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राष्ट्रपति चुनाव पर ताजा अपडेट

Nilmani Pal
8 Jun 2022 2:00 AM GMT
राष्ट्रपति चुनाव पर ताजा अपडेट
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दिल्ली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 25 जुलाई को खत्म हो रहा है. इससे पहले देश का अगला और 15वां राष्ट्रपति चुन लिया जाएगा. पिछले 45 साल से इसी तारीख को निर्वाचित राष्ट्रपति कार्यभार संभालते रहे हैं. नीलम संजीव रेड्डी ने 25 जुलाई 1977 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी, इसी के बाद से शपथ की यह तारीख करीब फिक्स हो गई है. राष्ट्रपति चुनाव को लेकर पार्टियों की अपनी तैयारी है, लेकिन यहां बात उस प्रक्रिया की, जिसके बाद देश को अपना प्रथम नागरिक मिलता है.

भारत का कोई भी नागरिक कितनी भी बार राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ सकता है. चुनाव लड़ने के लिए कम से कम 35 साल की उम्र होना जरूरी है. लोकसभा सदस्य होने की पात्रता और किसी भी लाभ के पद पर न होने के साथ-साथ उम्मीदवार के पास कम से कम 50 प्रस्तावक और 50 समर्थक विधायक होने चाहिए.

शुरुआत में यह संख्या 2-2 थी यानी राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के लिए केवल दो अनुमोदक और दो नॉमिनेट करने वाले विधायकों की जरूरत होती थी, इसलिए उस दौर में यह चुनाव लड़ना बेहद आसान था. करीब 20 साल तक इस नियम का दुरुपयोग भी हुआ.

1974 में संविधान संशोधन करके दो-दो विधायकों की अनिवार्यता को हटाकर यह संख्या 10-10 कर दी गई. फिर 1997 में संशोधन करके इस संख्या को बढ़ाकर 50-50 कर दिया गया यानी अब अगर कोई व्यक्ति राष्ट्रपति का चुनाव लड़ना चाहता है तो यह जरूरी है कि उसे इस चुनाव में शामिल होने वाले कम से कम 100 विधायक जानते हों.

- देश में राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है यानी जनता इसमें वोट नहीं कर सकती है. चुनावी प्रक्रिया में राज्यसभा और विधान परिषद में नामित सदस्य और विधानपार्षद भी शामिल नहीं हो सकते. केवल निर्वाचित राज्यसभा सांसद, लोकसभा सांसद और विधायक ही वोट दे सकते हैं.

- अगर किसी राज्य का मुख्यमंत्री विधान परिषद का सदस्य है तो वह भी राष्ट्रपति के निर्वाचन में मतदान नहीं कर सकता है.

- राष्ट्रपति चुनाव में एकल हस्तांतरणीय मत यानी सिंगल ट्रांसफरेबल वोट प्रणाली के जरिए मतदान होता है. इसका मतलब यह हुआ कि राज्यसभा, लोकसभा और विधानसभा का एक सदस्य एक ही वोट कर सकता है.

संविधान के अनुच्छेद के 71 (4) में स्पष्ट रूप से लिखा है कि राष्ट्रपति पद का चुनाव किसी भी स्थिति में नहीं रुकेगा. अगर किसी राज्य की विधानसभा भंग है या कई राज्यों में विधानसभा सीटें रिक्त हैं तो भी राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव तय समय से ही होंगे.

देश के सर्वोच्च नागरिक का चुनाव आम चुनावों की तरह गोपनीय तरीके से होता है. राष्ट्रपति चुनाव में ईवीएम तो नहीं लेकिन बैलेट पेपर का इस्तेमाल होता है.

गोपनीय मतदान का मतलब निर्वाचक अपना वोट किसी को दिखा नहीं सकते. अगर वह ऐसा करते हैं तो उनका वोट रदद हो जाएगा.

इसके अलावा अगर किसी राजनीतिक दल को यह पता चल जाए कि उसका कोई सदस्य पार्टी की इच्छा के विरुद्ध वोट कर रहा है तो दल अपने सदस्य के खिलाफ व्हिप जारी नहीं कर सकते.

सबसे ज्यादा वोट मिलने पर भी जीत जरूरी नहीं

सामान्य तौर पर जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा वोट पाता है वह अपनी सीट पर विजेता घोषित कर दिया जाता है लेकिन राष्ट्रपति चुनाव में हार या जीत वोटों की संख्या से नहीं बल्कि वोटों की वैल्यू से तय होती है. राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार को सांसदों और विधायकों के वोटों के कुल मूल्य का आधा से ज्यादा हिस्सा हासिल करना होता है.

मौजूदा समय में राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल या इलेक्टोरल कॉलेज के सदस्यों के वोटों का वेटेज 1098903 है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा के वोट का मूल्य 6,264 है, जो फिलहाल निलंबित है. इसे घटाने के बाद राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए कम से कम 5,46,320 वोट मूल्य की जरूरत होगी.

संविधान के अनुच्छेद 55 में वोटों के मूल्य के बारे में बताया गया है. इनका मूल्य कैसे तय किया जाएगा इसका भी तरीका दिया हुआ है. यूपी में एक विधायक के पास सबसे ज्यादा 208 वोट होते हैं. सभी 403 विधायकों के वोटों की कुल वैल्यू 83824 होती है. इसी तरह सिक्किम के एक विधायक के पास सबसे कम 7 वोट होते हैं. सभी 32 विधायकों के कुल वोटों की वैल्यू 224 होती है. तो सवाल यह है कि इन विधायकों की वैल्यू तय कैसे होती है.

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