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नौकरी छोड़ विदेश से लौटा और बन गया किसान, अब सालाना कमाई है 35 लाख रुपए

Nilmani Pal
14 Sep 2022 7:33 AM GMT
नौकरी छोड़ विदेश से लौटा और बन गया किसान, अब सालाना कमाई है 35 लाख रुपए
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यूपी। शाहजहांपुर के रहने वाले अंशुल मिश्रा ने चेन्नई से कंप्यूटर साइंस से बीटेक और दिल्ली से डाटा साइंस कोर्स किया है. पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें विदेश से नौकरी का ऑफर आया लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया और अपने शहर शाहजहांपुर लौट गए. उन्होंने लगातार 35 साल तक मुनाफा देने वाली ड्रैगन फ्रूट की खेती की शुरुआत की. महाराष्ट्र से 1600 पौधे लाकर अपने बंजर खेत में लगा दिया. इससे उन्हें लागत का 4 गुना ज्यादा मुनाफा हासिल हुआ.

अंशुल इस काम से अपने शहर और गांव चिलौआ के किसानों के लिए प्रेरणस्रोत बने हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आत्मनिर्भर भारत को धरातल पर उतारने के लिए उन्होंने विदेश में नौकरी करने के बजाय 6 माह तक आत्मनिर्भर बनने के लिए शोध किया. इच्छाशक्ति और लगन के चलते उनकी मेहनत रंग लाई. अंशुल ने साल 2018 में महाराष्ट्र के सोलापुर गए. वहां ड्रैगन फ्रूट की खेती का प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने 1600 पौधे अपने बंजर खेत पर लगा दिए. इस खेती से उन्हें सामान्य फसल से 4 गुना मुनाफा हुआ. नतीजन उन्होंने खेती को विस्तार देकर 5 एकड़ में 20 हजार ड्रैगन के पौधे लगाए हैं. वर्तमान में अंशुल घर बैठकर सालाना 35 लाख रुपये की कमाई कर रहे हैं. इसके लिए पहले साल उन्हें सहफसली खेती का सहारा लेना पड़ा था. ड्रैगन (कमलम) की 5 एकड़ की खेती से सालाना करीब 35 लाख की कमाई कर रहे हैं.

अंशुल का कहना हैं कि वे उत्तर भारत के 15 राज्यों में ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले सबसे बड़े किसान हैं. ड्रैगन फ्रूट के साथ-साथ पौधों की भी बिक्री करते हैं. बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा समेत कई प्रदेशों में किसान उनके यहां से पौधे ले जाकर ड्रैगन खेती का लाभ कमा रहे हैं. नागफनी प्रजाति का ड्रैगन एक ही मात्र ऐसा पौधा है. जिसमें एक बार फल आता है और 35 साल तक फल आते रहते हैं. अंशुल का कहना है कि इस पर साल में 7 बार फल आते हैं. दिल्ली मंडी में ड्रैगन फ्रूट की सर्वाधिक मांग है.

ड्रैगन फुट की 3 प्रजातियां होती हैं रेड ड्रैगन, येलो ड्रैगन, व्हाइट ड्रैगन यह 3 तरह के फल होते हैं. यह फल कीवी और नाशपाती की तरह स्वादिष्ट और अत्यंत गुणकारी होता है. लाल ड्रैगन की सर्वाधिक मांग रहती है. अंशुल के पिता आदित्य मिश्रा का कहना है कि वह अपने बेटे की कामयाबी से बहुत खुश हैं. उनका बेटा गांव के किसानों को भी इस खेती से आय बढ़ाने की राह दिखा रहा है. महज 25 साल के युवा अंशुल मिश्रा प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से इस खेती को और विस्तार करने के लिए सहयोग की अपेक्षा भी कर रहे हैं. जिससे और किसान भी इसकी खेती का प्रशिक्षण लेकर आत्मनिर्भर बन सकें.


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