ोसी ने किया था बच्‍ची का यौन शोषण
दरअसल, यह मामला वर्ष 2007 का है, जब अपनी दो साल नौ महीने की बेटी को महिला पड़ोसी के भरोसे छोड़कर बाजार चली गई थी. जिसके बाद पड़ोसी ने उस बच्‍ची का यौन शोषण किया. जब महिला को इस बात की जानकारी मिली तो उसने पड़ोसी पर पॉक्‍सो एक्‍ट के तहत मामला दर्ज कराया. जबकि सुनवाई के दौरान एक स्‍पेलिंग मिस्‍टेक के कारण निचली कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था.
बचाव पक्ष ने वकील ने स्‍पेलिंग मिस्‍टेक का फायदा उठाया
न्‍यूज 18 की खबर के मुताबिक, 2 जुलाई की सुनवाई में मद्रास हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया है. हाईकोर्ट के आदेश से यह साफ होता है कि निचली अदालत में आरोपी के वकील ने मुकदमे के दौरान की गई स्‍पेलिंग मिस्‍टेक का फायदा उठाकर आरोपी को बरी कराया था.
दरअसल, मुकदमा दर्ज कराते समय जब महिला का बयान दर्ज किया जा रहा था, उस वक्‍त अंग्रेजी में 'सीमेन' शब्‍द को तमिल भाषा में 'सेमेन' लिख दिया गया था. बचाव पक्ष के वकील ने इसी गलती का फायदा उठाया था. वकील में अपनी दलील में कहा था कि बच्‍ची की मां ने साक्ष्‍य में 'सेमन कलर' का जिक्र किया था. जिसका अर्थ लाल रंग की मिट्टी है. उसने तर्क दिया था कि बच्‍ची की मांग ने कहा था कि बच्‍ची के अंडरगारमेंट में 'सेमन' या 'लाल मिट्टी' है. जिसके बाद कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया था.
हाईकोर्ट ने कहा- निचली अदालत को विचार करना चाहिए था
मां द्वारा दाखिल की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए न्‍यायमूर्ति पी वेलमुरुगन ने कहा कि महिला ने पुलिस में बयान दर्ज कराते समय कहा था कि उनकी बच्‍ची के निजी अंगों पर सफेद रंग का तरल पदार्थ था, बाद में इस बात का गलत अर्थ निकाला गया और कोर्ट ने बिना सोचे विचारे फैसला सुना दिया.
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