कार्मिक, लोक शिकायत, कानून एवं न्याय मामलों की संसदीय समिति ने उच्च न्यायपालिक में समाजिक विविधता की कमी पर अफसोस जताया है। समिति ने कहा कि न्यायपालिका प्रति भरोसा बढ़ाने के लिए सभी वर्गों को उचित स्थान देना चाहिए।
समिति ने क्या दिया सुझाव?
राज्यसभा सदस्य सुशील कुमार मोदी की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा है कि न्यायपालिका में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी), महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व के साथ न्यायाधीशों की नियुक्ति में सामाजिक विविधता को बढ़ाया जाना चाहिए।
विभिन्न तबकों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर
समिति का कहना है कि न्यायपालिका के प्रति भरोसा, विश्वसनीयता और स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए जरूरी है कि इसमें हाशिये पर रहने वाले विभिन्न तबकों की भागीदारी बढ़ाई जाए। संसदीय समिति ने संसद के दोनों सदनों में न्यायिक प्रक्रियाएं और उनमें सुधार विषय पर अपनी 133वीं रिपोर्ट पेश की।
समिति ने क्यों जताई आशंका?
रिपोर्ट के पैरा 12 में समिति ने इस बात पर चिंता जताई कि हाल के वर्षों में समाज के वंचित तबकों के प्रतिनिधित्व में कमी आई है। महिलाओं के अलावा एससी, एसटी, ओबीसी का प्रतिनिधित्व कम होने ने उच्च न्यायपालिका देश की सामाजिक विविधता को प्रति¨बबित नहीं करती।
इस वक्त क्या है प्रावधान?
सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट में नियुक्तियों में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है, लेकिन विभिन्न तबकों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व पर विचार किया जाना। इससे न्यायपालिका के प्रति लोगों का भरोसा और ज्यादा बढ़ेगा। नियुक्तियों के लिए सिफारिशें करते समय कलेजियम को इस तथ्य पर भी ध्यान देना चाहिए।