सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार से कृष्ण जन्मस्थान और शाही मस्जिद ईदगाह विवाद मामले में ट्रांसफर किए गए और साथ संलग्न किए गए सभी मुकदमों का ब्योरा मांगा है।
शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के आदेश का विरोध कर रही मस्जिद कमेटी की वकील से कहा कि केस की प्रकृति को देखते हुए अगर ट्रायल कोर्ट के बजाए हाई कोर्ट सुनवाई कर मामले में फैसला दे तो क्या ज्यादा बेहतर नहीं होगा।
मस्जिद कमेटी ने 26 मई को दायर की है याचिका
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामला ज्यादा दिन तक लंबित रहना किसी के भी हित में नहीं है। यह व्यापक हित में होगा कि मामले का फैसला उच्च स्तर पर हो। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को तीन सप्ताह बाद फिर सुनवाई पर लगाने का आदेश दिया। मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इलाहाबाद हाई कोर्ट के 26 मई के फैसले को चुनौती दी है।
उस फैसले में हाई कोर्ट ने कृष्ण जन्मस्थान से संबंधित मथुरा की जिला अदालत में लंबित सभी सिविल वाद अपने यहां स्थानांतरित कर लिए थे और सभी को एक साथ संलग्न कर सुनवाई का आदेश दिया था। कृष्ण जन्मस्थान से संबंधित करीब 17 वाद जिला अदालत में लंबित हैं, जिन्हें हाई कोर्ट ने स्थानांतरित करने का आदेश दिया है।शुक्रवार को मामला न्यायमूर्ति एसके कौल और सुधांशु धूलिया की पीठ के सामने लगा था।
किसी भी मामले का ज्यादा दिन तक लंबित रहना सही नहीं: कोर्ट
मस्जिद कमेटी की ओर से पेश वकील तस्नीम अहमदी ने जैसे ही हाई कोर्ट के आदेश का विरोध करते हुए दलीलें देनी शुरू कीं तभी जस्टिस कौल ने कहा कि केस की प्रकृति को देखते हुए क्या ये ज्यादा बेहतर नहीं होगा कि इस पूरे मामले को हाई कोर्ट सुने। यह केस उच्च स्तर पर हाई कोर्ट द्वारा तय होना ज्यादा ठीक नहीं रहेगा। किसी भी मामले का ज्यादा दिन तक लंबित रहना दोनों पक्षों के लिए बेचैनी पैदा करता है।
मामला हाई कोर्ट में सीधे सुने जाने को लेकर मस्जिद कमेटी ने जताई नाराजगी
जस्टिस कौल ने कहा कई मुकदमे हैं सभी को साथ हाई कोर्ट में सुने जाना ज्यादा ठीक रहेगा। वहां न्यायाधीशों के सुनवाई और केस तय करने का स्तर अलग होता है। लेकिन मस्जिद कमेटी की वकील ने कहा कि मामला हाई कोर्ट में सीधे सुने जाने से उनका एक अपील का हक मारा जाएगा। पीठ के अन्य न्यायाधीश धूलिया ने पूछा कि हाई कोर्ट ने सभी केस अपने यहां ट्रांसफर करने का क्या कारण दिया है।
वकील ने बताया कि हाई कोर्ट ने देरी को आधार बनाया है, दूसरे मामले को महत्वपूर्ण मानते हुए अपने यहां स्थानांतरित किया है। लेकिन जिस केस में हाई कोर्ट ने सभी मुकदमे ट्रांसफर करने का आदेश दिया है उसमें की गई मांग देखी जाए। उसमें 12 अक्टूबर 1968 का समझौता रद करने की मांग है। उस समझौते में तय हुआ था कि इतनी जमीन तुम्हारे पास रहेगी और इतनी मेरे पास।