गोहर। सराज के आराध्य व श्री विष्णु भगवान के अवतार माने जाने वाले बड़ा देव मतलोड़ा का कार्तिक हूम पर्व बुधवार को धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान हजारों की संख्या में भक्त मौजूद रहे और देवता के मूल स्थान कांडा धार में करीब 230 बच्चों के मुंडन संस्कार किए गए। अहम बात यह रही कि देवता इस बार 4 करोड़ के बनाए सोने के रथ पर विराजमान हुए। देवता की सात हारियों के लोगों समेत 10 हजार से अधिक लोगों ने अपने आराध्य के दरबार में शीश नवाया और देवता से सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त किया। बुधवार को पर्व के शुभारंभ पर लोगों ने सुबह 5 बजे ही देवता कोठी चौहट में अपनी उपस्थिति दी और आराध्य के पारंपरिक वाद्ययंत्रों की धुन के साथ देवता के नवनिर्मित रथ के साथ चौहट कोठी से मूल स्थल देव कांडा पहुंचे। देवता कमेटी के सचिव पुष्पराज ने बताया कि बड़ा देव श्री विष्णु मतलोड़ा के कार्तिक हूम के दौरान मूल स्थान देव कांडा में हजारों की संख्या में लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। बता दें कि बड़ा देव श्री विष्णु मतलोड़ा के प्रति लोगों की गहरी आस्था रही है जिस कारण सराज ही नहीं अपितु जिले के अन्य देवी-देवताओं में बड़ा देव धन-दौलत में भी सबसे अग्रणी माने जाते हैं।
जब भी देवता से देव कार्य या रथ के निर्माण के प्रति आदेश प्राप्त होते हैं तो कोई भी कारदार और हरियान उन आदेशों को कभी नहीं मोड़ते हैं जिसका जीता-जागता प्रमाण यह है कि आज इस कलियुग के दौर में देवता का पूरा देव रथ सोने से जडि़त है। इस रथ पर करीब 4 करोड़ रुपए से अधिक का खर्च किया गया है। इसके अलावा कोठी में देवता का आसन कई किलो चांदी से निर्मित करवाया गया है। देवता की आय के साथ सराज क्षेत्र की 23 पंचायतों (सात हारी) के हजारों लोगों ने अपने देवता के नए रथ निर्माण हेतु प्रबंधन कमेटी को अपनी स्वेच्छा से धनराशि दान की है। किवदंती है कि महाभारत युद्ध के बाद कुरुक्षेत्र से देव विष्णु देव मतलोड़ा द्रंग, मंडी व घासनू होते हुए भाटकीधार पहुंचे थे, जहां बालक रूप में पहुंचे देवता का सामना एक दैत्य से हो गया। दैत्य को ब्रह्मा का वरदान था कि तय नियमों के क्वच को तोड़े बिना कोई भी शक्ति आपका वध नहीं कर सकती है लेकिन सृष्टि निर्माता भगवान विष्णु दैत्य को मिले वरदान और उसकी मौत से परिचित थे। देव विष्णु रूपी मतलोड़ा ने एक महिला की सहायता से दैत्य का संहार कर दिया जिससे लोगों ने दैत्य के आतंक से छुटकारा पा लिया। तब से लेकर सराज में देव मतलोड़ा को बड़ा देव के रूप में मानते आ रहे हैं। आज भी देवता की प्रमुख पूजा के दौरान महिला का सहयोग और मौजूदगी को शुभ माना जाता है।