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जानिए राधा अष्टमी का महत्व

Nilmani Pal
23 Sep 2023 2:18 AM GMT
जानिए राधा अष्टमी का महत्व
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भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी का अलौकिक प्रेम जगजाहिर है. आज भी लोग उनके पवित्र प्रेम की मिसाल देते हैं. शायद इसी कारण ये संयोग बना कि भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है और ठीक 15 दिन बाद इसी माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी होती है. कहते हैं कि राधा अष्टमी के दिन व्रत रखने और राधा संग कृष्ण की पूजा करने से जीवन खुशियों से भर जाता है. इस साल राधा अष्टमी शनिवार, 23 सितंबर यानी आज मनाई जा रही है.

हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधाष्टमी मनाई जाती है. भाद्रपद की अष्टमी तिथि 22 सितंबर यानी कल दोपहर 01 बजकर 35 मिनट से शुरू हो चुकी है और इसका समापन 23 सितंबर यानी आज दोपहर 12 बजकर 17 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, राधा अष्टमी का पर्व 23 सितंबर यानी आज मनाया जा रही है. आज के दिन राधा जी की पूजा का मुहूर्त सुबह 11 बजे से दोपहर डेढ़ बजे तक रहेगा.

राधा-कृष्ण को अगर हम एक-दूसरे के पूरक कहें तो गलत नहीं होगा क्योंकि जब-जब भगवान कृष्ण का नाम आता है तब-तब राधा जी का जिक्र भी अवश्य किया जाता है. राधा-कृष्ण का नाम हमेशा एक साथ आता है और राधा अष्टमी का त्योहार भगवान कृष्ण की प्रिय राधा जी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल की अष्टमी को राधा रानी का जन्म हुआ था. कृष्ण जन्माष्टमी की तरह ही राधा अष्टमी का पर्व भी पूरे धूमधाम से देशभर में मनाया जाता है, लेकिन इसकी सबसे ज्यादा रौनक राधा रानी की नगरी बरसाने में देखने को मिलती है.

राधा अष्टमी के दिन पर सुबह-सवेरे उठकर स्नानादि करके निवृत्त हो जाएं. इस दिन राधा जी और भगवान कृष्ण की पूजा करें. भक्त को राधा अष्टमी पर पूरे दिन व्रत करना चाहिए और सिर्फ एक समय फलाहार करना चाहिए. इसके पश्चात, राधा-कृष्ण जी की प्रतिमा को पंचामृत (दूध, दही, शहद, घी और गंगा जल) से स्नान कराएं और फिर मूर्ति का श्रृंगार करें. श्रृंगार करने के बाद राधा रानी और कृष्ण जी को भोग लगाएं तथा उन्हें धूप, दीप, फूल आदि अर्पित करें. राधा अष्टमी पर पूजन के लिए पांच रंग के चूर्ण से मंडप का निर्माण करें और इस मंडप के भीतर षोडश दल के आकार का कमल यंत्र बनाएं. अब इस कमल के बीचों बीच सुन्दर आसन पर श्री राधा-कृष्ण की युगल मूर्ति को पश्चिम की तरफ मुख करके स्थापित करें. अब दोनों हाथ जोड़कर प्रार्थना करें और श्रद्धाभाव से श्री राधाकृष्ण की पूजा तथा आरती करें.


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