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विश्व स्तर पर पूर्ण मान्यता का अभाव झेल रही होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति बहुत से रोगों में प्रभावी रूप से कारगर
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6 Dec 2022 11:57 AM GMT
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नई दिल्ली (आईएएनएस)| किडनी स्टोन्स, गॉलब्लैडर स्टोन्स, अस्थमा, मानसिक रोग ,नींद ना आना ,त्वचा रोग इस तरह के रोगों में होम्योपैथी इलाज पद्धति बहुत अधिक प्रभावी और कारगर साबित हुई है। विशेषज्ञ बताते हैं कि इस तरह के रोगों में एक सप्ताह के अंदर मरीज को रिजल्ट दिखाई देने लगता है। इसके बावजूद भी बहुत सारे देशों और बहुत सारी जगहों पर होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति को पूर्ण रूप से मान्यता नहीं है। और कुछ देशों में तो होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति पर प्रतिबंध भी है। इसी विषय पर ज्यादा जानकारी के लिए आईएएनएस ने होम्योपैथिक चिकित्सक डॉक्टर रजीना से बातचीत की।
21वीं सदी में मेटा-विश्लेषणों की एक श्रृंखला ने दिखाया है कि होम्योपैथी के चिकित्सीय दावों में वैज्ञानिक औचित्य का अभाव है। नतीजतन, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय निकायों ने स्वास्थ्य देखभाल में होम्योपैथी के लिए सरकारी धन को वापस लेने की सिफारिश की है। ऑस्ट्रेलिया, यूनाइटेड किंगडम, स्विटजरलैंड और फ्ऱांस के राष्ट्रीय निकायों के साथ-साथ यूरोपीय अकादमियों की विज्ञान सलाहकार परिषद और रूसी विज्ञान अकादमी ने निष्कर्ष निकाला है कि होम्योपैथी अप्रभावी है। इंग्लैंड में राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा अब होम्योपैथिक उपचारों के लिए धन उपलब्ध नहीं कराती है। और स्वास्थ्य विभाग से होम्योपैथिक उपचारों को निषिद्ध दवाओं की सूची में जोड़ने के लिए कहा है। फ्रांस ने 2021 में फंडिंग हटा दी, जबकि स्पेन ने भी स्वास्थ्य केंद्रों से होम्योपैथी चिकित्सा पर प्रतिबंध लगाने के कदमों की घोषणा की।
होम्योपैथिक चिकित्सक डॉक्टर रजीना कहती है कि होम्योपैथी के बारे में एक मिथ है के होम्योपैथी धीमी से काम करती है। इस पद्धति के इलाज से मरीज को बहुत देर में फायदा होता है। जबकि ऐसा नहीं है बल्कि बहुत सारे लोग होम्योपैथी पर तब आते है, जब उनका रोग बहुत पुराना हो जाता है। आगे डॉक्टर रजीना ने बताया अब अगर किसी को 3 साल 10 साल पुरानी बीमारी है, तो ऐसे मरीज को यदि होम्योपैथी पद्धति से ठीक होने में 2 से 3 महीने भी लग रहे हैं। लेकिन वह ठीक हो रहा है। तो होम्योपैथी पद्धति मरीज को देर में रिजल्ट नहीं देती बल्कि मरीज ही अपने बहुत पुराने रोग को लेकर आता है। इसलिए मरीज को रिजल्ट देर में मिलता है।
डॉक्टर रजीना ने बताया कि बहुत से लोगो को गलतफहमी है कि होम्योपैथी पद्धति का विश्व में ज्यादा चलन में नहीं है। जबकि ऐसा नहीं है पूरे विश्व की अगर बात करें आज की तारीख में 40 प्रतिशत लोग होम्योपैथी पद्धति पर कन्वर्ट हो रहे हैं। एक खास बात है जिसके बारे में आज कल डॉक्टर भी कम बात कर रहे हैं कि मनुष्य की बॉडी आजकल एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस हो रही है। एंटीबायोटिक्स ने मनुष्य की बॉडी पर काम करना बंद कर दिया है , कुछ पेन किलर्स ने भी बॉडी पर काम करना बंद कर दिया है। इसकी एक वजह यह है कि एंटीबायोटिक्स और दर्द निवारक दवाइयों का लोगों ने बहुत अधिक तादाद में और गलत इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। इस वजह से कुछ एंटीबायोटिक्स अब मनुष्य की बॉडी पर काम ही नहीं करती इसलिए भी बहुत से लोग होम्योपैथी पद्धति से इलाज कराने की ओर आगे बढ़ रहे हैं। और उनको इससे लाभ भी हो रहा है। ऐसा नहीं है कि होम्योपैथिक पद्धति एक जानी मानी और कारगर पद्धति नहीं है बल्कि होम्योपैथिक पद्धति से इलाज कराने वालों की तादाद दिन-ब-दिन बढ़ ही रही।
डॉक्टर रजीना ने आगे बताया बहुत से ऐसे प्रमुख लोग रहे जिन्हें होम्योपैथिक पद्धति पर बहुत विश्वास रहा:
महात्मा गांधी, मदर टेरेसा, रविंद्र नाथ टैगोर, एपीजे अब्दुल कलाम, क्वीन एलिजाबेथ, बिल क्लिंटन, और अशोक कुमार दादा मुनी तो होम्योपैथी के चिकित्सक भी रहे हैं।
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