कोलकाता। अनुसूचित जनजाति के दर्जे के लिए कुर्मी समुदाय का आंदोलन पश्चिम मिदनापुर, बांकुड़ा और पुरुलिया के तीन आदिवासी बहुल जिलों में फैले जंगलमहल क्षेत्र में अपने पारंपरिक गढ़ से आगे बढ़ने के लिए तैयार है। सोमवार से, उत्तर बंगाल के मालदा जिले में बसे समुदाय के लोग जिले में एक अनूठा दीवार अभियान शुरू करेंगे, इसमें उनकी मांगें पूरी नहीं होने तक त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली के लिए आगामी चुनावों का बहिष्कार करने की धमकी दी गई है।
दीवार-अभियान की मुख्य टैगलाइन है - 'पहले अनुसूचित जनजाति, फिर वोट' जो दर्शाता है कि समुदाय के लोग तब तक चुनाव का बहिष्कार करेंग,े जब तक कि अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की उनकी लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा नहीं किया जाता है। मालदा जिले में यह अभियान ऐसे समय में सामने आया है, जब जंगलमहल क्षेत्र में कुमरी समुदाय के लोग चल रहे अभियान 'ऑल वॉल्स टू कुर्मी' को जारी रखते हुए यह सूचित कर रहे हैं कि आगामी ग्रामीण निकाय चुनावों के दौरान भित्तिचित्रों के लिए कुर्मियों के स्वामित्व वाली किसी भी संपत्ति की दीवारों को उपलब्ध नहीं कराया जाएगा।
मालदा जिले में 'पहले अनुसूचित जनजाति, फिर वोट' अभियान की नेता रेणुका महतो के मुताबिक जिले में यह आंदोलन की शुरुआत है और आने वाले दिनों में जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, वे और उग्र आंदोलन करेंगे, समुदाय के लोग शीघ्र ही रेल नाकाबंदी आंदोलन आयोजित करने की योजना बना रहे हैं।
कुर्मी समुदाय के लोगों की मुख्य शिकायत यह है कि स्वदेशी जनजातियों के लिए काम करने वाली राज्य सरकार की संस्था पश्चिम बंगाल कल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अभी तक कुर्मी को आदिम जनजातियों के प्रतिनिधि के रूप में मान्यता नहीं दी है। उनका यह भी आरोप है कि केंद्र सरकार को इस मामले में व्यापक रिपोर्ट भेजने में संस्थान या राज्य सरकार की अनिच्छा के कारण कुर्मी समुदाय को अनुसूचित जनजाति श्रेणी के तहत मान्यता देने की प्रक्रिया बाधित हो रही है।
11 अप्रैल को, नबन्ना के राज्य सचिवालय में समुदाय के नेताओं और राज्य सरकार के बीच एक द्विदलीय बैठक हुई। हालांकि, बैठक का कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकल सका। उस दिन ही कुर्मी नेताओं ने अपना आंदोलन आगे बढ़ाने की धमकी दी थी।