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Kota 4 बार बदला खाता, तहसीलदार ने एक ही परिवार के दो सदस्यों के नाम दर्ज किए
Shantanu Roy
4 Jun 2024 6:20 PM GMT
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Kota: कोटा। कोटा मंदिर माफी की जमीन का इंतकाल खोलने के मामले में मिली भगत का खेल सामने आया है। एसडीओ के ऑर्डर के बाद 13 दिन में ही मंदिर माफी की जमीन का 4 बार खाता बदला। इतना ही नहीं मंदिर माफी की जमीन को एक ही परिवार के अलग अलग सदस्यो के नाम चढ़ा दिया। बाद में नामांतरण खारिज करके वापस जमीन को मन्दिर के नाम चढ़ाया गया। इस मामले में ट्रस्ट के लोगों ने साठ गांठ का आरोप गया है दोषियों के खिलाफ मामला दर्ज करने की कोर्ट से गुहार व लगाई है। दरअसल मंदिर सुखराज महाराज छावनी रामचंद्रपुरा के नाम ग्राम रामचंद्रपुरा व बोरखेड़ा की खातेदारी की करीब 13 से 15 बीघा जमीन है।जो शहर के बोरखेड़ा व 80 फीट रोड़ पर है। जमीन खाते लगाने को लेकर दादाबाड़ी निवासी राजेंद्र कुमार पुत्र कृष्ण चंद जोशी ( कथित पुजारी परिवार)ने उपखंड अधिकारी लाडपुरा में 2 जनवरी 2023 को दावा पेश किया था। साल 1973 में सादे कागज पर लिखी वसीयत पेश की। उपखंड अधिकारी लाडपुरा मनीषा तिवाड़ी ने 51 साल पहले सादे कागज पर लिखी वसीयत को आधार मानकर 12 फरवरी 2024 को दावे का निस्तारण कर दिया। मंदिर सुखराय महाराज ट्रस्ट के अध्यक्ष देवकीनंदन शर्मा ने बताया एसडीओ कोर्ट में राजेंद्र कुमार जोशी पुत्र कृष्णचंद्र जोशी (उम्र 65), मुख्तार धारक कृष्ण चंद्र जोशी पुत्र रामचंद्र समाधानी उम्र 90 वर्ष के नाम से दावा किया। एसडीओ लाडपुरा मनीषा तिवाड़ी ने वादी के नाम डिक्री जारी कर नामांतरण खोलने के आदेश दे दिए।
आदेश की पालना में तहसीलदार ने मंदिर माफी की जमीन को 4 अप्रेल को राजेंद्र कुमार जोशी के नाम चढ़ा दी। लेकिन जमाबंदी नकल में गलती से डोहली लिखा रह गया। इस खाते को तुरंत डिलीट किया। 6 अप्रैल को वापस मंदिर के नाम जमीन बोल गई। दो दिन बाद 8 अप्रैल को इसी जमीन को कॄष्ण चंद्र जोशी के नाम खाते चढ़ा दिया। जिसे 16 अप्रैल को डिलीट कर वापस मंदिर के नाम खाते चढ़ाया। देवकीनंदन ने कहा कि एसडीओ ने अपने ऑर्डर में लिखा कि रामचंद्र की मृत्यु के बाद विधिक वारिसान रिकॉर्ड में आ चुके थे। ऐसे में सवाल उठता है कि 51 साल पहले सादे कागज पर लिखी वसीयत को आधार क्यों माना गया? रामचन्द्र के विधिक वारिसान के कोर्ट में बयान दर्ज क्यों नही किए? दूसरा एसडीओ ने खुद ऑर्डर मे लिखा कि मंदिर मूर्ति की जमीन किसी भी मूर्ति की पूजा करने वाले पुजारी अथवा सेवादार के खाते में अलग से दर्ज नहीं की जा सकती। भू प्रबंधन विभाग द्वारा उक्त भूमि को मंदिर के नाम दर्ज कर बिल्कुल सही एवं विधि पूर्वक कार्रवाई की है। तो ऐसे में सवाल उठता है कि मंदिर माफी की जमीन का कैसे इंतकाल खोलने के ऑर्डर जारी किए? ये मिली भगत से सारा खेल हुआ है। राज्य सरकार से मांग है कि जब से मनीषा तिवाड़ी की एसडीओ के रूप में कोटा पोस्टिंग हुई है। तब से उनके द्वारा जितने भी ऑर्डर जारी किए है उन सभी प्रकरणों की जांच करवाई जानी चाहिए। हमनें कोर्ट की भी शरण की है। लाडपुरा तहसीलदार हरिनारायण सोनी इसमें वादी कृष्ण चंद्र जोशी थे, हो जरिए राजेंद्र कुमार के जरिए वाद का निराकरण हुआ। पटवारी की गलती से पहले राजेंद्र कुमार के खाते लगा थी। पता लगने पर गलती सुधारी। राजेंद्र के खातेदारी केंसिल करके कृष्ण चंद्र के नाम खाते लगाई। मंदिर माफी की जमीन होने का पता लगने पर नामांतरण खारिज करके वापस मंदिर के नाम खाते चढ़ाई। इसकी अपील आरएए में की है।
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Shantanu Roy
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